कोरोना वायरस के कारण देश में लगातार मौतों का आंकड़ा भी बढ़ रहा है, दूसरी लहर में भी मौतों की दर तो कम हैं, लेकिन इनके डेटा को लेकर एक बार फिर गड़बड़झाला सामने आया है, और ये केवल किसी एक राज्य की बात नहीं है, इसमें दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र सभी का हाल एक जैसा ही है। चौंकाने वाली बात तो दिल्ली से निकलकर सामने आई हैं जहां सरकारी रिकॉर्ड में एक हजार लोगों को मौत का कोई डेटा मौजूद ही नहीं है। इसको लेकर अब दिल्ली की सरकार लोगों के निशाने पर आ गई है, और ये तक कहा था रहा है कि दिल्ली में कोरोना वायरस से होने वाली मौतों की संख्या को लेकर झोल किया जा रहा है।
दिल्ली की केजरीवाल सरकार पर कोविड मैनेजमेंट को लेकर लगातार सवाल खड़े होते रहे हैं। पिछले साल भी जब दिल्ली में कोरोना वायरस पीक पर था, तब ये सवाल उठे थे कि दिल्ली में क्या मौतों की संख्या के साथ खिलवाड़ कर उसे छिपाया जा रहा है और वही एक बार फिर हो रहा है। दरअसल, दिल्ली सरकार के मुताबिक 18 से 24 अप्रैल की बीच दिल्ली में कुल 1938 लोगों की मौत हुई, लेकिन निगम के आंकड़े के मुताबिक दिल्ली सरकार एक हजार लोगों की मौतों को ही गुल कर गई है, जो दिल्ली सरकार पर सवाल उठाता है।
और पढ़ें- चुनाव प्रचार डिजिटल होने चाहिए थे, पर TMC से लेकर BJP तक सभी पार्टियों ने नियमों का उल्लंघन किया
खबरों के मुताबिक दिल्ली सरकार अस्पताल से शमशान जाने वाले मृतकों की संख्या तो मौतों के आंकड़े में जोड़ रही है, लेकिन जो लोग कोरोना वायरस से पीड़ित थे, और घर में ही उनकी मौत हुई उन्हें इस मौतों के आंकड़े में जगह नहीं दी गई है, जो दिखाता है कि किस तरह से दिल्ली में मौतों के आंकड़े के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इसका खुलासा इस बात से हुआ है क्योंकि दिल्ली में चल रहे 26 शमशान घाटों का डेटा 3096 लोगों के अंतिम संस्कार होने का दावा कर रहा है जो कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार पर सवाल खड़े करता है।
कुछ इसी तरह महाराष्ट्र में राज्य पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने आरोप लगाए हैं कि महाराष्ट्र सरकार मौतों के आंकड़ों को छिपा रही है। उन्होंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिख कर कहा, “राज्य सरकार ने आंकड़ों का मिलान करने का काम अभी तक पूरा नहीं किया है, जिसके कारण एक सप्ताह पहले या इससे भी पहले हुई मौत की संख्या कुल आंकड़ों में अभी तक जोड़ी जा रही हैं, इसलिए रोजाना हो रही मौत की वास्तविक जानकारी नहीं मिल पा रही।” साफ है कि आंकड़ों के साथ यहां भी झोल हो रहा है।
मध्य प्रदेश को लेकर न्यूज 18 की एक रिपोर्ट बताती है राजधानी भोपाल में ही सरकारी आंकड़ों में 21 अप्रैल को 5 मौते हुईं, जबकि शमशान घाटों और कब्रिस्तानों में 138 शवों का अंतिम संस्कार हुआ। इसी तरह प्रतिदिन अंतिम संस्कार और मौतों के सरकरी आंकड़ों में एक बड़ा अंतर मिलता है जो ये सवाल खड़े करता है कि क्यों आख़िर मौतों को लेकर आंकड़ों का घिनौना खिलवाड़ किया जा रहा है। इसी तरह आज तक की एक रिपोर्ट राजस्थान पर सवाल खड़े कर रही है क्योंकि जयपुर में 18 अप्रैल को हुई 3 मौतें हुई लेकिन सरकारी आंकड़ों में केवल तीन ही दर्ज की गईं।
और पढ़ें- रमज़ान के महीने में हो रहा है जम के कोरोना का प्रसार, रोकने वालों को पड़ते हैं पत्थर और घूंसे
वहीं, कोरोनावायरस से मौत के आंकड़ों को लेकर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने तो अजीबो-गरीब बयान दे डाला। उनसे जब मौतों के आंकड़ों की हेर-फेर के बारे में पूछा गया तो ये तक बोल गए कि मरने वाले लौटकर वापस नहीं आते, और न ही कोई आएगा, इसलिए इस पर बहस न हो। साफ है कि मुख्यमंत्री सवालों से बचते दिखे हैं। असलियत ये है कि केवल दिल्ली, महाराष्ट्र, ही नहीं बल्कि राजस्थान, मध्य प्रदेश हरियाणा छत्तीसगढ़ समेत सभी कोरोना से भयंकर पीड़ित दस राज्य की सरकारें मौतों के आंकड़ों के साथ खिलवाड़ कर रही है।
वो मरीज़ जिनका अस्पतालों में इलाज हो रहा था, और फिर उनकी मौत हुई तब उनका नाम तो कोरोना मृतकों की सूची में जुडा, लेकिन जो लोग घरों में हैं आइसोलेशन के दौरान ही मरे, या इलाज न मिलने के कारण सड़कों पर सांस टूटने के कारण मरे, उनकी मौतों का सरकारी आंकड़ों में कोई ब्यौरा नहीं है। इस तरह की आंकड़ों की जादूगरी के लिए किसी एक राजनीतिक पार्टी को दोष नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि जिसकी जहां सरकार है, वो वहां इसी रवैए से मौतों के आंकड़ों के साथ खिलवाड़ कर रहा है।
सरकारों के लिए मृतक बस एक नंबर बनकर रह गए हैं, और इसमें सरकारों के साथ ही अधिकारियों की असंवेदनशीलता और निकम्मापन भी शामिल है, जो कि लोगों को इलाज़ तक के लिए दफ्तरों के चक्कर। लगाने पर मजबूर करते है कि और अंत में मरीजों की जान इलाज के अभाव में ही चली जाती है।