वक्त वक्त की बात है। कभी कांग्रेस का देशभर पर एकछत्र राज हुआ करता था, और उसे चुनौती देने वाला दूर-दूर तक कोई नहीं था। आज देशभर में वर्चस्व जमाने की बात तो छोड़िए, किसी राज्य के निकाय चुनावों में भी अपनी इज्ज़त बचाने के लाले पड़े हुए हैं। कभी जिस नरेंद्र मोदी का वे इसलिए मज़ाक उड़ाते थे कि उन्होंने बचपन में जीवनयापन के लिए चाय बेची थी, आज वही कांग्रेस अपने पार्टी हाइकमान को चाय के बागानों में भेजकर ‘काम करने’ के लिए विवश हैं।
हाल ही में प्रियंका गांधी वाड्रा ने असम का दौरा किया, जहां उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी के नीतियों पर सवाल उठाते हुए उनकी पार्टी की आलोचना की। इसी बीच उन्होंने असम के चाय बागान का दौरा किया और वहाँ टोकरी में पत्तियां भी तोड़कर इकट्ठा की। सद्गुरु चाय बागान में चाय की पत्तियां तोड़ने का ‘अनुभव’ साझा करते हुए मोहतरमा ट्वीट भी किया।
चुनाव प्रचार करने पहुंची प्रियंका गांधी ने आज सद्गुरु चाय एस्टेट में महिला मजदूरों के साथ बातचीत भी की। प्रियंका गांधी ने ट्वीट करके कहा, ‘’चाय बागान के श्रमिकों का जीवन सच्चाई और सादगी से भरा हुआ है और उनका श्रम देश के लिए बहुमूल्य है। मैंने चाय बागान के श्रमिकों के संग बैठकर उनके कामकाज, घर परिवार का हालचाल जाना और उनके जीवन की कठिनाइयों को महसूस किया। मैं चाय बागान के श्रमिकों से मिला प्रेम और ये आत्मीयता नहीं भूलूंगी”।
विधि का फेर तो देखिए – ये बात वो प्रियंका गांधी बोल रही हैं जिनकी पार्टी ने चायवालों को अपमानित करने में बरसों तक कोई कसर नहीं छोड़ी, सिर्फ इसलिए क्योंकि उनके प्रमुख प्रतिद्वंदी नरेंद्र मोदी ने बचपन में गुजरात के वडनगर स्टेशन पर चाय बेची थी। ये वही कांग्रेस पार्टी है जिसके नेता मणिशंकर अय्यर ने छाती ठोंक के कहा था कि एक चायवाला कभी इस देश का प्रधानमंत्री नहीं बन सकता। आगे क्या हुआ इसके बारे में बताने की आवश्यकता नहीं।
आज जिस प्रकार से कांग्रेस हाईकमान किसी भी तरह से अपना खोया जनाधार पाने के लिए जो पैंतरे अपना रही है, उसका आधा भी अगर उन्होंने सच्चे दिल से जनता की सेवा करने में उपयोग किया होता, तो आज कांग्रेस को सत्ता से बाहर नहीं होता। लेकिन जिस पार्टी का अस्तित्व ही एक परिवार के भरोसे हो, उससे परिपक्वता की आशा करना मानो सूरज के पश्चिम दिशा से उदय होने की आशा करना समान है।