अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन सत्ता में आने के बाद अपने पहले महीने में ही यह दर्शा चुके हैं कि चीन को लेकर उनकी नीति ट्रम्प प्रशासन की चीन-नीति के मुक़ाबले कई गुना सॉफ्ट रहने वाली है। हालांकि, जो बाइडन चीन के खिलाफ़ रणनीति बनाने में अपने साथी देशों पर ज़रूरत से ज़्यादा आश्रित होते दिखाई दे रहे हैं। Financial Times के एक लेख के मुताबिक बाइडन चीन के खिलाफ़ यूरोप और Quad के देशों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, यह भी एक तथ्य है कि जो बाइडन अमेरिका के गठबंधनों को कमजोर करने की कोशिशों में जुटे हैं। बाइडन प्रशासन के बयानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि वे ट्रम्प की नीति को लेकर ही आगे बढ़ रहे हैं लेकिन जमीनी स्तर पर अमेरिका का रुख एकदम उलट है।
उदाहरण के लिए जापान को लेकर बाइडन प्रशासन का रुख ही देख लीजिये। बाइडन प्रशासन के अंतर्गत रक्षा मंत्री Llyod Austin ने पद संभालते ही यह स्पष्ट किया था कि दोनों देशों के रक्षा समझौते के तहत Senkaku द्वीपों की सुरक्षा को लेकर भी अमेरिका प्रतिबद्ध है। हालांकि, बाद में Pentagon के एक प्रवक्ता ने मीडिया को यह स्पष्ट कर दिया कि अमेरिका Senkaku पर जापान के अधिकार को स्वीकार नहीं करता है। इतना ही नहीं, अमेरिका ने जापान को एक बड़ा झटका देते हुए Indo-Pacific में अपनी सेना की तैनाती पर पुनर्विचार करने का फैसला लिया है, जो आखिर में जापान से अमेरिकी सैनिकों और अमेरिकी जंगी जहाजों को बाहर निकालने का सबसे बड़ा कारण बनके उभरेगा! अकेले जापान में ही अमेरिका की Indo-Pacific कमांड के 50 हज़ार सैनिक तैनात हैं, जिनमें से आधे तो जापान के ओकिनावा बेस पर तैनात हैं।
इसके साथ ही अकेले Yokosuka बेस पर अमेरिका के 12 बड़े-बड़े जंगी जहाज़ तैनात हैं। अब अमेरिका की नई Indo-pacific नीति के तहत इन सभी संसाधनों को “ज़्यादा बेहतर सुरक्षा कवच” के लिए ज़्यादा क्षेत्र में तैनात किया जाएगा। अमेरिका की नई Indo-Pacific पॉलिसी के तहत जापान की सुरक्षा के प्रति अमेरिका की प्रतिबद्धता के साथ समझौता किया जाएगा, जो इस वक्त जापान की पीठ में छुरा घोंपने के समान होगा।
दूसरी ओर, बाइडन प्रशासन मध्य एशियाई देशों के साथ भी ठीक इसी प्रकार का रुख अख़्तियार कर रहा है। बाइडन ने सत्ता में आने के बाद Abraham Accords के प्रति अपना समर्थन जताया था। उन्होंने एक बयान में कहा था “हम इज़रायल और अरब मुस्लिम देशों के बीच रिश्तों के सामान्यकरण का भरपूर समर्थन करते हैं।” हालांकि, बाइडन ने जमीनी स्तर पर ईरान को गले लगाकर इज़रायल और अरब देशों को इस हद तक नाराज़ कर दिया है कि अब दोनों देशों के अमेरिका के साथ रिश्ते तनाव का शिकार होते दिखाई दे रहे हैं।
बाइडन आते ही अमेरिका-UAE सुरक्षा समझौते पर रोक लगा चुके हैं जिसके तहत UAE को F-35 फाइटर जेट्स मिलने थे। इतना ही नहीं, बाइडन प्रशासन ने UAE को सबक सिखाने के लिए यहाँ से export होने वाले Aluminium पर भी आयात दरों को बढ़ा दिया।
UAE की तरह ही सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान भी बाइडन के निशाने पर आ चुके हैं। अपने हालिया फैसले में बाइडन प्रशासन ने सऊदी मूल के अमेरिकी पत्रकार जमाल खशोगजी की हत्या से जुड़े अहम गोपनीय दस्तावेजों को सार्वजनिक किया, जिसके बाद अमेरिका ने सऊदी के कुछ अधिकारियों पर प्रतिबंधों का ऐलान भी किया है। दस्तावेजों के हिसाब से जमाल खशोगजी की हत्या के निर्देश मोहम्मद बिन सलमान की ओर से ही आए थे।
इससे पहले बाइडन प्रशासन यह भी साफ़ कर चुका है कि वे सऊदी अरब के साथ कूटनीतिक वार्ता के लिए MBS से ज़्यादा सऊदी के आधिकारिक राजा किंग सलमान को तवज्जो देंगे, जिससे सऊदी-US के रिश्तों में और तनाव बढ़ सकता है। बाइडन का इज़रायल विरोधी अभियान भी किसी से छुपा नहीं है। बाइडन जिस प्रकार ईरान के साथ घुटने टेककर, उसपर से प्रतिबंध हटाकर तेहरान को JCPOA समझौते (ईरान न्यूक्लियर डील) में शामिल करना चाहते हैं, उसने भी इज़रायल के हितों को नुकसान पहुंचाया है, जिसके कारण मध्य एशिया में न्यूक्लियर जंग का खतरा बढ़ गया है।
बाइडन प्रशासन ने भारत को लेकर भी यही रुख अपनाया है। विदेश मंत्री Blinken ने पद संभालते ही अपने पहले बयान में कहा था “नई सरकार नई दिल्ली के साथ अपने रिश्ते बेहतर करने पर काम करेगी। अमेरिका-भारत के रिश्तों को सदैव दोनों पार्टियों का भरपूर समर्थन मिलता रहा है”। हालांकि, इसके बावजूद बाइडन ने राष्ट्रपति बनने के बाद पीएम मोदी को करीब 20 दिनों के बाद फॉन कॉल किया। इतना ही नहीं, अभी एक अमेरिकी थिंक टैंक ने अपने भारत विरोधी अभियान के तहत यह घोषणा की है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व के दौरान भारत अब एक आज़ाद देश नहीं रह गया है।
The international democratic balance is shifting. The percentage of Free countries reached new all-time lows. Read the full Freedom in the World 2021 report here: https://t.co/9TdPEjsPYr #FreedomInTheWorld pic.twitter.com/U8dLNotTwc
— Freedom House (@freedomhouse) March 4, 2021
बाइडन प्रशासन के बयानों में और हरकतों में साफ फर्क देखने को मिल सकता है। बयान सुनकर कोई भी यही कहेगा कि अमेरिका ट्रम्प की नीतियों के आधार पर ही अपनी विदेश नीति को लेकर आगे बढ़ रहे हैं, जबकि दूसरी ओर बाइडन जमीनी स्तर पर ट्रम्प विरोधी नीतियों को आगे बढ़ा रहे हैं जो आखिर में अमेरिका के हितों को ही नुकसान पहुंचा रही हैं। जापान और भारत जैसे देशों की पीठ में छुरा घोंपकर बाइडन ने अप्रत्यक्ष रूप से चीन की ही सहायता की है। हालांकि, सौभाग्य से अमेरिका के ये सभी साथी देश चीन से निपटने के लिए पूरी तरह अमेरिका पर निर्भर नहीं हैं।