अमेरिका में जब सत्ता परिवर्तन हुआ था तब सभी को यह उम्मीद थी कि जो बाइडन कुछ ऐसा करेंगे जिससे अमेरिका को घाटा अवश्य होगा। परन्तु यह उम्मीद नहीं थी कि वह अपने बेतुके बयानों और कदमों से अमेरिका के सहयोगियों को अपने चिर प्रतिद्वंदी रूस की तरफ मोड़ देंगे। आज अगर जिओपॉलिटिक्स को देखा जाये तो यही वास्तविकता है, अमेरिका का NATO सहयोगी तुर्की हो या पश्चिमी एशिया का सबसे वफादार साथी इजरायल या फिर QUAD के भारत और जापान ही क्यों न हो। ये सभी देश रूस के साथ संबंधों को प्राथिमिकता देना शुरू कर चुके हैं।
हाल ही में जब जो बाइडन ने एक इंटरव्यू के दौरान रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को किलर कह दिया था तब वैश्विक पटल पर हंगामा मच गया था। अब इस मुद्दे पर अमेरिका का NATO सहयोगी तुर्की व्लादिमीर पुतिन के पक्ष में आ चुका है। तुर्की के रेसेप तैयप एर्दोगन ने शुक्रवार को व्लादिमीर पुतिन को “हत्यारा” कहने पर संवाददाताओं से कहा, ” जो बाइडन की टिप्पणी एक राष्ट्र प्रमुख के अनुरूप नहीं है।” उन्होंने कहा, “पुतिन के बारे में बाइडन का बयान एक राष्ट्रपति को शोभा नहीं देता, और एक राष्ट्रपति द्वारा रूस जैसे देश के राष्ट्रपति के खिलाफ इस तरह की टिप्पणी अस्वीकार्य है, यह ऐसा कुछ नहीं है जिसे पचाया जा सकता है।”
वहीं, उन्होंने रूसी राष्ट्रपति पुतिन के जवाब को “स्मार्ट” और “उत्तम दर्जे की प्रतिक्रिया” बताया। एर्दोगन का यह बयान वाशिंगटन के साथ बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद तुर्की के संबंधों में आए तनाव को दिखाता है। बाइडन ने अभी तक राष्ट्रपति बनने के बाद तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन को फोन तक नहीं किया है। वहीं एर्दोगन और पुतिन दक्षिण तुर्की के Akkuyu power plant के शिलान्यास पर वीडियो कांफ्रेंसिंग भी कर चुके हैं जहाँ तुर्की ने रूस को एक रणनीतिक भागीदार बताया और विवादित मुद्दों जैसे लीबिया, सीरिया तथा अन्य को सुलझाने की बात कही। सीरिया पर अपने मतभेदों के बावजूद, एर्दोगन ने पुतिन को “मित्र और रणनीतिक साझेदार” कहा है। तुर्की ऐसा क्यों कर रहा है यह समझना मुश्किल नहीं है क्योंकि अमेरिका ने तुर्की पर कई प्रतिबन्ध लगा रखे हैं और आगे भी लगा सकता है क्योंकि अभी हाल ही में अमेरिका ने उस पर मानवाधिकार हनन का भी आरोप लगाया था। तुर्की अब इन्हीं प्रतिबंधों के असर को कम करने के लिए रूस के नजदीक जा रहा है और उसे अपने पाले में कर रहा है। यह उनकी बदलती प्राथिमिकता को ही दर्शाता है और इसके लिए सिर्फ बाइडन जिम्मेदार हैं।
सिर्फ तुर्की ही नहीं बल्कि इजरायल, जापान और भारत जैसे देश भी अब अपनी प्राथिमिकता बदलते दिखाई दे रहे हैं। इजरायल को बाइडन ने पहले नजरंदाज किया था फिर उसकी धमकी के बाद ध्यान दिया। वैसे भी ईरान के साथ दोबारा परमाणु समझौते होने की खबर से इजरायल अमेरिका से अभी भी नाराज चल रहा है। अमेरिका के इसी बदलते स्टैंड के कारण अब इजरायल भी विकल्प की तलाश में है। कुछ दिनों पहले ही इजरायल के विदेश मंत्री Gabriel Ashkenazi ने रूस की अपनी पहली यात्रा की थी और रूसी विदेश मंत्री के साथ बैठक की थी। इस दौरान दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने की बात हुई। यानी अब इजरायल रूस को अपना साझेदार बनाने की दिशा में कदम उठा रहा है। इस दौरान मास्को ने इजरायल के कई अरब देशों के साथ संबंधों के सामान्यीकरण का स्वागत किया है और कहा कि इस क्षेत्र में लंबे समय से चली आ रही फिलिस्तीनी समस्या को सुलझाने में मदद मिलेगी। यानी रूस भी इजरायल के साथ उन मुद्दों पर समर्थन कर रहा है जिस पर बाइडन अभी भी असमंजस में है।
वहीं, अगर देखा जाए तो अब बाइडन प्रशासन भारत को भी S400 मिसाइल डिफेन्स सिस्टम रूस से न खरीदने का दबाव बना रहा है। हालांकि, भारत पहले से ही रूस के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर चुका है तथा उससे हथियार खरीदता है तो यह कहने की आवश्यकता ही नहीं है कि भारत रूस के साथ प्राथमिकता बढ़ा रहा है। अगर ऐसे में अमेरिका भारत के ऊपर कोई प्रतिबन्ध लगाता है तो वह अपनी प्रासंगिकता को कम करेगा जिससे रूस का महत्व अपने आप बढ़ जायेगा। डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में भारत और अमेरिका सहयोग को एक नयी ऊंचाई मिली थी लेकिन अब बाइडन अब उसे बर्बाद कर रहे हैं।
एक और QUAD सहयोगी जापान भी अब बाइडन प्रशासन के कारण अमेरिका के छाए से बाहर निकल नए विकल्प तलाश कर रहा है। नए जापानी प्रधानमंत्री योशीहिदे सुगा ने रूस के साथ संबंधों के व्यापक विकास के लिए कुरील द्वीप समूह पर वार्ता को अंतिम रूप देने की योजना बनाई है। पिछले वर्ष ही जापानी प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से कहा था कि वह कुरील द्वीप समूह के ऊपर क्षेत्रीय विवाद को सुलझाना चाहते हैं और द्वितीय विश्व युद्ध की शत्रुता को औपचारिक रूप से समाप्त करने वाली शांति संधि पर हस्ताक्षर करना चाहते हैं। अब बाइडन के कदमों के कारण इस बातचीत में तेजी आये तो हैरानी नहीं होगी।
यानी देखा जाये तो बाइडन अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के तीन महीने के अन्दर ही अपने प्रमुख सहयोगियों के समर्थन को खो चुके हैं। तुर्की रूस के पक्ष में चला गया है। इजरायल, जापान और भारत ने भी इसी तरह की भावनाएं व्यक्त कर रहे हैं। अगर ऐसे में कहा जाये कि बाइडन शीत युद्ध 2.0 गंवाने की दिशा में हैं तो यह गलत नहीं होगा।