जो बाइडन अमेरिका के राष्ट्रपति क्या बने, मानो वामपंथियों को विष उगलने के लिए जीवनदान मिल गया। जिस प्रकार से वामपंथी भारत के आंतरिक मामलों में खुलकर दखलंदाज़ी कर रहे हैं, वो किसी से नहीं छुपा है, लेकिन सभी देश इस कुत्सित विचारधारा के पक्ष में नहीं है। जिस प्रकार से अमेरिकी वामपंथ एक विषैला रूप धारण कर रहा है, उसके विरुद्ध फ्रांस ने खुलकर मोर्चा संभाल लिया है।
फ्रांस के बुद्धिजीवियों और राजनीतिज्ञों ने एक सुर में अमेरिकी विश्वविद्यालयों से निकल रहे वामपंथ की निन्दा की है। उनका मानना है कि नस्ल, लिंग [जेन्डर], सामंतवाद पर जो विचार इन दिनों अमेरिकी संस्थानों से निकल रहे हैं, वे न केवल विश्व के लिए हानिकारक है, बल्कि फ्रांस की अखंडता और संप्रभुता के लिए भी नुकसानदेह है।
फ्रांस के शिक्षा मंत्री जीन मिशेल ब्लैंकर [Jean Michel Blanquer] ने इस बात पर जोर दिया कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों से जो विष विचारधारा के नाम पर निकल रहा है, उससे निपटने के लिए फ्रांस को कमर कसनी पड़ेगी।
ये बयान उन्होंने इसलिए दिया क्योंकि पेरिस ओपेरा के नए प्रमुख अलेक्जेंडर नीफ़ ने एक 66 पन्नों की रिपोर्ट प्रकाशित करते हुए अपने संस्थान में विविधता को बढ़ाने के नाम पर ‘ब्लैकफेस’ प्रतिबंधित करने की बात की। इस विवादित निर्णय के पीछे फ्रांस में बहुत बवाल मचा और फ्रांस के कई नेताओं ने इस निर्णय के लिए नीफ़ को जमकर कोसा।
ब्लैंकर ने पिछले वर्ष ही अमेरिकी विश्वविद्यालयों पर इस्लामिक आतंकवाद को उचित ठहराने की निकृष्ट प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के लिए भी आड़े हाथों लिया। इसी विषय पर पिछले वर्ष शिक्षा मंत्री ब्लैंकर ने कहा, “ऐसे बहुत से अमेरिकी संस्थान हैं, जो न सिर्फ कैन्सल कल्चर जैसी बकवास को बढ़ावा देते हैं, बल्कि इस्लामिक आतंकवादी के घृणित कृत्यों को उचित ठहराने के लिए भी बहुत कुछ कर सकते हैं। वे राजनीतिक इस्लाम की कमियों के बारे में सोचने तक को पाप सिद्ध करना चाहते हैं, चर्चा तो बहुत दूर की बात रही”।
यह बातें दो कारणों से बहुत अहम है। एक तो पहली बार किसी शक्तिशाली देश के राजनीतिज्ञ ने अमेरिका में बढ़ रहे इस विषैली विचारधारा की ओर इशारा किया है, और दूसरा कि फ्रांस अपने राष्ट्रीय हितों से विविधता के नाम पर कोई समझौता नहीं कर सकता। पिछले वर्ष फ्रेंच शिक्षक सैमुएल पैटी की जघन्य हत्या के बाद फ्रांस का बहुसांस्कृतिकवाद से ऐसा मोहभंग हुआ कि उसने कट्टरपंथी मुसलमानों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया।
इसके अलावा इन बातों को फ्रेंच राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों भी खुलेआम बढ़ावा दे रहे हैं। स्वयं उन्होंने पिछले वर्ष अक्टूबर में उन्होंने अलगाववाद के विरुद्ध अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि बौद्धिक विवाद दूसरों के हवाले करने का जोखिम हम नहीं उठा सकते, क्योंकि कुछ लोग अपनी थ्योरी सीधा अमेरिकी विश्वविद्यालयों से कॉपी करते हैं।
ऐसे में यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि फ्रांस ने अमेरिका के विषैले वामपंथ के विरुद्ध मोर्चा खोलकर यह संदेश दिया है कि अमेरिका के चोंचले फ्रांस में नहीं चलेंगे। जिस प्रकार से फ्रांस में अमेरिकी वामपंथ की जमकर आलोचना की जा रही है, उससे ये भी स्पष्ट होता है कि फ़्रांसीसियों के लिए भी राष्ट्र से ऊपर कुछ नहीं।