भारत के NSA अजीत डोभाल की अमेरिका के NSA Jake Sullivan से फोन पर बातचीत के बाद अमेरिका ने आखिरकार भारत को वैक्सीन के कच्चे माल का निर्यात करने का फैसला किया है। अब सभी यह सोच रहे होंगे कि यह आखिर कैसे हुआ और अमेरिका जो इतने दिनों तक कच्चे माल के एक्सपोर्ट पर बैन लगा कर बैठा हुआ था, आखिर में भारत को वैक्सीन का कच्चे माल देने के लिए कैसे राजी हो गया। अब लोग यह अंदाजा लगा रहे हैं कि बाइडन ने यू-टर्न क्यों लिया, और अजीत डोभाल ने फोन पर क्या कहा।
इसका कारण कुछ और नहीं बल्कि NSA अजीत डोभाल की अमेरिका के NSA Jake Sullivan से बातचीत थी। हालाँकि बाइडन प्रशासन चारो और से दबाव में आ गया था और अमेरिका के अंदर ही कई ग्रुप जैसे यूएस चैंबर्स ऑफ कॉमर्स, लॉमेकर्स, भारतीय-अमेरिकियों और एनआरआई शामिल हैं। परन्तु NSA डोभाल के कॉल ने बाजी पलट दी।
अगर देखा जाये तो mRNA वैक्सीन बनाने वाली दोनों कम्पनियाँ फाइजर और मॉडर्ना का एक प्रमुख raw material, purified synthetic phospholipids भारत से आता है। मुंबई स्थित वैव Lifesciences इसका उत्पादन करने वाली दुनिया की तीन कंपनियों में से एक है। यही नहीं अमेरिकी फार्मा इंडस्ट्री भी कई मायनों में भारत पर निर्भर है। ऐसा लगता है कि इन्हीं Leverage को याद दिलाते हुए अजित डोभाल ने अमेरिका को यू टर्न लेने पर मजबूर किया।
बता दें कि यह भारतीय कंपनी अमेरिका के लिए वैक्सीन बनाने वाली दोनों कंपनियों यानी फाइजर और मॉडर्ना को अपने m-RNA प्रौद्योगिकी आधारित COVID-19 वैक्सीन के उत्पादन के लिए आवश्यक एक महत्वपूर्ण सामग्री phospholipids की आपूर्ति कर रही है।
अमेरिका ने एक युद्धकालीन कानून, रक्षा उत्पादन अधिनियम (डीपीए) का उपयोग करते हुए, प्रमुख कच्चे माल जैसे बैग, फिल्टर, शीशियों, कांच, सेल कल्चर मीडिया, प्लास्टिक टयूबिंग, स्टॉपर्स जैसे 37 raw material के एक्सपोर्ट को रोक दिया था। इसका सीधा असर भारतीय वैक्सीन निर्माताओं पर पड़ा।
इस अमेरिकी कानून से अमेरिकी कच्चे माल के आपूर्तिकर्ताओं को फाइजर-बायोएनटेक, मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन की यूनिट जेनसेन को ही सप्लाई करने के लिए बाध्य होना पड़ा। परन्तु अब अमेरिका ने भारत को फिर से इन सभी कच्चे मालों का एक्सपोर्ट करने जा रहा है और शायद उसका कारण है अमेरिकी वैक्सीन कंपनियों का भारतीय फार्म की कंपनियों पर निर्भरता।
Bussiness Today की रिपोर्ट के अनुसार मुंबई स्थित फार्मा और nutraceutical specialty ingredient बनाने वाली Vav Lifesciences और उसकी सहायक कंपनी VAV Lipids अमेरिका स्थित contract development and manufacturing organisation (सीडीएमओ) के साथ एक समझौते के माध्यम से, वैक्सीन निर्माण के लिए भारी मात्रा में purified ‘synthetic phospholipids’ की आपूर्ति करने जा रही है।
यह CDMO, भारतीय कंपनी VAV Lifesciences द्वारा निर्मित लिपिड का उपयोग gene-based lipid nanoparticles (LNPs) के उत्पादन करने के लिए कर रहा है जो कि फाइजर-बायोएनटेक और मॉडर्ना के COVID-19 वैक्सीन में विशेष रूप से उपयोग किया जाता है।
बता दें कि VAV Lifesciences दुनिया भर में phospholipids बनाने वाली 3-4 कंपनियों में से एक है। इस पर कंपनी के प्रबंध निदेशक, अरुण केडिया का कहना है कि, “हमें उच्च गुणवत्ता वाले phospholipids का उत्पादन करने वाली पहली और एकमात्र भारतीय कंपनी होने का गर्व है।“ इसका अर्थ यह हुआ कि अमेरिकी वैक्सीन कम्पनियाँ भी भारत पर phospholipids के लिए निर्भर है।
यही नहीं अमेरिका मलेरिया-रोधी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वाइन सहित 40% जेनेरिक दवा भारत से आयात करता है और भारत HCQ का सबसे बड़ा सप्लायर है तथा दुनिया की आपूर्ति का 70% हिस्सा बनाता है। पिछले वर्ष जब HCQ की किल्लत हुई थी तब अमेरिका को भारत से HCQ लेने के लिए Ipca Labs पर से FDA द्वारा लगाया गया प्रतिबन्ध भी हटाना पड़ा था।
Confederation of Indian Industry (CII) और KPMG द्वारा अप्रैल 2020 के एक अध्ययन के अनुसार अमेरिका में डाक्टरों के prescriptions में 90 प्रतिशत दवा जेनेरिक दवा होती है और इस्तेमाल की जाने वाली प्रत्येक तीन गोलियों में से एक का उत्पादन भारतीय जेनेरिक मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों द्वारा किया जाता है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अमेरिका किस प्रकार से अपने देश में जेनेरिक दवाओं के लिए भारतीय फार्मा इंडस्ट्री पर निर्भर करता है।
यही नहीं अमेरिका की फार्मा कम्पनियाँ अपनी दवा बनाने बनाने के लिए आवश्यक active pharmaceutical ingredients यानी API का 18 प्रतिशत हिस्सा भारत से आयात करती हैं।
देखा जाये तो अगर भारत ने फार्मा सेक्टर के एक्सपोर्ट पर प्रतिबन्ध लगाया तो इससे सबसे अधिक अमेरिका को ही नुकसान होगा। ऐसी हजारों दवाएं हैं जिनके लिए अमेरिका भारत पर निर्भर करता है। ऐसा लगता है कि अजित डोभाल ने अमेरिकी NSA को अमेरिका की इन्हीं निर्भरता को याद दिलाया होगा जिससे जो बाइडन को वैक्सीन के लिए raw material को एक्सपोर्ट करने के फैसले पर यू टर्न लेना पड़ा।