सत्ता संभालने के बाद UAE पर दबाव बनाने की अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की नीति धूल चाटती दिखाई दे रही है। बाइडन ने White House में आते ही फाइटर एयरक्राफ्ट को लेकर हुए अमेरिका-UAE के सुरक्षा समझौते पर रोक लगाने का ऐलान किया था। UAE को कमजोर कर देने वाले इस फैसले के पीछे बाइडन प्रशासन की मंशा यह थी कि कैसे भी करके Abraham Accords को कम आँकने का प्रयास किया जाये। हालांकि, अब बाइडन प्रशासन को कड़ा संदेश देते हुए UAE ने इज़रायल में 10 बिलियन डॉलर का निवेश करने का ऐलान किया है।
बाइडन सत्ता संभालने के बाद से ही अपने ईरान-प्रेम में अंधा होकर इज़रायल और अरब देशों को किनारे करने का प्रयास कर रहे हैं। वे ना सिर्फ इज़रायल के हितों के खिलाफ कदम उठा रहे हैं, बल्कि फिलिस्तीन के मुद्दे को दोबारा हवा देने का प्रयास कर रहे हैं, जिसने इज़रायल की चिंताओं को बढ़ा दिया है। अब UAE ने इज़रायल में निवेश का ऐलान करके अपने यहूदी साथी देश के प्रति समर्थन ज़ाहिर किया है।
UAE ने इज़रायल के “रणनीतिक क्षेत्रों” में निवेश करने हेतु अलग से एक फंड का निर्माण किया है, जिसके लिए 10 बिलियन डॉलर की राशि आवंटित की गयी है। यह निवेश इज़रायल के तेल, उत्पादन, जल, स्पेस और कृषि जैसे sectors में किया जाएगा। यह निवेश अरब देशों और इज़रायल के बीच हुए Abraham Accords को और मजबूर करेगा और दोनों पक्षों के आपसी आर्थिक रिश्तों को और ज़्यादा प्रगाढ़ बनाएगा। यह दर्शाता है कि एक तरफ जहां बाइडन ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम पर नर्म रुख अपनाकर ईरान को न्यूक्लियर देश बनने के खतरे को मौल ले रहे हैं, तो वहीं UAE और इज़रायल एक दूसरे के साथ आर्थिक समझौते कर क्षेत्र में संपन्नता को बढ़ावा दे रहे हैं।
ट्रम्प ने अपने चार सालों के कार्यकाल में UAE और अरब देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने में काफी कूटनीतिक पूंजी निवेश की थी। Abraham Accords को साइन करने के बाद भी अमेरिका ने UAE के लिए कई घोषणाएँ की थीं। ऑफिस छोड़ने से पहले ट्रम्प ने UAE से आयात होने वाले Aluminum पर से आयात कर हटाने का फैसला लिया था। इसके साथ ही ट्रम्प ने UAE के साथ 50 F-35 फाइटर जेट्स और 18 drones बेचने को लेकर भी एक समझौता पक्का किया था। हालांकि, बाइडन ने आते ही इन सभी फैसलों को पलटकर Abraham Accords को कमजोर करने की पूरी कोशिश की।
बाइडन ने ईरान पर जिस प्रकार नर्म रुख अपनाया है, उसने अरब देशों के साथ-साथ इज़रायल के लिए भी चिंताएँ बढ़ा दी हैं। बाइडन की कोशिश थी कि कैसे भी करके UAE और अरब देशों के बीच के शांति समझौते को कमजोर किया जाये। हालांकि, अब तक UAE और इज़रायल, दोनों देशों ने मिलकर बाइडन को कड़े संकेत ही भेजे हैं। एक तरफ जहां UAE ने इज़रायल में अपने राजदूत को तैनात करने के फैसला ले लिया तो वहीं इज़रायल ने भी साफ शब्दों में बाइडन को चेता दिया कि अगर अमेरिका ईरान को न्यूक्लियर देश बनने देगा तो इज़रायल ईरान पर हमला करने से पीछे नहीं हटेगा। इसके साथ ही बाइडन प्रशासन द्वारा फिलिस्तीन मुद्दे को हवा देना उसपर ही भारी पड़ गया क्योंकि उसके तुरंत बाद बहरीन ने फिलिस्तीन को दी जाने वाली आर्थिक मदद को कम करने का ऐलान कर दिया।
कुल मिलाकर अरब देशों और इज़रायल पर दबाव बनाने की बाइडन की रणनीति पूरी तरह फेल साबित हुई है। अब जिस प्रकार UAE ने इज़रायल में निवेश करने का फैसला लिया है, उसने भी बाइडन के खाते में एक और हार को शामिल कर दिया है।