मुकुल, शुभेन्दु और अब शायद त्रिवेदी- BJP ने TMC से दिग्गज नेताओं को चुना है, अब TMC में सिर्फ गुंडे बचे हैं

BJP की रणनीति के कारण TMC नेताओं ने छटका ममता का हाथ

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पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव जैसे जैसे नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे TMC और ममता बनर्जी की मुश्किलें दिन-दुनी रात-चौगुनी बढ़ रही है। एक के बाद एक बड़े नेताओं का बीजेपी में पलायन जारी है। मुकुल रॉय से शुरू हुआ यह सिलसिला आज दिनेश त्रिवेदी तक जारी है। देखा जाये तो TMC में जो भी अच्छे नेता थे अब वे बीजेपी में जा चुके हैं और अब TMC केवल गुंडों और कट्टरवादियों  की पार्टी बन गयी है।

दरअसल, राज्यसभा सदस्य और TMC नेता दिनेश त्रिवेदी के इस्तीफे के बाद अब यह कयास लगाये जा रहे हैं कि वह भी बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। उससे पहले टीएमसी के पांच पूर्व नेताओं ने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री से मुलाकात कर बीजेपी का दामन थामा था।

इन नेताओं में राजीव बनर्जी, बैशाली डालमिया, प्रबीर घोषाल, रथिन चक्रवर्ती और रुद्रनील घोष शामिल थे। पिछले तीन महीनों में ममता बनर्जी के करीबी शुभेंदु अधिकारी से लेकर लोकसभा सांसद सुनील मंडल समेत और कई नेतोओं ने टीएमसी छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया है। शुभेंदु अधिकारी भी तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के वैसे ही खास माने जाते रहे हैं, जैसे किसी जमाने में मुकुल रॉय हुआ करते रहे। इसके चलते ममता दीदी की सियासी ताकत दिनों-दिन कम होती जा रही है। ये नेता न सिर्फ जनता के बीच जनाधार रखते थे बल्कि ये TMC के वे चेहरे थे जिनके माध्यम से यह पार्टी अपने साफ़ सुथरी होने का दावा करती थी। इतना ही नहीं बीजेपी का जनाधार इन टीएमसी नेताओं के शामिल होने से और अधिक बढ़ गया है।

यही नहीं कई नेता तो ममता बनर्जी के डर से TMC में तो हैं लेकिन चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं। कई ऐसे नेता हैं, जो कि ममता के साथ खुद का नाम नहीं जोड़ना चाहते हैं। इस सूची में टीएमसी के बेहद वरिष्ठ और दिग्गज नेता रबीरंजन चट्टोपाध्याय का नाम भी शामिल हैं। बर्धमान से टीएमसी विधायक रबीरंजन ने कहा है कि वो अब विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे।

किसी भी राजनीतिक विश्लेषक के लिए इस जवाब को पचाना काफी मुश्किलों वाली बात होगी। पश्चिम बंगाल में जिस तरह से बीजेपी अपना चुनावी अभियान चला रही है, उससे टीएमसी के नेताओं की नींद उड़ गई है। ममता की हार को सामने देख ममता के खेमें से कई विधायक और मंत्री इस्तीफा देकर बीजेपी का रुख कर चुके हैं जिसके बाद ममता दीदी अपनी सत्ता का दुरुपयोग कर उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए आपराधिक मामले दर्ज करा रही हैं।

ऐसे में टीएमसी के कई नेता बीजेपी में जाने से बचने लगे हैं लेकिन वो चुनावों में अपना नाम टीएमसी के साथ भी नहीं जोड़ना चाहते हैं कुछ दिनों पहले ही ममता के खेल राज्यमंत्री लक्ष्मी रतन शुक्ला ने भी कहा था कि वो अब चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं। लक्ष्मी रतन एक प्रतिष्ठित भारतीय टीम के क्रिकेटर रहे चुके हैं। TFI ने कुछ दिनों पहले ही रिपोर्ट की थी कि ममता ने बीजेपी का दामन थाम चुके TMC के पूर्व मंत्री राजीव बनर्जी के खिलाफ जांच बिठा दी है, जिससे टीएमसी छोड़ने की सोच रहे कई नेता जांच के डर से टीएमसी न छोड़ सके। ममता बनर्जी की इस नीति को अपने ही नेताओं पर दबाव बनाने की चाल के रूप में देखा जा रहा है।

ममता बनर्जी का सियासी कुनबा छोटा होता जा रहा है। टीएमसी से लगातार सांसद से लेकर विधायक और पार्षद तक पार्टी छोड़ बीजेपी में जा रहे हैं जिससे जनता के बीच उनकी छवि खराब हो रही है। यही नहीं जो TMC में अब बचे है वो या तो भ्रष्टाचारी हैं या गुंडे हैं। अब ममता का साथ देने वाले वे कट्टरवादी हैं जो उनके इशारे पर दूसरे दलों के नेताओं के साथ गुंडागर्दी करते हैं और अब ममता बनर्जी ऐसे लोगों के भरोसे ही चुनाव में उतरने जा रही है जिससे उनकी हार और निश्चित हो चुकी है। यह अमित शाह की ही राजनितिक चाल है जिससे आज ममता बनर्जी बिल्कुल अकेली पड़ती नजर आ रही है। अमित शाह पहले ही कह चुके हैं कि ममता बनर्जी अपनी राजनीति के कारण अकेली पड़ जाएँगी और वही होता दिखाई दे रहा है।

उन्होंने कहा,“मोदी सरकार जनता के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है जबकि ममता दीदी की सरकार भतीजे का कल्याण करने में व्यस्त है। जिस तरह से बड़ी संख्या में टीएमसी, वामपंथी नेता और कांग्रेस के अच्छे नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं, आप (ममता) पार्टी में अकेली रह जाएंगी और आपके साथ कोई नहीं बचेगा।” अब पश्चिम बंगाल के परिणाम चुनाव शुरू होने से पहले ही यह बात स्पष्ट होने लगी है।

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