जब किसान आन्दोलन की शुरुआत में योगराज सिंह को हिंदुओं के खिलाफ जहर उगलने और महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक भाषा का उपयोग करने के लिए छुट दे दी गयी थी, तभी कई लोगों को यह समझ आ गया था कि आंदोलन को चलाने वाले कृषि से संबंधित नहीं, बल्कि खालिस्तान-समर्थक भारत और हिंदुओं के खिलाफ अपनी घृणा के लिए ये सब कर रहे हैं। इस मुद्दे में और कोई कारण ढूंढना अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा।
अब यह तत्काल जरूरत है कि भारतीय सिखों के भीतर जो भी ‘खालिस्तान’ के हास्यास्पद विचार का थोड़ा-बहुत समर्थन है उसे संबोधित किया जाए। यह लेख भारतीय सिखों के बारे में है न कि प्रवासी सिख (जो विदेशी देशों में हैं) के बारे में। वे न तो भारतीय हैं, न ही मैं उन्हें सिख मानता हूँ।
क्यों? यह तथ्य है कि विदेशों में रहने वाले लोग भारत के बारे में कुछ नहीं जानते हैं, और वहां यह प्रचारित किया जाता है कि भारत सिखों के लिए सुरक्षित स्थान नहीं है। इसी कारण अमेरिका, कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में खालिस्तानियों ने अपना जाल फैला रखा है और भारतीय राष्ट्रवादियों पर हमला करते रहते हैं।
उदाहरण के लिए, कनाडा के ब्रैम्पटन में हाल ही में ‘Tiranga and Maple rally’ के दौरान, खालिस्तानियों ने भारतीय प्रवासियों के सदस्यों पर हमला करते हुए उन्हें “मूत्र पीने” के लिए कहा। यही नहीं TFI ने हाल ही में बताया था कि कैसे एक आदमी बीबीसी द्वारा लाइव-होस्ट किये जा रहे पॉडकास्ट पर आया नरेंद्र मोदी और उनकी मां के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग किया। ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में, किसानों के आंदोलन से पहले ही, एक खालिस्तानी द्वारा भारत विरोधी टिकटोक वीडियो पोस्ट करने के बाद एक खूनी विवाद हुआ था , जिसमें एक हरियाणवी ने उस विडिओ पर आपत्ति जताई गई थी। ऐसे सिखों के दिमाग अतिवाद और हिंदू-नफरत से भरा हुआ प्रतीत होता है।
इसलिए अन्य देशों के खालिस्तानियों के बारे में बात करने के लिए कुछ है ही नहीं। हमारी चिंता भारतीय सिखों के लिए होनी चाहिए। भारतीय सिख समुदाय के भीतर मौलिक सामाजिक दोष मौजूद हैं। अब कोई यह कहे कि मुझे इन दोषों के बारे में खुलकर बोलने का कोई अधिकार नहीं है, तो मैं बता दूँ कि मैं उस समुदाय का हिस्सा हूं जो वर्तमान में चरमपंथियों, खालिस्तानियों, वामपंथियों, राजनीतिक ताकतों के कॉकटेल द्वारा निर्धारित नैरेटिव का शिकार हैं।
आज समाज में इस तरह की गलत सूचनाओं का भंडार है कि कोई भी आम आदमी इस जाल में फंस जाएगा, अगर उसे सही तथ्य नहीं बताया गया।
आइए आज हम सिख समुदाय के अन्दर मौजूद उन दोषों के बारे में बात करते हैं, जिन्हें अगर जल्द ही संबोधित नहीं किया जाता है, तो यह न केवल देश के लिए परेशानी खड़ा करेगा बल्कि सिख समुदाय के लिए भी।
हिंदू घृणा
सबसे पहले कठिन टॉपिक पर चर्चा करते हैं। इस तथ्य से कोई इनकार नहीं करता है कि सिख समुदाय का एक छोटा सा हिस्सा हिंदू समुदाय के लिए घृणा पैदा करता है। इनमें ज्यादातर उच्च जाति के व्यक्ति होते हैं।
वर्ष 2014 में पीएम मोदी के आने के साथ, भारत के बहुसंख्यक समुदाय के लिए यह घृणा और जहरीली हो गया है। एक ऐसे व्यक्ति का दिल्ली की सत्ता में आना जो हिंदुओं के लिए खड़ा रहा है, जिसने अपनी सनातन संस्कृति को गर्व से अपनाया और जो इसका सार्वजानिक प्रदर्शन करने से पीछे नहीं हटता और जिसने अतीत में स्वयं को ‘हिंदू राष्ट्रवादी’ होने का दावा किया हो। केवल प्रधानमंत्री मोदी की छवि को देखकर खालिस्तानियों के अंदर हलचल मच गयी। वे अभी भी उन्हें नहीं देखना चाहते।
किसानों का विरोध प्रदर्शन एक ऐसा अवसर था जिसे वे प्रधानमंत्री मोदी पर हमले करने के मौके के रूप में देख रहे थे। पंजाब के वामपंथी-झुकाव वाले किसानों की यूनियनों द्वारा शुरू किया गया यह आंदोलन जल्द ही सिख समुदाय की पहचान की रक्षा करने की ओर मुड़ गया। प्रदर्शनकारियों के अनुसार, भाजपा के नेतृत्व वाली मोदी सरकार उनके पहचान पर हमला कर कर रही है।
बता दें कि अतीत में किसी भी अन्य सरकार ने मोदी सरकार के जितना सिखों के कल्याण की बात करने और उनके गौरवशाली इतिहास के प्रचार-प्रसार का काम नहीं किया है। हालांकि यह पूरी तरह से एक अलग बहस का विषय है।
इस आन्दोलन में कृषि और ‘सिख’ को एक दूसरे के पर्याय के रूप में पेश किया गया था। इसमें कोई शक नहीं है कि वे आंतरिक रूप से जुड़े हुए हैं, जिस पर मैं विवाद नहीं करता।
लेकिन जब आंदोलन के शुरुआती दिनों में खालिस्तानी लोगों द्वारा धार्मिक कोण का प्रयोग किया गया था, और चमत्कारिक ढंग से यह काम कर गया, तब इन भारत विरोधी तत्वों ने अपने ज़हर उगलने के लिए इस आन्दोलन को हाइजैक कर लिया।
प्रदर्शनकारियों को बस यह बताने की जरूरत थी कि मोदी सरकार द्वारा उनकी धार्मिक पहचान, उसके बाद उनकी आजीविका पर हमला किया जा रहा था। जल्द ही, पूरा पंजाब दिल्ली यानि मोदी सरकार के खिलाफ आंदोलन करने के लिए एक इकाई के रूप में उठा।
सिखों के लिए, दिल्ली ऐतिहासिक रूप से अधीनता और उत्पीड़न का प्रतीक रहा है। मुगलों के समय से लेकर वर्तमान तक इंदिरा गांधी के जरनैल सिंह भिंडरावाले तक- दिल्ली केंद्र में रहा है। लेकिन अब सिख समुदाय की इसे महसूस करने की आवश्यकता है कि स्वतंत्र भारत की दिल्ली, और विशेष रूप से 2021 में आपका दुश्मन नहीं है। हिंदू आपके दुश्मन नहीं हैं। प्रधानमंत्री मोदी आपके दुश्मन नहीं हैं। जब तक सिखों को इस बात का अहसास नहीं होगा, वे खालिस्तानियों, राजनीतिक दलों और कम्युनिस्टों के प्रोपोगेंडे का शिकार होते रहेंगे।
जट्ट दी शान
मैं किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं मानता जो अपनी जाति के साथ अपनी पहचान रखता हो, और साथ में वह सिख होने की भी घोषणा करता हो। आप या तो जट्ट हैं, या सिख हैं। आप या तो मजहबी हैं, या सिख हैं। सिख में कोई बीच का रास्ता नहीं हैं। सिखों के लिए जाति पर स्पष्ट मैनडेट है कि कोई भी जाति नहीं है।
इसलिए, जब पंजाबी गीतों को जट्ट वर्चस्व के गानों के साथ जोड़ा जाता है, और फिर मोदी सरकार, ‘दिल्ली’ और सामान्य रूप से हिंदुओं के खिलाफ आग उगलने के लिए उपयोग किया जाता है – तब यह सभी को पता होना चाहिए कि दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे पंगत के पीछे सिखों के सिर्फ एक उप-समुदाय हैं। यहां मुद्दा कृषि या खेती का नहीं है। यहां मुद्दा जाटों के गौरव को लेकर है, और उन्हें लगता है कि मोदी सरकार उन्हें कुचल रही है। उन्हें लगता है कि सरकार उनकी तरफ से फैसले लेने की हिम्मत कैसे कर सकती है? दिल्ली की सीमाओं पर विरोध करने वालों में अधिकतर ’किसान नहीं हैं।’ वे कृषि भूमि के मालिक हैं, तथा उन्होंने अपने खेतों में खेती के लिए मजदूर लगा रखे हैं।
ये वे लोग हैं जिनके आढ़तियों के साथ एक सांठगांठ है, और उनकी दुनिया में, तीसरे पक्ष यानि प्राइवेट प्लेयर के लिए कोई जगह नहीं है। इसलिए, धार्मिक विषाक्तता और जाति के वर्चस्ववाद पर, हमारे जाट भाई और बहन अपने ट्रैक्टरों के साथ दिल्ली में मार्च कर रहे हैं ताकि एक सरकार के खिलाफ आंदोलन किया जा सके।
यहां यह भी ध्यान देने वाली बात है कि दिल्ली की सीमाओं पर विरोध करने वाले सभी Jatts और Jaats हैं। Jatts पंजाब और उत्तराखंड के तराई क्षेत्र से आते है; Jaats हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आते हैं।
हिंसा
26 जनवरी को जब लाल किले पर तोड़फोड़ और हिंसा हुई तभी किसानों ने अपने आन्दोलन की जमीन को खो दिया था। जो लोग हिंसा में भी उलझते दिखे, उनमें ज्यादातर सिख थे। ऐसी हिंसा से पहले, प्रदर्शनकारियों को कम से कम गंभीरता से लिया जा रहा था। लेकिन उनके अनावश्यक हिंसक प्रदर्शन के बाद, उन्होंने खुद को एक मजाक में बदल दिया। और क्या लाल किले पर निशाण साहिब को फहराने से मेरे समुदाय को क्या मिला? आखिर क्या बदलाव आया? क्या हम अचानक एक खालसा राज के अधीन हैं?
यदि नहीं, तो पहली बार में ऐसा मूर्खतापूर्ण काम क्यों किया गया, जिसने केवल प्रदर्शनकारियों (बड़े पैमाने पर सिखों) और राष्ट्रवादियों के बीच विभाजन पैदा किया है। वास्तव में, सिख को अधिकांश लोगों के बीच अभी भी हैं जिन्हें भारत में सबसे राष्ट्रवादी समुदाय के रूप में माना जाता है। बावजूद इसके ऐसी हरकत से धब्बा ही लगा है।
मैंने पहले भी बात की है कि सिखों को शांत होने और ठंड रखने की आवश्यकता है। ये मुगलों का समय नहीं है, और न ही हमें आधी रात को अफगानों से लड़ना है। हम एक लोकतंत्र में रहते हैं, जिसमें हिंसा का कोई स्थान नहीं है। यह उन लोगों के सर्वोत्तम हित में होगा, जिन पर आरोप लगा है कि वे अपने कृपाण से किसी भी व्यक्ति पर हमला कर देते हैं, वे अब खुद सामान्य व्यवहार करना शुरू कर दें, और पूरे समुदाय को बदनाम न होने दें।
ये कृपाण पवित्र हैं – जिसका मतलब केवल दया के उद्देश्य से उठाया जाना है। उनका उपयोग भारतीय पुलिस अधिकारियों के हाथ और पैर काटने के लिए नहीं किया जाता है। जो लोग अभी भी उस रास्ते को जारी रखना चाहते हैं, उन्हें मेड इन चाइना तलवार और चाकू खरीदनी चाहिए, और अपने कृपाण को छोड़ देना चाहिए। निर्दोष लोगों पर हमला करने के लिए कृपाण का उपयोग देखना एक दर्दनाक दृश्य है।
अस्तित्व की लड़ाई नहीं है
इस समुदाय के एक हिस्से के रूप में, मुझे पता है कि दिल्ली की सीमाओं पर विरोध कर रहे किसानों के समर्थन में खड़े होने के लिए साथी सिखों पर तरह-तरह के दबाव हैं। उन्हें उनका समर्थन करना चाहिए या नहीं, यह उनके लिए एक शिक्षित विकल्प है। हालाकि, समय की आवश्यकता है कि हम अपने समुदाय के भीतर के अतिवादियों को पहचानें, और दंडित करें।
नए कृषि सुधार किसी भी तरह से अस्तित्व पर संकट नहीं हैं। खेती सुधारों के बारे में अभी तक मैंने जिस भी सिख से व्यक्तिगत रूप से बातचीत की है उन्हें नए कृषि सुधारों के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं है। वे बस इतना जानते हैं, कि मोदी एक हिंदू है और सिखों पर हमले करने की राह देखने वाला एक बुरा आदमी है। यह एक आत्मघाती दृष्टिकोण है, और इससे कुछ हासिल नहीं होने वाला है।
अब मूर्ख बनाने का समय समाप्त हो गया है। सर्दियां खत्म हो गई हैं। फसल का मौसम करीब आ रहा है। आइए हम स्वार्थी समूहों जैसे चरमपंथियों, खालिस्तानियों, वामपंथियों, राजनीतिक ताकतों से मूर्ख न बनें और खुद का मजाक बनवायें। मैं जानता हूं कि हिंदू और सिख एक हैं। हम गुरुद्वारों में उतना ही जाते हैं जितना हम मंदिरों में जाते हैं। हम जितने उत्साह से गुरुपर्व मनाते हैं, उतने ही उत्साह के साथ नवरात्रि भी मनाते हैं। किसी भी चरमपंथी को यह बताने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए कि हम अलग हैं। समुदाय के भीतर कट्टरपंथी तत्वों को बाहर करने के लिए हम जिम्मेदारी हैं। यदि हम नहीं करते हैं, तो हमारे पास सिख पहचान के कमजोर होने के लिए खुद को दोषी ठहराने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।
(अभिनव कुमार द्वारा अनुवादित)