यह किसान आंदोलन कभी किसानों के लिए था ही नहीं, यह तो एक साजिश थी केंद्र सरकार को अस्थिर करने के लिए। और अब इस बात की पुष्टि स्वय किसान नेता कर रहें है और अपने वास्तविक मकसद को उजागर कर रहे हैं। किसान नेताओं के नाम पर प्रदर्शन कर रहे राजनीतिक नेताओं का मकसद मोदी सरकार को किसी भी तरह झुकाना था अब सरकार के न झुकने की स्थिति में ये नेता अब उन राज्यों में प्रदर्शन को बढ़ाने की योजना बना रहे हैं जहाँ चुनाव है। इन कथित किसान नेताओं का कहना है कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी के लोग हारें तो ही होगी आंदोलन की जीत होगी।
दरअसल,शुरू से ही राजनीतिक रंग लिया हुआ किसान आन्दोलन अब अपने वास्तविक मकसद की तरफ बढ़ने लगा है और वह है बीजेपी को किसी भी तरह से सत्ता से हटाना या सत्ता हासिल न करने देना। जो काम कुछ दिनों पहले महागठबंधन के नाम पर किया जा रहा था अब वही काम किसान आन्दोलन के नाम पर किया जा रहा है। किसान नेताओं ने ऐलान किया है कि वे चुनावी राज्य पश्चिम बंगाल में भी सभाएं करेंगे। कथित किसान नेता राकेश टिकैत ने भी कहा है कि हम पूरे देश का दौरा करेंगे और पश्चिम बंगाल भी जाएंगे। वहीं एक किसान नेता ने संकेत दिया कि वे जनता से ऐसे लोगों को वोट नहीं देने को कहेंगे जो किसानों की आजीविका छीन रहे हैं। किसान नेताओं ने यह भी कहा कि अगर पश्चिम बंगाल में बीजेपी के लोग हार जाते हैं तभी उनका आंदोलन सफल होगा।
हरियाणा बीकेयू के प्रमुख गुरनाम सिंह चढूनी ने महापंचायत को संबोधित करते हुए लोगों से अपील की कि वे पंचायत से संसद तक के चुनाव में ऐसे किसी व्यक्ति को वोट नहीं दें जो प्रदर्शनकारी किसानों की मदद नहीं करते हैं और उनके आंदोलन को समर्थन नहीं देते। बाद में टिकैत और कुछ अन्य किसान नेताओं के साथ पत्रकारों से बातचीत करते हुए चढूनी ने कहा, ‘जहां तक पश्चिम बंगाल का संबंध है, अगर भाजपा के लोग हार जाते हैं, तभी हमारा आंदोलन सफल होगा। पश्चिम बंगाल में भी लोग कृषि पर निर्भर हैं। हम वहां जाएंगे और किसानों से आग्रह करेंगे कि वे उन्हें वोट नहीं दें जो हमारी आजीविका छीन रहे हैं।‘
अभी तक छिटपुट घटनाओं को छोड़ कर यह आंदोलन राजनीतिक नहीं हुआ था, लेकिन पश्चिम बंगाल की राजनीति में कूदने को लेकर टिकैत से चढ़ूनी तक ने जो ऐलान किया है, उससे आंदोलन में राजनीति की वास्तविकता सामने आती है कि यह किसान आन्दोलन कभी किसानों के लिए था ही नहीं।
सरकार के साथ 11 दौर की बैठक होने के बाद सड़क से लेकर संसद तक गरमा-गरम बहस भी हुई परन्तु फिर भी किसी ने कृषि कानून के गलत पहलु नहीं बताए जिससे सरकार सुधार कर सके। तो इसका क्या अर्थ निकलता है? यह आन्दोलन कभी कृषि कानून के लिए या किसानों के हित के लिए था ही नहीं। बल्कि इसका मकसद तो सरकार को अस्थिर करना था जिसमें खालिस्तानियों की भी फंडिंग हुई थी। अब पश्चिम बंगाल के चुनावों में बीजेपी को हराने के मकसद से उतरने वाले इन झूठे किसान नेताओं का वास्तविक चेहरा भी सामने आ गया है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि किसान आन्दोलन तो एक बहाना था, असली मकसद तो बीजेपी को हराना था।