देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस पर पहले ही अस्तित्व का खतरा मंडरा रहा है अब उसके अपने ही बागी नेता दोहरी मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। इसके केन्द्र में हाल ही में राज्यसभा से रिटायर हुए कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद हैं। वहीं, राज्य सभा सांसद आनंद शर्मा से लेकर कपिल सिब्बल और हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेन्द्र सिंह हुड्डा सभी ऐसे नेता हैं, जो कि बगावत के कारण कांग्रेस पर भारी पड़ रहे हैं। कांग्रेस जिस तरह से राहुल गांधी के खेमे के नेताओं को पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर आगे बढ़ा रही है वो इन नाराज नेताओं को ज्यादा अखर रहा है। ऐसे में कांग्रेस के लिए इन चुनावों को जीतना बेहद जरूरी हो गया है, क्योंकि इन चुनावों में हार पार्टी के इन सात दिग्गज नेताओं को पार्टी से अलग होने और फूट डालने का बड़ा मौका दे सकती है।
कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनावों और पार्टी की कार्यशैली को लेकर पार्टी के 23 नेता पिछले साल अगस्त में ही पत्र विवाद के बाद बागी हो गए थे। ऐसे में जिन्हें कांग्रेस में बड़े पद मिल गए , वो तो चुप हो गए, लेकिन जो नहीं पा सके वो अब बगावत के फुल मूड में हैं। इन बागी नेताओं में ग़ुलाम नबी आज़ाद के अलावा कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा, विवेक तन्खा, अखिलेश प्रसाद सिंह, मनीष तिवारी और भूपिंदर हुड्डा भी हैं।
पार्टी की कार्यशैली को लेकर सवाल खड़े कर चुके कपिल सिब्बल पहले ही नाराज चल रहे हैं। दूसरी ओर गुलाम नबी आजाद को राज्यसभा में पुनः न भेजने पर वो खफा चल रहे हैं। ऐसे में नया बम हरियाणा से फटा है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा बिल्कुल नहीं चाहते थे कि केन्द्रीय नेतृत्व हरियाणा में किसान आंदोलन का नेतृत्व खुलकर करे। वहीं, अब उनका गुस्सा इस बात पर भी सामने आया कि हर जगह से चुनावी हार का दंभ झेल रहे कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला को तमिलनाडु में डीएमके के साथ सीटों के बंटवारे की जिम्मेदारी क्यों दी गई।
भूपेंद्र हुड्डा पहले ही राहुल गांधी की करीबी नेता कुमारी शैलजा को हरियाणा में मिले अध्यक्ष पद से नाराज थे। ऐसे में सुरजेवाला एक और नया फैक्टर बनकर सामने आ गए हैं। इन सभी परिस्थितियों के आधार पर इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने को लेकर ये सभी बगावती नेता बिफर जाएंगे। इसीलिए कांग्रेस में ज्यादातर बड़ी जिम्मेदारियां राहुल के करीबीयों को ही दी जा रही हैं, जिसका उदाहरण राज्यसभा में नेता विपक्ष बनाए गए मल्लिकार्जुन खडगे भी हैं, जबकि एक वक्त तक इस पद के लिए सबसे बड़ा चेहरा आनंद शर्मा थे।
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तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, पुडुचेरी और असम पांचों राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की मुख्य कमान ज्यादातर राहुल के करीबीयों के पास ही है। ऐसे में ये राहुल और उनके खेमे के लिए ये विधानसभा चुनाव सबसे बड़ा चैलेंज है। पांच राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन यदि बुरा रहता है तो ये सात बग़ावती नेता कांग्रेस के बिखरने का बड़ा कारण बन सकते हैं।
इसीलिए इन पांच राज्यों के चुनावों पर ही कांग्रेस का भविष्य टिका हुआ है। राहुल के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही पार्टी यदि इस बार विधानसभा में पिछड़ती है, तो पार्टी के अंदर से ही एक बड़ा मोर्चा खड़ा होगा, और वो कांग्रेस को ले डूबेगा।