तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव अपने बेटे को सीएम की गद्दी सौंप कर राष्ट्रीय राजनीति की ओर कदम बढ़ाने की कोशिश में थे, लेकिन ज्यादा महत्वकांक्षा घातक होती है, ये बात अब केसीआर को समझ आ गई है। इसके चलते उन्होंने अचानक ऐलान किया कि वो तेलंगाना के सीएम ही रहेंगे और राज्य छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। पहली नजर में ये बात तो काफी साधारण लगती है, लेकिन तेलंगाना की राजनीति के पूरे हालिया रवैए पर नज़र डाली जाए तो पता चलता है कि असल में केसीआर के जहन में बीजेपी का खौफ बैठा है, इसीलिए वो खुद की घोषणाओं को भी खारिज कर रहे हैं।
हैदराबाद में निकाय चुनाव के बाद बीजेपी की स्थिति में जो बड़ा बदलाव दिखा है, उससे मुख्यमंत्री केसीआर और उनकी पार्टी तेलंगाना राष्ट्रीय समिति खौफ में थी। बीजेपी के बढ़ते इस प्रभाव को देखते हुए केसीआर ने तय किया था कि वो अब अपने बेटे को तेलंगाना की सत्ता सौंपकर राष्ट्रीय राजनीति में चले जाएंगे और वो इसके लिए हैदराबाद निकाय चुनावों में हार के बाद देश में एक कांग्रेस रहित तीसरा मोर्चा बनाने की तैयारी कर रहे हैं जिसमें सपा, बसपा, टीएमसी, आरजेडी जैसी पार्टियां भी शामिल होंगी, लेकिन अचानक अब केसीआर के अचानक ही सुर बदल गए हैं।
हाल ही में अपने ताजे बयान में उन्होंने कहा है कि वो अगले दस साल तक प्रदेश के मुख्यमंत्री ही रहेंगे, और अब वो कहीं भी नहीं जाने वाले हैं। उन्होंने कहा कि वो अभी बिल्कुल ही भले चंगे हैं। उन्होंने कहा, “राव ने पार्टी कार्यकर्ताओं से नेतृत्व परिवर्तन के बारे में ऐसा कोई भी बयान नहीं देने को कहा जिससे अटकलें एवं भ्रम पैदा होने की गुजाइंश हो।” दिलचस्प बात ये है कि अचानक ही केसीआर ने अपनी ही बातों को लेकर विरोधाभासी बात क्यों कही है और सत्ता परिवर्तन से इंकार क्यों कर दिया है? इसके पीछे एक सोची-समझी रणनीति है।
वास्तव में केसीआर बीजेपी से काफी डरे हुए हैं। वो जानते हैं कि बीजेपी के रहते हुए वो कभी भी राष्ट्रीय राजनीति में कुछ खास हासिल नहीं कर सकते हैं। ऐसे में वो यदि बीजेपी को चुनौती खड़ी करने के लिए बेटे को सत्ता सौंपते हैं तो फिर बीजेपी उनके ही राज्य में उनके लिए मुसीबतें खड़ी करेगी। बीजेपी के पास सबसे बड़ा मुद्दा वंशवाद का होगा क्योंकि वो आरोप लगाएगी कि केसीआर ने बिना किसी चुनाव के अपने बेटे को स्थापित करने के लिए तेलंगाना का सीएम बना दिया है। ये एक ऐसी स्थिति होगी जिससे निपटना केसीआर के लिए काफी मुश्किल होगा।
वंशवाद एक ऐसा जिन्न है जो यूपी में सपा, बिहार में आरजेडी और राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस के लिए मुसीबत बन गया है। इसके चलते यदि केसीआर बेटे को सीधे सीएम की पोस्ट पर पहुंचाते हैं तो उन्हें डर है कि कहीं उनकी राजनीति लगभग खत्म ही न हो जाये। राष्ट्रीय नेता बनने की महत्वकांक्षा रखने वाले केसीआर को पता है कि वो तेलंगाना का राजनीतिक वर्चस्व भी खो सकते हैं और उनकी स्थिति ‘माया मिली न राम’ वाली हो जाएगी।
और पढ़ें: केसीआर धृतराष्ट्र मोड में, अपने बेटे को कुर्सी पर बिठाने की तैयारी में हैं