‘Black lives Matter’ बस अमेरिका में? यमन में 500 अश्वेत लोगों को जलाया, पर किसी ने इस मुद्दे पर कोई प्रकाश नहीं डाला

यमन

पिछले वर्ष अमेरिका में ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ का नारा ज़ोरों शोरों से गूँजा था। इसी के दम पर जो बाइडन भी अमेरिका के राष्ट्रपति पद को प्राप्त करने में कामयाब रहे थे। लेकिन अब ऐसा लगता है कि ये अभियान केवल अमेरिका तक ही सीमित था, क्योंकि यमन में अभी हाल ही में अश्वेत समुदाय के 500 से अधिक लोगों की जघन्यतापूर्ण हत्या हुई है, लेकिन इसकी निंदा तो छोड़िए, कोई इसके बारे में चर्चा तक नहीं करना चाहता।

जिस हूथी समुदाय को ट्रम्प प्रशासन ने आतंकी घोषित किया, उसके ऊपर से यह टैग हटाने से पहले बाइडन प्रशासन ने एक बार भी नहीं सोचा। अब यमन में अफ्रीकी प्रवासियों पर दिन प्रतिदिन हूथी आतंकी अत्याचार ढा रहे हैं, और कुछ ही दिनों पहले 500 से अधिक अफ्रीकी प्रवासियों को जिंदा जला दिया गया, लेकिन कोई इस विषय पर कुछ भी नहीं बोलना चाहता है।

जेनेवा आधारित SAM Organization for Rights and Liberties द्वारा कुछ प्रवासियों से साक्षात्कार से पता चला है कि हूथी आतंकियों ने अफ्रीकी प्रवासियों द्वारा उनके साथ हो रही बदसलूकी के विरुद्ध हड़ताल करने के लिए हमला किया, जिसमें बमों का भरपूर इस्तेमाल किया गया, और उसके कारण उत्पन्न आग में 450 से भी ज्यादा प्रवासी मारे गए”।

इस रिपोर्ट की पुष्टि कई स्वतंत्र संगठनों ने की है। यमन के निवासियों के मानवाधिकार के लिए लड़ने वाले Mwatana ग्रुप ने बताया कि कैसे हूथी समुदाय ने अफ्रीकी प्रवासियों की जघन्य हत्या की है और उनके परिजनों पे दबाव डाला जा रहा है कि वे इस विषय पर कुछ न बोले। इसके अलावा यमन के ही Women Solidarity Network ने हूथी समुदाय पर गोलियों और विस्फोटकों के जरिए अफ्रीकी प्रवासियों की हत्या करने का आरोप लगाया है।

कमाल की बात तो यह है कि यह नरसंहार उसी दिन हुआ, जिस दिन अमेरिका के शहर मिनीपोलिस ने जॉर्ज फ्लॉय्ड की हत्या के एवज में उसके परिवार को 27 मिलियन डॉलर का मुआवजा देने की बात की। ये वही जॉर्ज फ्लॉय्ड है, जिसकी मृत्यु के कारण अमेरिका में दावानल की भांति ब्लैक लाइव्स मैटर का अभियान फैला था।

लेकिन यमन में हुए इस क्रूर नरसंहार की निंदा तो छोड़िए, अमेरिका के कथित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के मुंह से इस विषय पर एक शब्द तक नहीं निकला। स्वयं जो बाइडन तक इस विषय पर चुप्पी साधे हुए हैं। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि यमन में जो हुआ, उसपर अमेरिकी प्रशासन की चुप्पी ये स्पष्ट करती है कि अमेरिका के लिए केवल उसके अश्वेत अश्वेत है, बाकी दुनिया के अश्वेतों के साथ कुछ भी हो, किसी को कोई फरक नहीं पड़ता।

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