जापान की सरकार किस प्रकार से चीन के चंगुल से जापानी अर्थव्यवस्था को छुड़ाना चाहती है, ये किसी से नहीं छुपा है। सभी को भली भांति मालूम है की कैसे पहले शिंजों आबे और अब प्रधानमंत्री योशिहीदे सूगा के नेतृत्व में चीन से आर्थिक संबंध तोड़ने के लिए एक सुनियोजित अभियान के अंतर्गत काम किया जा रहा है। परंतु कुछ जापानी कंपनियाँ ऐसी भी हैं, जिनके लिए अब भी धनोपार्जन सर्वोपरि है, चाहे इसके पीछे देश की बलि ही क्यों न चढ़ानी पड़े।
हाल ही में कुछ ऐसी गतिविधियां जापान में देखने को मिली है, जिससे स्पष्ट होता है कि किस प्रकार से कुछ कंपनियों के लिए राष्ट्र हित कोई मायने नहीं रखते। अभी हाल ही में जापान की 12 कंपनियों ने चीन के साथ इसलिए नाता तोड़ दिया, क्योंकि चीनी उत्पादों में उइगर श्रम के होने के सबूत पाये गए थे।
अब यह उइगर श्रम क्या है? दरअसल चीन के शिंजियांग प्रांत में रहने वाले उइगर मुसलमानों पर चीनी प्रशासन बेहिसाब अत्याचार ढाती है, और उन्हे ज़बरदस्ती श्रम करने पर विवश करती है। उइगर मुसलमानों के विरुद्ध हो रहे अत्याचारों को लेकर कई देशों ने इसकी निंदा भी की है, जिनमें जापान भी शामिल है। अभी कुछ ही दिनों पहले जापानी विदेश मंत्री तोषीमित्सु मोटेगी ने बाइडन प्रशासन को सख्त संदेश देते हुए कहा कि चीन को Hong-Kong और शिंजियांग में मानवाधिकारों के मामले पर एक जिम्मेदार रुख अपनाने की ज़रूरत है। इसके साथ ही 12 जापानी कंपनियों ने शिंजियांग में “जबरन मजदूरी” कराने में शामिल चीनी कंपनियों के साथ अपने सभी व्यापारिक संबंध खत्म करने की घोषणा की थी।
लेकिन इन सभी कंपनियों में आश्चर्यजनक रूप से जापान की दो शीर्ष कंपनियाँ शामिल नहीं थी – आईटी एवं इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी पैनासॉनिक और औटोमोबाइल कंपनी टोयोटा। उइगर मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध निर्णायक कदम उठाना तो दूर, पैनासॉनिक ने इस विषय पर एक शब्द नहीं बोला है।
लेकिन यह रवैया केवल पैनासॉनिक तक ही सीमित नहीं है। टोयोटा कंपनी तो 2022 के शीतकालीन ओलंपिक की आधिकारिक स्पॉन्सर भी है, जो बीजिंग में होने है। वुहान वायरस के कारण जापान को टोक्यो ओलंपिक 2020 स्थगित कराने पड़े, जापानी अर्थव्यवस्था को इस चीन द्वारा निर्मित महामारी के कारण अरबों डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा, और स्वयं एक जापानी कंपनी होने के बावजूद टोयोटा चीन में होने वाले एक विशाल खेल आयोजन को स्पॉन्सर कर रही हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि उनकी वफादारी वास्तव में किसके प्रति अधिक है।
एक तरह जापानी प्रशासन चीन के चंगुल से देश की अर्थव्यवस्था और उसके व्यापार को छुड़ाने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रही है, तो वहीं दूसरी ओर कुछ जापानी कंपनियों अब भी धन अर्जित करना ही सर्वोपरि समझती है, मानो बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया, और ये जापान के लिए शुभ संकेत नहीं है।