बात जब कड़े फैसले लेने और उसपर दृढ़ रहने की आती है तो यूरोपीय नेताओं में एक नाम सबसे पहले आता है, इमानुएल मैक्रों का। फ्रांस के राष्ट्रपति विभिन्न मुद्दों पर मुखर होकर अपनी बात रखते हैं और नीतियां लागू करते हैं। जैसे इस्लामिक कट्टरपंथ के विरुद्ध उन्होंने मुखर होकर फैसले किये। कुछ समय पूर्व उन्होंने कहा था कि फ्रांस की सरकार एक कानून लाएगी जिसके तहत यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इस्लाम का राजनीतिकरण न किया जा सके जो अक्सर स्वतंत्र देशों में एक समानांतर इस्लामिक सरकार का गठन करता है। इसी क्रम में फ्रांसीसी सरकार अब एक नया कानून ले आ रही है।
नए कानून के तहत फ्रांस में सभी माता पिता के लिए अपने बच्चे को 3 वर्ष की उम्र के विद्यालय भेजना अनिवार्य होगा। दरसल फ्रांस की सरकार बच्चों का मदरसों में होने वाला ब्रेनवाश रोकना चाहती है। सैमुअल पैटी की हत्या के बाद से ही मैक्रों ने इस्लामिक कट्टरपंथ के विरुद्ध युद्ध छेड़ रखा है। मैक्रों यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि मुसलमान को फ्रांसीसी जीवनपद्धति के अनुरूप ही चलें, फ्रांस की सहिष्णु संस्कृति को अपनाएं, न कि मौलानाओं के अनुसार सातवीं आठवीं सदी की जीवनशैली अपनाएं।
बिल में स्पष्ट शब्दों में फ्रांस की समस्या का उल्लेख किया गया है। बिल में लिखा है “एक कपटपूर्ण किंतु शक्तिशाली साम्प्रदायिक घुसपैठ, हमारे समाज की नींव के हिस्सों में को खोखला कर रही है। यह घुसपैठ अधिकांशतः इस्लामिक मान्यताओं से प्रेरित है”।
गौरतलब है कि इस्लामिक कट्टरपंथ के विरुद्ध फ्रांस के कड़े रवैया के कारण मैक्रों का जबरदस्त विरोध हुआ है। फ्रांस और तुर्की के संबंध पहले ही खराब थे लेकिन जब मैक्रों ने रेडिकल इस्लाम के खिलाफ जंग छेड़ी, तो तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान इतना चिढ़ गए कि उन्होंने मैक्रों को पागल कह दिया था। फ्रांस के सामानों का मुस्लिम देशों में जबरदस्त विरोध हुआ। मूर्खता की हद तब हो गई थी जब इस्लाम के अपमान का बदला लेने के लिए पाकिस्तान में फ्रांस पर परमाणु हमले की मांग शुरू कर दी गई। ऐसी गीदड़भभकी से तो मैक्रों डरे नहीं, उल्टे उनका रुख और कड़ा हो गया। यहाँ तक कि उन्होंने कनाडा और अमेरिका में भी उठे विरोध के स्वरों की परवाह नहीं कि।
अब नए कानून के तहत मुसलमानों की समानांतर सरकार चलाने की प्रवृत्ति को पूरी तरह दबाया जा रहा है। सरकारी कर्मचारियों को नियमों में फेर बदल करने के लिए धमकाने पर कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है।
किसी सरकारी कर्मचारी, जो दबाव में भी नियमों की अनदेखी नहीं कर रहा, उसकी व्यक्तिगत जानकारी सोशल मीडिया पर साझा करने, उसे लेकर हेट स्पीच देने, लोगों को उसके साथ हिंसा के लिए उकसाने पर सजा मिलेगी। ध्यान देने योग्य है कि यह बदलाव सैमुअल पैटी का सरकलम किये जाने से सीधे तौर पर जुड़े हैं। क्योंकि सैमुअल पैटी ने जब मोहम्मद का कार्टून कक्षा में दिखाया था तो उनके विरुद्ध सोशल मीडिया पर अभियान चलाया गया था, उनकी जानकारी साझा की गई थी, जिससे अंततः उनकी हत्या हो गई थी।
बिल में यह प्रावधान भी है कि सरकारी कर्मचारी, अथवा सरकारी कार्यों में लगे प्राइवेट कॉन्ट्रैक्टर और उनके अधीनस्थ कर्मचारी, कोई भी मजहबी प्रतीक धारण नहीं करेगा। अर्थात अब मुसलमान कर्मचारियों को यह छूट नहीं होगी कि वे कार्यालयों में अपनी इस्लामिक टोपी पहनकर आएं।
बिल में प्रावधान है कि विदेशों से 10 हजार यूरो से अधिक की आर्थिक मदद मिलने पर इसकी जानकारी सरकार को देनी होगी। बिल के जरिये बच्चों की घरेलू शिक्षा के अवसर सीमित करने की कोशिश की गई है, जिससे मौलानाओं द्वारा मुस्लिम बच्चों को घर पर दी जाने वाली कट्टर इस्लामी शिक्षा पर रोक लगे। साथ ही स्त्रियों का कौमार्य भंग हुआ है या नहीं, इसको जांचने पर कड़ी सजा का प्रावधान है, यह परंपरा मूलतः मुसलमानों में ही विद्यमान है।
इसके अतिरिक्त जबरन विवाह रोकने और विशेषतः मुसलमानों में विद्यमान औरतों व आदमियों के बीच के भेदभाव को खत्म करने के लिए भी प्रावधान बिल में किया गया है। कुल मिलाकर बिल यह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाया गया है कि मुस्लिम समुदाय फ्रांस में समानांतर राष्ट्र की तरह न जीये, बल्कि मुख्य धारा का हिस्सा बने, जिससे अलगाववादी प्रवृत्तियों को कुचला जा सके।
फ्रांस इस्लामिक कट्टरता के विरुद्ध जिस प्रकार से संघर्ष कर रहा है, जैसे कड़े कानून बना रहा है, वह एक आदर्श है। आज आवश्यकता है कि सभी परिपक्व समाज, जो इस्लामिक कट्टरपंथ से त्रस्त हैं, ऐसे ही कड़े कदम उठाएं। लोकतांत्रिक सरकारें जब तक इस्लामिक कट्टरपंथ को सामान्य सामाजिक समस्याओं जैसा समझेंगी तब तक वे इसके विरुद्ध कारगर कार्रवाई नहीं कर पाएंगी। इस्लामिक कट्टरपंथ एक मानसिक संक्रमण है, इसके प्रति समझौतावादी रवैया अपनाने से यह और भी तेजी से फैलेगा एवं भी घातक होता जाएगा।