एक अहम निर्णय में मथुरा की एक अदालत ने न सिर्फ कृष्ण जन्मभूमि से संबंधित याचिका स्वीकार की है, बल्कि सभी पक्षकारों को नोटिस भी भेजा है। इसका मतलब स्पष्ट है कि न सिर्फ कृष्ण जन्मभूमि पर भगवान श्रीकृष्ण को पुनर्स्थापित करने के विषय पर विचार होगा, अपितु श्रीकृष्ण जन्मभूमि को ध्वस्त कर बनाए गए शाही ईदगाह मस्जिद के स्थान पर भी विचार विमर्श होगा।
आज तक की रिपोर्ट के अनुसार, “मथुरा में जिला राजकीय अधिवक्ता संजय गौड़ के अनुसार एडिशनल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज देवकांत शुक्ला ने याचिका को सुनवाई हेतु स्वीकार करते हुए सभी पक्षों को नोटिस जारी किया है। अदालत ने याचिका को स्वीकार करने योग्य माना और इसकी विस्तृत सुनवाई भी होगी। सभी पक्षों को मार्च 8, 2021 तक अदालत के समक्ष पेश होकर अपना पक्ष रखना पड़ेगा।
जिन्हें समन जारी किया गया है, उनमें उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन, शाही ईदगाह प्रबंधन समिति के सचिव, श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के प्रबंधन न्यासी और श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सचिव शामिल हैं। ज्ञात हो कि पुराने केशवदेव मंदिर के देवता ठाकुर केशव देव जी महाराज विराजमान की तरफ से उनके सेवायत पवन कुमार शास्त्री/गोस्वामी ने ये याचिका अदालत में दायर की है”।
बता दें कि जहां आज शाही ईदगाह मस्जिद विराजमान है, वहाँ कभी कंस का कारागार था, जहां श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इसीलिए इस स्थान को श्रीकृष्ण जन्मभूमि का नाम दिया गया है, और यहाँ पर कभी श्रीकृष्ण का एक भव्य मंदिर विराजमान था, जिसे मुगल बादशाह औरंगज़ेब के निर्देश पर ध्वस्त किया गया था।
इसी संबंध में पिछले वर्ष जिला जज साधना रानी ठाकुर के नेतृत्व वाले पीठ के सामने 12 अक्टूबर को इस सम्बन्ध में एक याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ताओं का दावा था कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि के 13 एकड़ के कटरा केशव देव मंदिर के परिसर पर 17वीं शताब्दी में शाही ईदगाह बनाया गया था। इसीलिए याचिककर्ताओं ने अपने मुकदमे में मांग की कि शाही ईदगाह मस्जिद वाली जमीन समेत कटरा केशव देव मंदिर परिसर के संपूर्ण 13.7 एकड़ जमीन पर श्रीकृष्ण का पूरा अधिकार है, यानि कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि को पुनरनिर्मित करने के लिए इस भूमि को श्रीकृष्ण के अनुयायियों को सौंपा जाना चाहिए।
याचिका में ये भी कहा गया कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान एवं शाही ईदगाह प्रबंधन समिति के बीच हुए समझौते का अनुमोदन करने वाले मथुरा अदालत के 1967 के फैसले को रद्द किया जाए, जिसके अंतर्गत मस्जिद को मंदिर के नजदीक बनाए रखने की अनुमति दी गई थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि श्रीरामजन्मभूमि के पुनरुत्थान के बाद अब श्रीकृष्णजन्मभूमि के पुनरुत्थान का समय आ चुका है, क्योंकि जैसे भक्तों का नारा है, “अयोध्या तो झांकी है, काशी मथुरा अभी बाकी है”।