राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए भारतीय सरकारी एजेंसियां अब चीनी दिग्गज टेलीकॉम कंपनी हुवावे को पूरे भारत में पांव फैलाने से रोकने पर काम कर रही हैं। दो सरकारी अधिकारियों के अनुसार, भारत सरकार इस साल जून में नए नियम लागू करने जा रही जिससे, भारतीय मोबाइल कंपनियों को हुवावे द्वारा बनाए गए टेलीकॉम हार्डवेयर का उपयोग करने से रोका जा सके।
रिपोर्ट के अनुसार सरकारी अधिकारियों में से एक ने बताया, ‘अगर कोई निवेश राष्ट्रीय की सुरक्षा में जोखिम पैदा करता है तो हम उसे आर्थिक लाभ नहीं दे सकते।’
रॉयटर्स के साथ बातचीत में वरिष्ठ अधिकारियों में से एक ने कहा, “हमने चीन से भी निवेश प्रस्तावों को कुछ मंजूरी देनी शुरू कर दी है, लेकिन हम दूरसंचार बुनियादी ढांचे और वित्तीय जैसे क्षेत्रों में कोई स्वीकृति नहीं देंगे।”
पिछले कुछ वर्षों से चीनी फर्म की मंशा के बारे में भारत को संदेह है, यही वजह है कि नई दिल्ली चीन की प्रौद्योगिकी कंपनियों से किसी उपकरण के कांट्रेक्ट करने से परहेज कर रहा है।
भारत से पहले, अमेरिका और यूरोप पहले ही चीनी कंपनी हुवावे के ऊपर चिंता जता चुके हैं। डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन ने हुवावे के खिलाफ वैश्विक अभियान की शुरुआत की थी। अमेरिका के तत्कालीन विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने कहा था, “Huawei जो कि पीपुल्स रिपब्लिक चाइना का एक हाथ है, वह प्रमुख अमेरिकी और विदेशी कंपनियों के प्रतिष्ठा के साथ खेल रहा है।”
बॉर्डर पर भारत और चीन के साथ विवाद के बाद भारत ने चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया था। अब तक, भारत ने लगभग 220 चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया था। अब भारत ने हुवावे को रोकने के लिए कदम बढ़ा दिया है।
बीबीसी के अनुसार, यूके की संसदीय जांच समिति ने दावा किया कि हुवावे और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच मिलीभगत के स्पष्ट सबूत हैं। रिपोर्ट में एक व्यवसायी के बारे में बात की गई है जिसने दावा किया था कि चीनी सरकार ने “पिछले तीन वर्षों में 75 बिलियन डॉलर के साथ हुवावे को वित्तपोषित किया है।”
भारत के दूरसंचार विभाग ने कहा कि 15 जून के बाद टेलीकॉम कैरियर केवल सरकार द्वारा अनुमोदित स्रोतों से टेलीकॉम उपकरण खरीद सकते हैं, और कहा कि नई दिल्ली “no procurement” ब्लैकलिस्ट लिस्ट बनाने की सोच रही है।
अधिकारियों ने यह भी पुष्टि की कि नई दिल्ली चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाने के फैसले को पलटने के मूड में नहीं है, या भारत की पेट्रोलियम और एयर इंडिया जैसी राज्य की फर्मों में चीन की कंपनियों को खरीदने की मंजूरी नहीं देगी।
भारतीय टेलीकॉम कंपनियां जैसे भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया हुवावे के कई उपकरण इस्तेमाल करते हैं। अब हुवावे पर प्रतिबंध उन भारतीय दूरसंचार कंपनियों को प्रभावित करने वाले है जो चीन की फर्मों पर बहुत अधिक निर्भर हैं। अब इन कंपनियों को हार्डवेयर उपकरण के लिए नए पार्टनर ढूंढने की आवश्यकता पड़ेगी।
हाल ही में, दूरसंचार कंपनी एयरटेल ने आगे बढ़कर हुवावे के साथ 300 करोड़ रुपये के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। कोरोना के बाद हुवावे का बिजनेस ठप होने के बाद एयरटेल ने यह कदम उठाया है। यूनाइटेड किंगडम, इटली, कनाडा, सभी ने हुवावे पर प्रतिबंध लगा दिया था।
इससे पहले, अप्रैल 2020 में, भारत सरकार ने एक नई एफडीआई नीति लागू किया था। यह सिर्फ COVID-19 समस्याओं के कारण भारतीय कंपनियों का चीनी कंपनियों द्वारा अधिग्रहण रोकने के लिए लागू किया गया था।