जब से वाराणसी के स्थानीय कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के ASI सर्वे के लिए स्वीकृति दी है, तब से देश के कट्टरपंथी संगठनों के हाथ पांव फूलने लगे हैं। जब सुन्नी वक्फ बोर्ड को यह आभास हो चुका है कि सनातन समुदाय काशी विश्वनाथ का पुनरुत्थान करके ही मानेगा, तो घबराया हुआ सुन्नी वक्फ बोर्ड अब इलाहाबाद हाईकोर्ट की शरण में चला गया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष अग्रिम याचिका दायर करते हुए सुन्नी वक्फ बोर्ड ने वाराणसी कोर्ट के निर्णय को रद्द करने की मांग की है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के अनुसार ये Places of Worship Act 1991 का उल्लंघन है और इलाहाबाद हाईकोर्ट को इस पर तत्काल प्रभाव से एक्शन लेना चाहिए। सुन्नी वक्फ बोर्ड का मानना है कि जब मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में आधीन है, तो वाराणसी का जिला न्यायालय इसपर निर्णय कैसे दे सकता है ?
ज्ञानवापी मस्जिद में ऐसा क्या है, जिसके पीछे सुन्नी वक्फ बोर्ड ASI सर्वे के ख्याल से ही इतना थर थर कांप रहा है ? दरअसल, ज्ञानवापी मस्जिद उस जगह पर स्थित है, जहां कभी काशी विश्वनाथ का वास्तविक मंदिर हुआ करता था, जिसे 1669-1670 के बीच ध्वस्त करवाकर औरंगजेब ने ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई, ठीक वैसे ही जैसे मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर को ध्वस्त करवाकर उसने शाही ईदगाह मस्जिद बनवाई।
अब वाराणसी के जिला कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण हेतु Archaeological Survey of India को अपनी स्वीकृति दे दी है। ऐसे में सुन्नी वक्फ बोर्ड को डर है कि कहीं अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि परिसर की भांति काशी विश्वनाथ का मूल परिसर भी उसके वास्तविक भक्तों को न सौंप दिया जाए।
ये वही सुन्नी वक्फ बोर्ड है, जिसने लगभग 3 दशकों तक श्रीराम के भक्तों को उनके जन्मस्थान के दर्शन से वंचित रखा। यहां तक कि जब माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में एक ऐतिहासिक निर्णय में श्रीराम जन्मभूमि परिसर को उनके भक्तों को सौंप दिया, तो इससे बौखलाए सुन्नी वक्फ बोर्ड ने पुनर्विचार की याचिका दायर की, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। इसी सुन्नी वक्फ बोर्ड के दबाव के चलते मामले को पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक घसीटा गया और अब इन्हीं पैंतरों के बलबूते वह महादेव के भक्तों को काशी विश्वनाथ पर पुनः अधिकार प्राप्त करने से भी वंचित रखना चाहते हैं।
ऐसे में काशी विश्वनाथ परिसर को लेकर सुन्नी वक्फ बोर्ड का इलाहाबाद हाईकोर्ट में अग्रिम याचिका दायर करना कोई हैरानी की बात नहीं है। अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट से सकारात्मक निर्णय मिलने के बाद कई भक्तों में अपने प्रिय मंदिरों को पुनः प्राप्त करने की आशा उत्पन्न हुई है। इसी की पहल है कि मथुरा के न्यायालय में भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि के अधिकारों पर चर्चा करने के लिए मुकदमे को स्वीकृति देनी पड़ी।
ऐसे में सुन्नी वक्फ बोर्ड किसी भी तरह से इस विशाल अभियान को रोकना चाहता है, ताकि सनातनियों के धर्मस्थलों पर उसका कब्जा कायम रहे और कोई भी उसकी गुंडागर्दी को चुनौती न दे पाए। लेकिन अकड़ में न रावण टिके न औरंगज़ेब, तो भला सुन्नी वक्फ बोर्ड की क्या हस्ती है, जो वह टिक पाएगा ?