‘सांप निकल जाए और लाठी पीटते रहना’ कांग्रेस नेता और वायनाड से लोकसभा सांसद राहुल गांधी की वर्तमान मनोस्थिति भी कुछ ऐसी ही है। उनके साथ के नेता पार्टी में असहज महसूस करते रहते हैं, लेकिन राहुल गांधी कुछ ध्यान नहीं देते हैं, लेकिन जब वो लोग पार्टी छोड़ जाते हैं; तो राहुल छाती पीटते रह जाते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर राहुल का रवैया भी कुछ ऐसा ही है। जब तक सिंधिया कांग्रेस में थे, तो उनकी नाराजगी पर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया लेकिन जब वो बीजेपी में शामिल हो गए हैं तो राहुल किसी दिलजले आशिक की तरह उनकी आलोचना करते हुए उन्हें स्वार्थी बता रहे हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया एक वक्त कांग्रेस के दिग्गज नेता थे लेकिन अब वो बीजेपी में हैं। उनके इस बदले रुख को लेकर राहुल गांधी उनसे सबसे ज्यादा नाराज हैं। इस मुद्दे पर अब वो सिंधिया की आलोचना करते नहीं थक रहे हैं। उन्होंने कहा कि सिंधिया अब बीजेपी में अपमान का सामना कर रहे हैं। राहुल ने कहा, “सिंधिया के सामने कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ काम कर संगठन को मजबूत बनाने का विकल्प था। मैंने उनसे कहा था कि आप मेहनत कीजिए, एक दिन मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन उन्होंने दूसरा रास्ता चुना।”
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राहुल गांधी का कहना है कि सिंधिया बीजेपी में जाने पर अपना कद छोटा कर चुके हैं और उन्हें वहां वो सबकुछ नहीं मिलेगा जो कांग्रेस में उन्हें मिलना था। राहुल ने कहा, “आज बीजेपी में सिंधिया बैकबेंचर हैं। लिख कर ले लीजिए वो वहां कभी मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। उन्हें वापस यहीं आना होगा” राहुल का ये बयान बॉलीवुड फिल्म के किसी असफल आशिक सा प्रतीत होता है जो साथ छोड़ चुकी प्रेमिका के वापस आने का दावा करता हुआ हैप्पी एंडिंग का इंतजार करता है।
राहुल का कहना है कि सिंधिया को फिर कांग्रेस में आना होगा, लेकिन सवाल उठता है कि वो क्यों आएंगे और गए ही क्यों थे? मार्च 2020 में सिंधिया ने जब राहुल, प्रियंका और कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी से नाराजगी जाहिर की थी, तब कांग्रेस ने कोई ध्यान नहीं दिया। सिंधिया की नाराजगी के बावजूद राज्यसभा का टिकट गांधी परिवार के वफादार नेता दिग्विजय सिंह को दे दिया गया। नतीजा ये कि हजारों बार अपमान का घूंट पी चुके सिंधिया ने मध्य प्रदेश में इस बार बगावत कर दी थी और कांग्रेस की राज्य ईकाई मे फूट पड़ गई।
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सिंधिया आज बीजेपी में सम्मान के साथ राज्यसभा के नेता हैं और पार्टी मध्य प्रदेश में उनकी छवि का फायदा उठाने की नीयत भी रखती है। इसीलिए पार्टी की ओर से उन्हें प्रतिष्ठित पद दिए गए हैं, क्योंकि उनके पास एक बेहतरीन राजनीतिक कौशल है। उन्हीं की वजह से कांग्रेस ने 2018 के चुनावों में एमपी में सरकार बनाई थी लेकिन पार्टी ने उन्हें ही साइडलाइन कर दिया, जिसका अंजाम पार्टी को ही भुगतना पड़ रहा है, क्योंकि पार्टी मध्य प्रदेश में हाशिए पर जा चुकी है।
सिंधिया से इतर बात अगर राहुल गांधी के राजनीतिक सफर पर नजर डालें, तो राहुल पार्टी को हाशिए पर ले जाने के लिए अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता का बेहतरीन परिचय देते रहे हैं और इसीलिए देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी अब विलुप्त होती जा रही है। ऐसे में अब राहुल के पास अपनी उपलब्धियां गिनाने के लिए कुछ नहीं है। इसीलिए अब वो दिलजले आशिक की तरह सिंधिया की गैर मौजूदगी से परेशान हैं और बेतुके बयान दे रहे हैं।