जब से अमेरिकी गायिका रिआना, पूर्व पोर्नस्टार मिया खलीफा और कथित पर्यावरणवादी ग्रेटा थनबर्ग ने भारत के हिंसक किसान प्रदर्शन के समर्थन में अपने ट्वीट्स किए हैं, हमारा फिल्म उद्योग दो भागों में बंट चुका है। एक तरफ अजय देवगन, अक्षय कुमार, सुनील शेट्टी, अनुपम खेर जैसे लोग हैं, जिन्होंने स्पष्ट रूप से भारत की अखंडता को अक्षुण्ण रखने की बात की है, तो दूसरी तरफ तापसी पन्नू, मोहम्मद जीशान अयूब, स्वरा भास्कर जैसे कई चेहरे हैं, जिनके मतों को कोई समर्थन न मिलने के बावजूद वे भारत के विरुद्ध विष घोलते दिखाई दिये हैं।
लेकिन एक गुट ऐसा भी है, जो ऐसे अहम समय पर भी मौन है। जब बात भारत की अखंडता के बचाव की हो, तो मौन रहना या तो आपकी कमजोरी हो सकती है, या फिर एक संदेश है कि आप भारत को तोड़ने वालों का पक्ष रखते हो। किसी ने सही भी कहा है, अन्याय करने वाले से अधिक दोष उसका होता है जो अन्याय पर मौन रहता हो।
इस सूची में सबसे प्रमुख नाम है बॉलीवुड के महानायक कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन का। पिछले कई वर्षों से अमिताभ बच्चन ने मानो राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर अपना सकारात्मक योगदान ना देने की कसम खाई हुई है। पिछले वर्ष जब अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत्यु हुई थी, तब भी अमिताभ बच्चन ने चुप्पी साधी हुई थी। लेकिन अब बात भारत के अस्मिता की है, और इसपे भी अमिताभ बच्चन का चुप रहना मानो इन अराजक तत्वों को मौन समर्थन देने समान होगा।
लेकिन अमिताभ बच्चन अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं है जिनकी चुप्पी के लिए उनपर निशाना साधा जा रहा है। हर बार की तरह एक बार फिर खान तिकड़ी ने इस विषय पर चुप्पी साधे रहने में ही भलाई समझी। आम तौर पर कथित असहिष्णुता के मुद्दे पर देश छोड़ने की बातें करने वाले आमिर खान को भी मानो इस विषय पर सांप सूंघ गया। इतना ही नहीं, बॉलीवुड के नई पीढ़ी के कई सितारे, जैसे आयुष्मान खुराना, राजकुमार राव, विकी कौशल इत्यादि भी इस विषय पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं।
अब इस चुप्पी के पीछे दो प्रमुख कारण हो सकते हैं, जिनमें से यदि एक भी सच है तो ये बॉलीवुड के लिए चिंताजनक भी है और आने वाले समय में हानिकारक भी। यदि वे इसलिए चुप हैं कि भारत के पक्ष में उनके बोलने से वामपंथी लोग उन्हे अपने ‘cancel culture’ का शिकार बनाएंगे, तो ये इनकी कायरता को दर्शाता है, यानि जब अहम मुद्दों पर देश का पक्ष लेने की बात आए, तो ये लोग दुम दबाकर भाग खड़े होते हैं।
लेकिन यदि ये लोग इसलिए चुप हैं क्योंकि वे अप्रत्यक्ष रूप से अराजकतावादियों को अपना समर्थन दे रहे हैं, तो इसका मतलब स्पष्ट है कि इनसे ज्यादा एहसान फ़रामोश कोई नहीं। इनमें से कई लोग ऐसे भी हैं, जो CAA के विरोध के दौरान केंद्र सरकार को लंबे चौड़े उपदेश भी दे रहे थे, लेकिन जब पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगे हुए, तो इनकी अंतरात्मा ने मानो समाधि ले ली थी।
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि जिस प्रकार से भारत का पक्ष लेने के विषय में कई बॉलीवुड सितारे चुप बैठे हैं, वो एक अच्छा संकेत नहीं है, और ये आगे जाकर इन्ही कलाकारों के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है, क्योंकि सत्य की लड़ाई में आप तटस्थ नहीं हो सकते।