चुनाव आयोग की घोषणा के अनुसार, पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 के लिए मतदान का पहला चरण शनिवार से शुरू होगा। यही कारण है कि 25 मार्च, यानि पहले चरण के मतदान के लिए प्रचार के अंतिम दिन सभी राजनीतिक पार्टियों ने खूब जोर लगाया सिवाय एक के और वह एक पार्टी कांग्रेस है।
जब से चुनावों की घोषणा हुई है तब से ही देखा जाये तो राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी ने पश्चिम बंगाल को नजरंदाज किया है। जो रैलियां तय थी, उसमें भी अन्य नेताओं को भेजा गया।
अब ऐसे में यह सवाल उठता है कि ऐसी कौन सी मज़बूरी है जिसके कारण राहुल गाँधी कांग्रेस पार्टी के लिए प्रचार करने पश्चिम बंगाल नहीं आ रहे हैं? यह कुछ और नहीं बल्कि TMC के साथ एक सीक्रेट प्रीपोल गठबंधन है।
जिस तरह से जनता बीजेपी के पक्ष में दिखाई दे रही है, उसे देखते हुए राहुल गाँधी को पता है कि कांग्रेस का कोई चांस नहीं है और अगर थोड़ी बहुत उम्मीद है तो वह ममता बनर्जी की ही है। ऐसे में वह प्रचार कर TMC के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध नहीं लगाना चाहते हैं जिससे बीजेपी को फायदा हो जाये।
इन दोनों ही पार्टियों का एक ही मकसद है कि कैसे भी बीजेपी को सत्ता से दूर रखा जाये। इसलिए कांग्रेस पार्टी के बड़े प्रचारक पश्चिम बंगाल को नजरंदाज कर रहे हैं।
वहीं पश्चिम बंगाल के पडोसी राज्य को देखा जाये तो वहां कांग्रेस पार्टी प्रियंका वाड्रा और राहुल गांधी के प्रचार के अलावा बदरुद्दीन अजमल के अखिल भारतीय यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) और बोडो पीपुल्स फ्रंट के साथ गठबंधन के बल पर आगे बढ़ रहे हैं।
एक तरफ असम में राहुल गाँधी और प्रियंका वाड्रा चुनाव प्रचार के लिए जा रहे हैं लेकिन पश्चिम बंगाल नहीं जा रहे है, यह TMC और कांग्रेस के बीच गठबंधन नहीं है तो और क्या है?
हालाँकि पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि केरल के सांसद राहुल गांधी केरल में मतदान समाप्त होने के बाद ही पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा-कांग्रेस गठबंधन के लिए प्रचार करेंगे। रिपोर्ट के अनुसार केरल में 6 अप्रैल को सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) के मतदान समाप्त हो रहे हैं जिसमें कांग्रेस मुख्य प्रतिद्वंद्वी है वहीँ कांग्रेस पश्चिम बंगाल में इसी सीपीआई (एम) के साथ चुनाव लड़ रही है।
ऐसे में कांग्रेस पार्टी का मानना है कि अगर केरल में मतदान से पहले पश्चिम बंगाल में लेफ्ट पार्टी के नेताओं के साथ अभियान करते हैं तो इससे कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को “भ्रमित करने वाले संकेत” मिलेगा जिससे दोनों राज्यों में ही घाटा होगा। इस लिए राहुल गाँधी ने केरल के लिए पश्चिम बंगाल को पूरी तरह से TMC के हवाले कर दिया है।
बंगाल में उच्च-स्तरीय लड़ाई सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और भाजपा पर केंद्रित है, वाम मोर्चा औए कांग्रेस गठबंधन सिर्फ अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता के लिए लड़ रहे हैं। यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी ने चुनाव प्रचार सिर्फ अधीर रंजन चौधरी और छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल के साथ राज्य के कांग्रेस यूनिट पर छोड़ रखा है।
बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस पार्टी पर सीएम ममता बनर्जी के खिलाफ न जाने के लिए अन्य समान विचारधारा वाली पार्टियों के दबाव से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। यही कारण है कि कांग्रेस बीजेपी विरोधी पार्टियों के लीडर और अपनी प्रासंगिकता को बचाए रखने के लिए अपने स्टार प्रचारकों को पश्चिम बंगाल से दूर रख रही है और चुनाव का पूरा जिम्मा अपने राज्य के नेतृत्व और अधीर रंजन के हाथों में दे रखा है।
अब यह देखना है कि कांग्रेस के इस त्याग का क्या परिणाम होता है। परिणाम जो भी हो लेकिन एक बात तय है कि चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल से कांग्रेस का अस्तित्व भी समाप्त हो सकता है।