ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में बिग टेक कंपनियों को उनकी औकात बताते हुए फ़ेसबुक को अपना विवादित निर्णय वापिस लेने पर विवश कर दिया था। ऑस्ट्रेलिया के नए मीडिया कानून के अनुसार स्थानीय समाचार पत्रों के साथ बिग टेक कंपनियों को अपने राजस्व का एक हिस्सा भी खबरें पहुंचाने के लिए साझा करना होगा, जिसके विरुद्ध गूगल और फ़ेसबुक ने ऑस्ट्रेलिया को हेकड़ी दिखाने का प्रयास किया था, परंतु वे औंधे मुंह गिरे। अब लगता है भारत भी बहती गंगा में हाथ धोने की तैयारी कर रहा है।
ऑस्ट्रेलिया के तर्ज पर भारतीय समाचार पत्र भी अब बिग टेक कंपनियों से खबरें साझा करने के लिए अपना हिसाब मांगने लगे हैं। गूगल इंडिया को लिखे पत्र में इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी के अध्यक्ष, एल आदीमूलम ने कहा, “गूगल को अखबारों को उनकी सेवाओं के लिए भुगतान करना चाहिए। जिस प्रकार से समाचार पत्र हजारों पत्रकारों के रखरखाव के लिए खर्चा करते है, ताकि दुनिया के कोने कोने तक खबरें पहुँचती रहे, इसीलिए गूगल का इन समाचारपत्रों को उनकी सेवाओं के लिए भुगतान करना बनता है”
इस पत्र में आगे बताया गया, “आईएनएस का मानना है कि गुणी संस्थानों के संपादकीय और कुछ अन्य प्लेटफ़ॉर्म [सोशल मीडिया] पे प्रकाशित होने वाली भ्रामक खबरों में बहुत बड़ा अंतर है, जो विज्ञापन से होने वाले राजस्व पे भी साफ दिखाई देता है। पिछले कुछ समय से सोसाइटी ने नोटिस किया है कि गूगल जैसे टेक कंपनियों से प्रकाशकों को उचित भुगतान नहीं मिलता है, और वहीं भ्रामक खबरें फैलाने वालों को खूब पैसा मिलता है”
आईएनएस ने ये बातें गूगल और फ़ेसबुक जैसी कंपनियों के हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के साथ हुए विवाद के परिप्रेक्ष्य में की है। बता दें कि विज्ञापन से जुड़े राजस्व समाचार पत्रों और स्थानीय मीडिया के साथ साझा करने में हो रहे पक्षपात के विषय में ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में एक नया अधिनियम पारित किया, जिसमें स्पष्ट था कि बिग टेक कंपनियों को अपने राजस्व का एक हिस्सा स्थानीय मीडिया के साथ भी साझा करना होगा। लेकिन गूगल और फ़ेसबुक ने इसे अपनी तौहीन समझते हुए ऑस्ट्रेलिया का बहिष्कार करने की धमकी दी।
फ़ेसबुक ने एक कदम आगे बढ़ते हुए न्यूज फ़ीड साझा करने पर ऑस्ट्रेलिया में प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन यह दांव फ़ेसबुक पर ही भारी पड़ गया, और उसकी गुंडई के लिए दुनियाभर में उसे आलोचना का सामना करना पड़ा। फलस्वरूप फ़ेसबुक को अपना निर्णय 72 घंटों के भीतर ही बदलना पड़ा। ऐसे ही गूगल को भी अपने रुख में नरमी बरतनी पड़ी, क्योंकि ऑस्ट्रेलिया अपने देश के हितों के साथ समझौते के लिए कतई तैयार नहीं था।
अब ऐसा लगता है कि भारत भी इसी तरफ आगे बढ़ बिग टेक कंपनियों को अपनी हेकड़ी छोड़ने पर विवश कर सकता है। अभी कल ही IT एवं एलेक्ट्रॉनिक्स मन्त्रालय ने एक नए दिशानिर्देश में ये स्पष्ट किया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर असामाजिक, महिला विरोधी और सनातन विरोधी कॉन्टेन्ट स्वीकार्य नहीं होगा। अब आईएनएस के इस पत्र से भारत की ओर से बिग टेक कंपनियों को संदेश स्पष्ट है – कायदे में रहोगे तो फायदे में रहोगे।