जैसे सूरज पश्चिम से उगे तो आश्चर्य होगा, और चीन में लोकतंत्र के फूल तो हम अचंभित होंगे, वैसे ही पाकिस्तान द्वारा शांति का राग गाने पर हमारा अचंभित होना स्वाभाविक है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पाकिस्तान कई कारणों से शांति का राग गाने पर विवश है। लेकिन एक कारण ऐसा भी है जो भारत के कूटनीतिक शक्ति को सिद्ध करता है। कहीं न कहीं पाकिस्तान के वर्तमान शांति प्रस्ताव में UAE का भी हाथ है।
वो कैसे? दरअसल वर्तमान परिस्थितियाँ ऐसी हैं कि अगर पाकिस्तान को अपना अस्तित्व बचाना है, तो UAE और सऊदी अरब के इशारों पर वह उलटे बल नाचने को भी तैयार है। UAE ने हाल ही में पाकिस्तान से अपना बकाया मांगा है, और इसके लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार है। हालांकि UAE की ओर से अभी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान के वर्तमान रुख के पीछे UAE का हाथ हो सकता है।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, “26 फरवरी को UAE और भारत के विदेश मंत्रियों के बीच हुई बातचीत के अनुसार दोनों देशों ने भारत पाकिस्तान सीज़फायर के प्रति सकारात्मक रुख दिखाया। सीजफायर तो बस शुरुआत है, आगे दोनों देशों को और भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए देखा जा सकेगा”
आधिकारिक तौर पर न UAE ने इसकी पुष्टि की है और न ही भारत ने। लेकिन यदि सऊदी अरब के वर्तमान निर्णय को देखें, तो ये पूरी तरह से अफवाह भी नहीं कही जा सकती। एक इंटरव्यू में सऊदी प्रशासन के एक अधिकारी ने बताया, “हम कई देशों में शांति स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं, चाहे वे लेबनान हो, सीरिया हो, इराक हो, ईरान हो या फिर अफगानिस्तान। भारत और पाकिस्तान भी इसी श्रेणी में आते हैं, और इसी प्रकार से हम अफ्रीका में भी शांति स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं”
लेकिन भला संयुक्त अरब अमीरात इस दिशा में क्यों रुचि ले रहा है? इसके पीछे दो वजह है – भारत के साथ अपने संबंधों को एक सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ाना और पाकिस्तान से अपना काम निकलवाना। पाकिस्तान पर न केवल UAE और सऊदी अरब का काफी कर्ज बकाया है, बल्कि कश्मीर के मुद्दे पर दोनों की बेरुखी से कुपित होकर उसने सऊदी अरब के वर्चस्व को ललकारने का दुस्साहस किया था।
ऐसे में UAE चाहता है कि किसी भी तरह पाकिस्तान को ये याद दिलाया जाए कि वह अपनी हद न पार करें। यानि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। इसके अलावा पाकिस्तान की हालत ऐसी है कि वह UAE के प्रस्ताव को मना भी नहीं कर सकता।
हालांकि इस निर्णय से क्या भारत को नुकसान होगा? बिल्कुल भी नहीं। निस्संदेह पाकिस्तान से शांतिपूर्वक संबंध स्थापित करने की आशा करना मानो चीन में लोकतंत्र स्थापित करने जैसा है, जो फिलहाल के लिए संभव नहीं है। ऐसे में यदि पाकिस्तान शांति के नाम पर भारत के साथ कुछ भी दगाबाजी करता है, तो वो केवल भारत का ही नहीं, बल्कि UAE का भी प्रकोप झेलने को बाध्य होगा, क्योंकि इसके बाद UAE के लिए पाकिस्तान पर ताबड़तोड़ कार्रवाई करने में कोई भी कानूनी या कूटनीतिक अड़चन नहीं आएगी।
इसके साथ ही UAE ये भी सिद्ध कर देगा कि पश्चिमी एशिया में आखिर किसका सिक्का चलता है, जो इस समय सऊदी अरब और UAE जैसे देशों के लिए बेहद अहम भी है।