फ्रांस द्वारा Indo-Pacific नीति जारी किए जाने के बाद सितंबर 2020 में जर्मनी ने भी अपनी Indo-Pacific नीति जारी की थी, जिसे विश्लेषकों द्वारा काफी कमजोर कहा गया था। दक्षिण चीन सागर में चीन के साथ टकराव से लेकर चीन के खिलाफ आर्थिक युद्ध के दौरान जर्मनी चीन पर नर्म रुख दिखाता आया है। हालांकि, अब अपने एक कदम से जापान ने जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल के सामने एक Loyalty test पेश कर दिया है, जिसमें विफ़ल होने पर जर्मनी Indo-Pacific के अहम देशों के बीच अपनी विश्वसनीयता खो सकता है।
Reuters की एक रिपोर्ट के मुताबिक मंगलवार को जापान ने जर्मनी के साथ मिलकर क्षेत्र में संयुक्त सैन्य अभ्यास करने का एक प्रस्ताव पेश किया है। यह प्रस्ताव जापान और जर्मनी के विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री की 2+2 वार्ता के दौरान दिया गया। बता दें कि अगस्त में जर्मनी का एक युद्धपोत दक्षिण चीन सागर से होकर गुजरेगा। वर्ष 2002 के बाद पहली बार ऐसा होगा जब जर्मनी का कोई सैन्य जहाज़ विवादित जल सीमा से होकर गुजरेगा। ऐसे में अब जापान ने स्पष्ट संदेश दिया है कि जर्मनी को क्षेत्र में जापान के साथ मिलकर एक युद्धाभ्यास भी करना चाहिए ताकि चीन को वाकई एक कड़ा संदेश दिया जा सके।
यह सही मायनों में जर्मनी के लिए एक Loyalty test होगा! अगर जर्मनी इस युद्धाभ्यास से अपने हाथ पीछे खींचता है तो वह जापान और भारत जैसे देशों में अपनी विश्वसनीयता खो देगा। ऐसे में जर्मनी एक झटके में Indo-Pacific क्षेत्र में अपने प्रभाव को खो देगा जिसके कारण उसके यूरोपीय प्रतिद्वंदी फ्रांस को अपना वैश्विक प्रभाव बढ़ाने और यूरोप में वर्चस्व बढ़ाने में आसानी होगी। जिस प्रकार जर्मनी पूर्व में चीन को लेकर अपना रुख बार-बार बदलता रहा है, वह अब जारी नहीं रह सकता। जर्मनी को Indo-Pacific पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी ही होगी!
कहने को तो जर्मनी अपनी Indo-Pacific नीति जारी कर चुका है, लेकिन कुछ मामलों में चीज़ें अब भी स्पष्ट नहीं हो पाई हैं। उदाहरण के लिए इस नीति में दक्षिण चीन सागर में जर्मन सैन्य जहाजों की तैनाती को लेकर कोई बात नहीं की गयी है। साथ ही साथ जर्मनी की Indo-Pacific नीति में चीन के साथ “सहयोग” पर ज़्यादा ध्यान है, जबकि चीन की आक्रामकता को बहुत कम तवज्ज़ो दी गयी है। Institut Montaigne की एक रिपोर्ट के मुताबिक “जर्मनी की Indo-Pacific नीति का ध्यान क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग और वैश्विक व्यापारिक मार्गों की सुरक्षा को बढ़ाने पर है।” जर्मनी ने बड़ी ही सावधानी से अमेरिका (Quad) और चीन में से किसी एक को ना चुनकर दक्षिण चीन सागर में Uni-polarity और Bi-polarity, दोनों का विरोध किया है। इसके साथ ही इस नीति में ASEAN देशों के साथ सहयोग को तो बढ़ाने की बात की गयी है, लेकिन यह कहीं नहीं बताया गया कि यह होगा कैसे!
इन सभी बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि जर्मनी Indo-Pacific क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर और चीनी आक्रामकता को लेकर प्रतिबद्ध नहीं दिखाई दे रहा। जर्मनी आर्थिक मोर्चे पर भी चीन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने से बचता रहा है। जर्मनी अपने सुरक्षा बिल के तहत पहले ही Huawei को अपने यहाँ 5G operations करने के लिए अनुमति दे चुका है, जिसके खिलाफ ट्रम्प प्रशासन महीनों से जर्मनी पर दबाव बना रहा था। साथ-साथ जर्मनी के नेतृत्व में ही दिसंबर 2020 में चीन और यूरोप के बीच एक निवेश संधि पर भी हस्ताक्षर हुए थे।
चीन पर जर्मनी का यह flip-flop अब ज़्यादा दिनों तक बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यही कारण है कि अब जापान ने जर्मनी को विवादित जल सीमा में युद्धाभ्यास करने का निमंत्रण दिया है। अब देखना यह होगा कि क्या जर्मनी Indo-Pacific में जापान की अग्नि-परीक्षा में सफल हो पता है या नहीं!