आज अगर देश के चार प्रमुख शहरों की बात करें तो जुबान पर दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता का नाम आता है, लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या कोलकाता इन अन्य तीन शहरों की तरह इस सूची में आने की पात्रता रखता है ? जवाब यकीनन न ही होगा, क्योंकि पश्चिम बंगाल की राजनीति ने इस एतिहासिक शहर को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, लेकिन विधानसभा चुनाव समूचे पश्चिम बंगाल के साथ ही राजधानी कोलकाता की उम्मीदों को भी नए पंख लगा रहा है, क्योंकि बंगाल में सत्ता परिवर्तन की संभावनाएं कोलकाता को उसके खोए हुए गौरव को वापस दिलाने की ओर इशारा करने लगी हैं।
अंग्रेजों के शासनकाल में बंगाल भारत की राजधानी हुआ करता था। देश के लिए किए गए सारे फैसलों पर बंगाली थिंक टैंक की छाप होती थी। कोलकाता को सबसे समृद्ध शहरों में गिना जाता था, लेकिन देश की राजधानी बदलने के साथ ही जब देश आजाद हुआ तो बंगाल और कोलकाता की किस्मत ही बदल गई। कांग्रेस का शुरुआती शासन और फिर लेफ्ट के 35 सालों के राज में कोलकाता दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों से पिछड़ता चला गया और आज कोलकाता का ग्राफ अधर में अटका हुआ है।
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बंगाल समेत पूरे कोलकाता में राजनीतिक हिंसा से लेकर आंदोलन के नाम पर अराजकता ने लोगों का मोह भंग कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय सीमावर्ती राज्य होने के बावजूद यहां की राजधानी कोलकाता देश के अन्य सभी प्रमुख शहरों में सुविधाओं की सूची के मामले में पिछड़ जाती है। ऐसे में यहां अब राज्य के आधारभूत ढांचे में विशेष परिवर्तन की आवश्यकता है। हम आपको अपनी रिपोर्ट्स में बता चुके हैं कि अब भारत को अपने शहरों का विस्तार करने की आवश्यकता है, लेकिन कोलकाता में इसका कोई असर नहीं दिख रहा।
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राजधानी दिल्ली के आस-पास के शहरों की बात करें तो गुरुग्राम, नोएडा, फरीदाबाद ऐसे शहर हैं, जो दिल्ली पर पड़ने वाला जनसंख्या दबाव को अच्छी तरह से हैंडल कर रहे हैं। इसके विपरीत जिस कोलकाता को अपनी कर्मभूमि बनाने लोग वहां जाते थे, वही लोग अब कोलकाता को नजरंदाज कर दिल्ली, मुंबई, पुणे, बैंगलोर और चंडीगढ़ जैसे शहरों का रुख कर रहे हैं। बंगाल में अब प्रवासियों की तादाद भी घटती ही जा रही है।
केंद्र सरकार अनेक योजनाओं ( पीने योग्य पानी की सुविधा, जल निकासी, गैस पाइप लाइन) के जरिए सुविधाओं में विस्तार कर शहरों को नए सिरे से बनाने का काम कर रही है, लेकिन ये सारी योजनाएं और रोडमैप कोलकाता के लिए सब व्यर्थ हैं। सार्वजनिक यातायात से लेकर सड़क निर्माण और लोगों की लाइफस्टाइल तक के मामले में कोलकाता अन्य बड़े शहरों के सामने नहीं टिक पाता है।
केंद्र की भारी भरकम महत्वकांक्षी योजनाएं दिल्ली से चलकर कोलकाता आते-आते केवल इसलिए दम तोड़ देती हैं, क्योंकि राज्य में राजनीतिक दखल हद से ज्यादा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने राज्य के नागरिकों को सुविधाओं से वंचित रखने के साथ ही राजधानी कोलकाता के विकास के मसौदों पर भी राजनीतिक बदनियती की कुंडली मार कर बैठी हैं, जो विकास कार्यों के लिए सबसे बड़ी बाधा है। अब ये सब बदलता दिख रहा है, क्योंकि सत्ता परिवर्तन की संभावनाएं बढ़ती जा रहीं हैं।
पश्चिम बंगाल में पिछले 6 सालों में बीजेपी ने युद्ध स्तर पर अपने जनाधार का विस्तार किया है। 2019 के लोकसभा चुनावों में लगभग आधी सीटों पर बीजेपी की जीत इस बात का ही प्रमाण है। लोकसभा चुनावों की जीत के साथ शुरू हुआ बंगाल में बीजेपी का विजय रथ अब विधानसभा चुनाव में एक बार फिर तीव्र गति पकड़ता दिख रहा है। अलग-अलग विश्लेषकों और एजेंसियों के सर्वे इस बात का संकेत दे रहे हैं कि बंगाल में बीजेपी की जीत तय है।
अगर सर्वे के आधार पर ही बात करें तो बीजेपी के सत्ता में आने के बाद कोई भी पिछड़ा राज्य विकास की मुख्य धारा से अलग नहीं रह पाया है। इसीलिए ये माना जा रहा है कि बंगाल की जीत के बाद कोलकाता को पुनः उसका प्राचीन गौरव हासिल होगा। कथित तौर पर ही सही मेट्रोपोलिटन शहर कहा जाने वाला कोलकाता; दिल्ली, मुंबई, चेन्नई जैसे यथार्थ मेट्रोपोलिटन सिटीज की सूची में शामिल होगा, जिसमें बीजेपी की संभावित बंगाल सरकार की बड़ी भूमिका होगी।