केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से राज्यसभा में एक्सपोज होने के बाद, कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार अब शिरोमणि अकाली दल-सरकार द्वारा 2013 में लागू किए गए पंजाब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट को रद्द करने जा रही है। मजे की बात यह है कि इस ड्रेकोनियन कानून, के खिलाफ ‘किसानों का विरोध प्रदर्शन नहीं देखने को मिला, और ना ही इसके लिए पुलिस कर्मियों पर हमला करते हुए देखा गया है। इसके बजाय, फर्जी किसान मोदी सरकार द्वारा भारत की संसद के माध्यम से लाए गए क्रांतिकारी सुधारों के खिलाफ प्रदर्शन करने और तोड़फोड़ में अधिक रुचि रखते हैं।
दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट, 2013 को निरस्त करने के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब विधानसभा में एक नए बिल को पेश करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। उस दिशा में युद्ध स्तर पर तैयारी चल रही है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट, 2013 के अनुसार, एक किसान को 5 लाख फाइन और एक महीने की जेल अवधि भुगतना पड़ सकता है, अगर वह प्राइवेट या कॉरपोरेट घराने के साथ पहले किए गए अनुबंध से मुंह मोड़ता है या उसमें बदलाव करता है।
इसके विपरीत, मोदी सरकार द्वारा पारित कृषि सुधारों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, और यह स्पष्ट किया जाता है कि कोई भी किसान किसी भी समय पर बिना किसी अनुपालन के किसी भी अनुबंध से बाहर निकल सकता है।
पंजाब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट, 2013 पंजाब की बादल सरकार के दिमाग की उपज थी। 2012 में, SAD सरकार ने कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा ही लाई गई 2003 की इसी लाइन के एक कानून को हटाने के बाद नया कानून लाया गया था। अब, एक बार फिर, कैप्टन अमरिंदर सिंह एक अकाली दल के कानून को रद्द करने के लिए कदम उठा रहे हैं।
इससे पता चलता है कि पंजाब में दो राजनीतिक मोर्चों ने राज्य के किसानों को एक दुष्चक्र में फंसा कर रखा हुआ है जिससे वो अनजान है। यही नहीं उन्हें भ्रमित कर मोदी सरकार द्वारा लाए गए कानून के खिलाफ कर दिया गया है जिनके सुधार वास्तव में किसान-हितैषी हैं।
राज्य सभा में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था, “दो महीने तक मैं किसानों के संघ से पूछता रहा कि इन कानूनों में ‘काला’ क्या है? मुझे बताओ जिससे सुधार किया जा सके। विपक्षी नेताओं ने कृषि सुधार की आलोचना की। लेकिन किसी ने यह बताने की कोशिश नहीं की कि वे किसानों को किस तरह से नुकसान पहुँचा रहे हैं। इसलिए, मैं किसानों, विशेष रूप से पंजाब के किसानों से पूछना चाहता हूं क्योंकि उनके पास वहां थोड़ी अलग स्थिति है – Arhatiyas का कमीशन अलग है, सब कुछ अलग है। हमने इस लेन-देन को कर से मुक्त कर दिया है, जिसे राज्य सरकार वसूलती है। तो, आंदोलन उस व्यक्ति के खिलाफ होना चाहिए जो टैक्स जमा कर रहा है या उस व्यक्ति के खिलाफ है जो इसे कर-मुक्त बना रहा है?”
केंद्रीय मंत्री ने कहा, लेकिन देश में उल्टी गंगा बह रही है।
जिस तरह से पंजाब के किसानों को भ्रम में डाल कर मोदी सरकार द्वारा हाल ही में पारित कृषि सुधारों के खिलाफ किया गया उन्हें यह समझना चाहिए कि उन्हें किस तरह आज से नहीं, बल्कि कई वर्षो पहले से ही अपने फायदे के लिए मोहरा बनाया गया है।
किसानों को कहा गया कि उनकी ज़मीन और आजीविका दोनो छीन ली जाएगी। अब अगर ऐसा होता तो सरकार बातचीत के लिए क्यों तैयार होती?
अब किसानों को अपने गुस्से को किसान हितैषी नीतियों को लागू करने वालों पर नहीं बल्कि, पंजाब कोई अभी की और पहले को दोनो सरकारों से सवाल पूछना चाहिए ना कि मोदी सरकार के खिलाफ आंदोलन करना चाहिए।