पश्चिम बंगाल में चुनाव की तिथि जैसे जैसे पास आ रही है वैसे वैसे ममता बनर्जी और TMC के हाथ से सत्ता फिसलती जा रही है। बीजेपी द्वारा अपनाई गयी सियासी रणनीति के सामने सभी पार्टियाँ धराशाई हो चुकी है। इसी क्रम में अब बीजेपी ने जनता को अपने पक्ष में करने के लिए एक ऐसी चाल चली है जिससे जीत की मोहर लगनी तय है और ममता बनर्जी को इस बात की हवा तक नहीं लगेगी।
दरअसल बीजेपी ने पश्चिम बंगाल के उद्योग व्यापार में मारवाड़ियों की जबरदस्त धमक और प्रभाव को देखते हुए राजस्थान के नेताओं को बंगाल चुनाव में उतारा है। रिपोर्ट के अनुसार 50 से अधिक नेताओं को प्रचार की जिम्मेदारी दी गई है।
बता दें कि डेढ़ सौ साल से भी अधिक समय से मारवाड़ी समुदाय बंगाल में है और आज जो कोलकाता दिखाई देता है उसे बनाने में इस समुदाय का एक बेहद अहम रोल था। पश्चिम बंगाल का हर मारवाड़ी अपने आप को अब बंगाली ही मानता है। कई मारवाड़ियों का तो यह कहना हैं कि वे किसी भी अन्य बंगाली से अधिक बंगाली हैं।
परन्तु बंगाल में विधानसभा चुनावों से पहले ‘इनसाइडर-आउटसाइडर’ यानी बाहरी भीतरी करने में टीएमसी विशेष रूप से राज्य के गैर-बंगाली मतदाताओं को नाराज कर चुकी है जो लगभग राज्य के 15 प्रतिशत वोट रखते हैं जिसमें मारवाड़ी समुदाय सबसे अधिक है।
बंगाल में मारवाड़ियों के आने की कहानी 17वीं शताब्दी में शुरू हुई थी जब बीकानेर के व्यापारी मुग़ल सेना के साथ बंगाल पहुंचे थे। उस समय अपने धन के कारण इस समुदाय के प्रमुख को ‘जगतसेठ’ का उपनाम मिला था। यहाँ तक कि ईस्ट इंडिया कंपनी को भी इनसे क्रेडिट लेना पड़ा था।
आज मारवाड़ी परिवार जैसे खेतान, गोयनका, बिरला, शेखसरिया और नेओतिया पश्चिम बंगाल के अन्दर सांस्कृतिक के साथ ही बंगाल के वाणिज्यिक परिदृश्य को चलाते हैं। लेखक और इतिहासकार सुदीप चक्रवर्ती बताते हैं, “मारवाड़ी ही सांस्कृतिक नींव जैसे मंदिर, आर्ट ग्लेरी, और प्रकाशन गृह चलाते हैं।
वे साहित्य उत्सवों को प्रायोजित करते हैं। प्रतिष्ठित सत्यजीत रे द्वारा निर्देशित कई फिल्में एक मारवाड़ी व्यक्ति द्वारा निर्मित की जाती हैं। बंगाल की प्रिय दार्जिलिंग चाय बनाने वाली लोपचू चाय की संपत्ति एक मारवाड़ी परिवार के पास तीन पीढ़ियों से है।“
कुछ ईसाई मिशनरी स्कूलों को छोड़कर, कोलकाता में लगभग हर दूसरा स्कूल मारवाड़ीयों का ही है। अस्पतालों से लेकर रेस्तरां तक यहां तक कि शहर (कलकत्ता इलेक्ट्रिक सप्लाई कॉर्पोरेशन) में भी बिजली की आपूर्ति का स्वामित्व मारवाड़ियों के पास है।
यानी देखा जाये तो एक तरह से ये विधान सभा चुनावों में X-Factor साबित होने वाले हैं।
यही कारण है कि अब बीजेपी ने इन्हें अपने पक्ष में करने के लिए राजस्थान के करीब 50 नेताओं को सिलिगुड़ी से लेकर कूचबिहार तक और कोलकाता से बर्दवान तक चुनाव प्रबंधन का जिम्मा सौंपा है।
न्यूज़ 18 की रिपोर्ट के अनुसार एक दर्जन विधानसभा क्षेत्रों में मारवाड़ियों व हिंदी भाषी मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है। इस हिसाब से क्षेत्रों के चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी राजस्थान विधानसभा के उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ और प्रदेश संगठन के पदाधिकारी भजनलाल शर्मा के पास है।
इनके अलावा संगठन से बगैर दायिव वाले लोग भी पश्चिम बंगाल में काम कर हैं।इनमें केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी शामिल हैं जुगल शर्मा, चौमूं से श्याम शर्मा, धनराज सोलंकी के नाम है। इसी तरह जयपुर के पूर्व डिप्टी मेयर मनीष पारीक, अजमेर के डिप्टी मेयर नीरज जैन सहित कई लोग पहुंच चुके हैं। वहीं राज्य के राज्यपाल जगदीप धनखड़ राजस्थान से ही है।
जिस ‘बाहरी-भीतरी’ राजनीति को अपना कर ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल के लोगों को बाँट कर चुनाव जीतना चाहती थी अब वही उन पर भारी पड़ने वाला है। बीजेपी ने चुनाव से ठीक पहले यह एक ऐसी चाल चली है जिसके ममता बनर्जी के पैरों तले जमीन खिसक जाएगी और उन्हें पता भी नहीं चलेगा।