एक अहम कदम में कौशल विकास एवं उद्यम मंत्रालय ने 12 देशों में कुशल कामगारों के लिए 42 लाख नौकरियों का सृजन किया है। यह ना सिर्फ रोजगार के लिए नए अवसर प्रदान करेगा, बल्कि मोदी सरकार के ‘सबका साथ सबका विकास’ नीति को भी सशक्त बनाएगा।
कौशल विकास एवं उद्यम मंत्रालय के सचिव प्रवीण कुमार ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया, “हमने खाड़ी देशों में 26 लाख, यूरोपीय देशों में 3 लाख, और अमेरिका, सिंगापुर, न्यूजीलैंड और स्विट्जरलैंड जैसे देशों में 10 लाख नई नौकरियाँ ढूंढ निकाली हैं , जो रोजगार के नए अवसर प्रदान करेंगी इसके अलावा डिकल एवं टेक्निकल सहायकों हेतु जापान, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, कनाडा, स्वीडन, यूके, USA, स्विट्जरलैंड, कतर एवं सऊदी अरब जैसे देशों में 3 लाख से अधिक नौकरियों की भी व्यवस्था की है”
इतना ही नहीं, National Skill Development Corporation ने विदेशी नौकरियों के लिए आवश्यक ट्रेनिंग हेतु 500 से भी अधिक India International Skill Centers (IISC) को सेट करने की व्यवस्था की है। इससे पहले भारत के पास विदेश भेजने के लिए कुशल कामगारों की काफी कमी थी। उदाहरण के लिए मिडिल ईस्ट में काम करने वाले भारतीयों को अक्सर उनकी योग्यता से कम स्तर वाली नौकरियां मिलती थी।
लेकिन स्थिति काफी बदल चुकी है। कई देशों में जनसंख्या इतनी युवा नहीं है, जितने की आवश्यकता है, और भारतीय सरकार इस समस्या को अपने लिए एक सुनहरे अवसर में बदलने को प्रयासरत है। प्रवीण कुमार ने इसी विषय पर आगे बात करते हुए कहा, “भारत का demographic dividend करीब 62 प्रतिशत का है, और ये अगले 3 दशकों तक बना रहेगा। योग्य कामगारों को आवश्यक ट्रेनिंग दी जाएगी, जो उनके चुने हुए देश के अनुसार निर्धारित होगा।”
जर्मनी, जापान और दक्षिण कोरिया ने कुशल कामगारों पर विशेष ध्यान केंद्रित करते हुए एक ऐसा श्रम बेस तैयार किया जो कहीं भी कैसे भी अपने आप को ढाल कर अपनी कुशलता से दूसरे देशों की कई समस्याओं का निवारण कर सकता है। इसके लिए उन्होंने एक सशक्त इन्फ्रास्ट्रक्चर का सृजन किया, जिससे एक employable age तक आने से पहले ही वे कार्यकुशल है जाएं।
लेकिन चूंकि इनकी जनसंख्या इतनी युवा नहीं है, इसलिए अधिकतम लोग अब रिटायरमेंट की आयु के निकट पहुंच रहे हैं, और इसलिए कुशल श्रम की लागत दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में भारत से बढ़िया रोजगार शायद ही कोई प्रदान कर पाएगा, क्योंकि अधिकांश जनसंख्या अभी भी युवा है, और यहां श्रम की कोई कमी नहीं है, जिसकी वजह से इनकी लागत भी बहुत कम है। इसके अलावा भारत उन देशों में भी शामिल नहीं जहां के श्रमिक उग्रवाद में विश्वास रखते हों।
आधुनिक युग में कौशल विकास पर ध्यान देना बेहद अहम माना जाता है, जिसके कारण जर्मनी और दक्षिण कोरिया जैसे देश आज विकसित देशों की श्रेणी में गिने जाते हैं। अब इसी कौशल विकास को अपना अस्त्र बनाकर मोदी सरकार भारत को एक एक्सपोर्ट पॉवरहाउस में परिवर्तित करना चाहते हैं।