जापान और दक्षिण कोरिया के बीच सैन्य संबंधों को बढ़ाने की खबर के बाद चीन के लिए एक और बुरी खबर आई है। रिपोर्ट के अनुसार जापान और जर्मनी ने सोमवार को रक्षा सहयोग को मजबूत करने के लिए ‘classified information’ के आदान-प्रदान की सुविधा के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है।
जापान के विदेश मंत्री Toshimitsu Motegi और जापान में जर्मनी के राजदूत Ina Lepel के बीच टोक्यो में समझौते पर हस्ताक्षर हुआ। इसका प्रमुख कारण जर्मनी की इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को बढ़ावा देना है। Motegi ने Lepel को बताया कि जापान पिछले साल घोषित किये गए जर्मनी के इंडो-पैसिफिक नीति दिशानिर्देशों का स्वागत करता है।
बता दें कि फरवरी 2019 से, जब जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ बातचीत के लिए टोक्यो में थीं, तब दोनों देशों ने इस तरह की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए बातचीत की थी।
इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती शक्ति को देखते हुए जर्मनी ने इंडो-पैसिफिक नीति दिशानिर्देशों में एशिया के साथ जुड़ाव ही अपनी आर्थिक क्षमता को बढ़ाने के अपने इरादे को रेखांकित किया था ।
आज जिस तरह से इंडो-पैसिफिक में चीन की गुंडागर्दी बढ़ती जा रही है और सभी देश उसके खिलाफ भड़क चुके हैं उसे देखते हुए जर्मनी की नीतियों में यह बदलाव बेहद अहम था। अब समय की ज़रूरत को भाँपते हुए जर्मनी ने भी अपनी इंडो-पैसिफिक नीति को जारी किया है, जिसमें उसने भारत और जापान की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया था।
जर्मनी के लिए जापान औए भारत जैसे देशों के साथ अपने संबंधो को और मजबूत करना और उनके साथ सहयोग को बढ़ाना जर्मनी के लिए बेहद अहम है। अगर उसे यूरोप में अपना दबदबा बनाए रखना है तो समय के साथ चलना आवश्यक है और आज के समय में इंडो पैसिफिक रणनीतिक और आर्थिक दोनों पहलू से सबसे महत्वपूर्ण देशों में से एक है।
जर्मनी सहित कई देश अपनी विदेश नीति में Indo-Pacific के महत्व को समझते हुए बदलाव करना शुरू कर चुके हैं। EU दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आर्थिक पावरहाउस है। परंतु यूरोप और Indo-Pacific की अर्थव्यवस्थाएं वैश्विक सप्लाइ चेन से जुड़ी हुई हैं। प्रमुख व्यापारिक मार्ग हिंद महासागर, दक्षिण चीन सागर और प्रशांत क्षेत्र से गुजरते हैं। जर्मनी को पता है कि, दुनिया का 25 प्रतिशत समुद्री व्यापार मलक्का स्ट्रेट से होकर गुजरता है। अगर यहां युद्ध की स्थिति बनती है तो हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर के बीच प्रति दिन 2000 से अधिक जहाजों के परिवहन में रुकावट आएगी और सप्लाई चेन पर गंभीर परिणाम होंगे। यही नहीं, यूरोप के बाहर जर्मनी का सबसे बड़ा निर्यात बाजार एशिया ही है। जर्मनी यह मानता है कि Indo-Pacific क्षेत्र में चीन की गुंडागर्दी से जर्मनी के भविष्य की समृद्धि और सुरक्षा पर सीधा प्रभाव पड़ने की संभावना है। यही कारण है कि, जर्मनी अब अपनी Indo Pacific नीति भारत पर केन्द्रित करने की बात कर रहा है।
जर्मनी ने स्पष्ट तौर पर यह कहा था कि, Indo-Pacific में शांति लाने के लिए वह भारत और जापान के साथ मिलकर काम करेगा और इसके लिए UN Security में सुधार लाने में भी समर्थन देगा। तब जर्मनी के विदेश मंत्री Heiko Maas ने इस बात पर बल दिया था कि, भारत और जापान के साथ मिलकर इंडो-पैसिफिक में अपनी उपस्थिति दिखाने के लिए जर्मनी की यह नीति बेहद आवश्यक है। अब जर्मनी चीन के खिलाफ अपना इंडो-पैसिफिक स्पष्ट बढ़ा रहा है। जापान के साथ उसका यह नया समझौता चीन के खिलाफ एक्शन में एक गेमचेंजर साबित होने वाला है।