अगर इतिहास पर ध्यान दिया जाए, तो पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव इस बार काफी हिंसक रूप धारण कर सकते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में चुनावी प्रशासन को हिंसक गतिविधियों से दो चार होना पड़ा था, और अभी हाल ही में एक चुनावी दल के नेता के घर से गोला बारूद और बंदूकें बरामद हुई हैं।
जियारूल मोल्ला नामक इंडियन सेक्युलर फ्रंट नेता के घर से गन बॉम्ब और अन्य बम बनाने के यंत्र बरामद हुए हैं, जिसके चक्कर में भगोड़े जियारूल के पिता जलील मोल्ला को हिरासत में लिया गया है।
बरिपुर जिला पुलिस के वरिष्ठ क्राइम ब्रांच अफ़सर तमल सरकार के बयान के अनुसार, “रात में गुप्तचरों से सूचना मिलने के बाद हमने ISF के कार्यकर्ता जियारूल मोल्ला के घर की तलाशी लेना शुरू कर दिया। वहाँ एक शॉट गन, कुछ गन बॉम्ब और अन्य बॉम्ब बनाने का समान बरामद हुआ है। जलील मोल्ला को हिरासत में लिया गया है, और जियारूल के लिए तलाश जारी है”।
लेकिन यह इंडियन सेक्युलर फ्रंट के बारे में इतनी चर्चा क्यों? दरअसल, इंडियन सेक्युलर फ्रंट फुरफुरा शरीफ से संबंधित अब्बास सिद्दीकी की पार्टी है, जो कांग्रेस और वामपंथी मोर्चा के साथ गठबंधन कर बंगाल विधानसभा चुनाव लड़ेगी। इनकी जांच पड़ताल करने पर पता चलेगा कि इनका सेक्युलरिज्म से उतना ही नाता है, जितना पाकिस्तान का वैश्विक शांति से और चीन का लोकतंत्र से।
इस इंडियन सेक्युलर फ्रंट को AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी का अप्रत्यक्ष समर्थन भी प्राप्त है, और इसी के पीछे कांग्रेस में अंतर्कलह भी हुई है। आनंद शर्मा ने ISF के साथ गठबंधन पर आपत्ति जताते हुए कहा कि ऐसे लोगों के साथ हाथ मिलाना कांग्रेस के आदर्शों के विरुद्ध है, जिसके पीछे बंगाल प्रभारी और लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, “हम इस राज्य की कमान संभालते हैं और हमें अपने हिसाब से निर्णय लेने के लिए किसी की अनुमति की दरकार नहीं है”
इसमें कोई दो राय नहीं है कि इन पार्टियों का असल उद्देश्य क्या है। बंगाल के 30 प्रतिशत अल्पसंख्यकों के लिए कांग्रेस और वामपंथी मोर्चा के साथ साथ तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टी नैतिकता और शिष्टाचार की बलि चढ़ाने तक को तैयार हैं। ये इसलिए भी हो रहा है क्योंकि AIMIM बिहार में अपनी सफलता के पश्चात बंगाल में भी अपनी किस्मत आजमाने को तैयार है, और ऐसे में ममता बनर्जी ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहतीं, जिसके कारण उनकी पार्टी का अस्तित्व ही हमेशा के लिए बंगाल से मिट जाए।
इसीलिए तृणमूल कांग्रेस और अन्य पार्टी भी अपना जोड़ तोड़ करने में लगी हुई हैं, चाहे इसके लिए बंगाल को आतंकियों के हवाले ही क्यों न करना पड़े। लेकिन शायद वे ये भूल रहे हैं कि बंगाल में भी अब परिवर्तन की हवा बहने लगी है और अब भाजपा के रथ को रोक पाना इतना आसान नहीं होगा।