भारत सरकार के शीर्ष थिंक टैंक नीति आयोग ने एक अहम निर्णय में न्यायिक निर्णयों की समीक्षा करने का निर्णय किया है। इसमें खास बात यह है कि उन न्यायिक निर्णयों की समीक्षा करेगी, जो पर्यावरण को होने वाले कथित नुकसान के दबाव में लिए गए, और जिनसे देश की अर्थव्यवस्था को जमकर नुकसान हुआ। इसमें गोवा के मोपा एयरपोर्ट पर लगी रोक एवं तमिलनाडु में निर्मित स्टरलाइट कॉप्पर प्लांट को बंद करवाने के निर्णय पर समीक्षा होगी।
नीति आयोग के बयान के अनुसार, “पिछले कुछ समय से ऐसे कई केस सामने आए हैं, जिनके कारण देश की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान हुआ है”। यहाँ इनका इशारा उन मामलों से हैं, जिन्हें कथित एनजीओ के दबाव में लिये गये और जिसपर पर्यावरण को होने वाले संभावित नुकसान का हवाला दिया गया था। परंतु इसके कारण जो देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ, उसके बारे में बात करने से भी कई लोग कतराते हैं।
इसी विषय पर बात करते हुए नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार का मानना है, “इस विश्लेषण का उद्देश्य है कुछ न्यायिक निर्णयों के कॉस्ट और उनसे होने वाले फ़ायदों का निष्पक्ष विश्लेषण करना है। ये न्यायिक हस्तक्षेप का विरोध नहीं करता है, क्योंकि इससे कुछ अच्छे विकल्प भी निकले हैं”। ऐसे में यह स्पष्ट हो जाता है कि नीति आयोग उन eco fascists को निशाना बना सकती है, जिनके कारण भारत को आर्थिक तौर पर काफी नुकसान उठाना पड़ा है।
Eco Fascism एक ऐसी विचारधारा है, जहां पर्यावरण की सुरक्षा के नाम पर सरकारी एजेंसियों को धमकाया जाता है और कई विकासशील परियोजनाओं पर ब्रेक लगा दिया जाता है, जैसे आरे वन क्षेत्र में प्रस्तावित मुंबई मेट्रो कार शेड और तमिलनाडु के Thoothukudi (तूथूकुड़ी) में स्टरलाइट के कॉपर प्लांट को बंद कराया गया। इससे होने वाले नुकसान को अक्सर न्यायिक निर्णय नजरअंदाज करते आए हैं।
लेकिन अब और नहीं, क्योंकि मोदी सरकार ने अब निर्णय किया है कि इन eco fascists पर लगाम लगाने का प्रबंध किया जाएगा, क्योंकि देश के आर्थिक हितों के साथ समझौता कर पर्यावरण की रक्षा करना पल्ले दर्जी की बेवकूफी होगी, भलाई नहीं।