पंजाब में अकालियों की सियासत अब हाशिए पर जा चुकी है। कुछ महीने पहले बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ने वाली अकाली दल को अब अपनी करतूतों की वजह से निकाय चुनावों में भी भयंकर हार का मुंह देखना पड़ रहा है। अपनी स्थिति को समझते हुए अब शिरोमणि अकाली दल के सुखबीर सिंह बादल ने जातिगत चुनावी रणनीति को अपनाया है। उन्होंने ऐलान किया है कि अगर शिरोमणि अकाली दल सत्ता में आती है तो उपमुख्यमंत्री पद पर एक दलित को बैठाएगी।
दरअसल, पंजाब में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं। इसी चुनाव के मद्देनजर पंजाब में राजनीतिक पार्टियों द्वारा वोट बैंक सुरक्षित करने का कार्य शुरू हो गया है। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में मतदान होने पर सुखबीर सिंह बादल ने एक दलित को उपमुख्यमंत्री पद पर बैठाने का वादा किया है। वहीं, मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस वादे को राजनीतिक हथकंडा बताया है और यह घोषणा की कि उनकी सरकार राज्य की अनुसूचित जाति की आबादी के कल्याण के लिए सभी योजनाओं के तहत कम से कम 30 प्रतिशत धनराशि खर्च करेगी।
रिपोर्ट के अनुसार जालंधर में डॉ बी.आर अंबेडकर की 130 वीं जयंती पर, सुखबीर सिंह बादल ने उप मुख्यमंत्री पद की घोषणा के साथ यह भी घोषणा की कि उनकी पार्टी दोआबा क्षेत्र में डॉ बीआर अंबेडकर के नाम पर एक विश्वविद्यालय की स्थापना करेगी। बता दें कि एक बड़ी दलित आबादी जालंधर, होशियारपुर और कपूरथला में स्थित है।
वहीं, यह जानना आवश्यक है कि पंजाब की आबादी में दलितों की हिस्सेदारी लगभग 32 प्रतिशत है और बादल अब इन्हें ही अपना वोट बैंक बनाने की जुगत में लग चुके हैं।
उन्होंने इस दौरान कहा कि, “SAD की सरकार बनाने के बाद, डिप्टी सीएम दलित भाईचारा ‘से होगा। हम बाबासाहेब के नाम पर दोआबा में एक विश्वविद्यालय भी स्थापित करेंगे।” उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी को अंबेडकर के आदर्शों का पालन करने पर गर्व है।
इस बीच, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुघ ने कहा, “अगर अगले पंजाब विधानसभा चुनावों में भाजपा सत्ता में आती है, तो वह राज्य के लिए एक दलित मुख्यमंत्री होगा।”
एक बयान में, उन्होंने सुखबीर का मजाक उड़ाया कि “उनकी पार्टी एक दलित डिप्टी सीएम की नियुक्ति करेगी, सीएम क्यों नहीं।” उन्होंने कहा कि, “अकालियों को एक परिवार और एक विशेष समुदाय से एक मुख्यमंत्री को उठाने की प्रथा को दूर करना चाहिए।”
देखा जाये तो अकाली दल ने इस तरह की रणनीति अपनाने के लिए मजबूर हुई है। एक तो पंजाब में इस दल की प्रासंगिकता ही गर्त में जा चुकी है और उपर से किसान आन्दोलन के दौरान लोगों में अब भी गुस्सा है। पंजाब की क्षत्रप अकाली दल ने अपने सियासी एजेंडे के चक्कर में सारे फॉर्मूले ही तोड़ दिए, और पंजाब में अकाली दल की ताजा स्थिति ‘न माया मिली न राम’ वाली है। कुछ दिनों पहले ही पंजाब की सियासत के लिए एनडीए से गठंबंधन तोड़ने वाले अकाली दल को निकाय चुनाव में अब तक की सबसे बुरी हार से राजनीतिक स्थिति से गुजरना पड़ा था। कांग्रेस को 8 सीटों में से 6 पर जीत मिली है और अकाली दल एक पर सिमट गया है। पंजाब के निकाय चुनाव के आए नतीजों से साबित हो रहा है कि अब अकाली दल सत्ता में तो नहीं आने वाला है। यानि SAD को पता है कि अब पंजाब में उसकी दाल नहीं गलने वाली है। यही कारण है अब अकालियों ने दलितों को वोट बैंक के रूप में साधना शुरू किया है।