सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा बनाई जा रही AstraZenca की कोविशिल्ड वैक्सीन के दाम को लेकर अभी एक विवाद थमा नहीं था कि दूसरा विवाद खड़ा करने का प्रयास चल रहा है। पहले केंद्र और राज्य के लिए वैक्सीन के अलग अलग दाम निर्धारित करने को लेकर सीरम इंस्टीट्यूट को निशाना बनाया गया, और अब वैक्सीन निर्माता कंपनी पर यह आरोप लग रहा है कि वह वैक्सीन को अधिक दाम पर बेच रही है।
सीरम इंस्टीट्यूट ने भारत में वैक्सीनेशन के अगले चरण, जिसमें सभी वयस्कों को वैक्सीन लगेगी, उसके शुरू होने से पूर्व वैक्सीन के दाम का एलान किया है। कंपनी केंद्र व राज्यों को 400 रुपये प्रति डोज और प्राइवेट अस्पतालों को 600 रुपये प्रति डोज पर वैक्सीन उपलब्ध करवाएगी। कंपनी के CEO अदार पूनावाला ने बताया कि “Covishield इस समय मार्केट में उपलब्ध सबसे सस्ती वैक्सीन है। इसका शुरुआती दाम बहुत कम रखा गया था क्योंकि यह वैक्सीन निर्माण के पहले ही कई देशों की advance funding के जरिए बनाई गई थी।” उन्होंने आगे कहा कि कोरोना के इलाज में इस्तेमाल हो रहे अन्य किसी भी वस्तु की अपेक्षा वैक्सीन सस्ती ही है।
वैक्सीन के दाम की घोषणा के बाद सोशल मीडिया पर यह भ्रामक प्रचार किया जाने लगा कि सीरम इंस्टीट्यूट वैक्सीन का मनमाना दाम ले रहा है जो दुनिया की अन्य वैक्सीन से अधिक है। किंतु यह सत्य नहीं है। फाइजर की वैक्सीन जिसे अमेरिका, इजराइल और यूरोप में इस्तेमाल किया जा रहा है उसका दाम 14.70 डॉलर (यूरोप के लिए) से लेकर 19.50 डॉलर के बीच है। मोडर्ना की वैक्सीन का दाम 25 डॉलर से 37 डॉलर के बीच है। जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन का दाम EU के लिए 8.50 डॉलर निर्धारित हुआ है, जबकि स्पूतनिक V भारत को 750 रुपये प्रति डोज की दर पर उपलब्ध होने वाली है।
इसकी अपेक्षा सीरम इंस्टिट्यूट जो वैक्सीन उपलब्ध करवा रहा है वह राज्यों को 5.34 डॉलर और निजी अस्पतालों को 8 डॉलर के करीब पड़ रही है। AstraZenca की वैक्सीन भारत में सबसे सस्ती है, भारत के अलावा केवल ब्रिटेन और EU ही हैं, जहाँ कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार यह वैक्सीन 2.15 डॉलर में मिलने वाली थी। EU को सस्ती वैक्सीन मिलने का कारण भी है।
दरअसल, ब्रिटेन और EU ने AstraZenca को वैक्सीन निर्माण के पहले ही बड़ी मात्रा में धन उपलब्ध करवाया था। यह धन प्री-आर्डर के रूप में दिया गया था। इसका इस्तेमाल वैक्सीन के विकास में हुआ। EU और ब्रिटेन ने यह धन तभी दिया था जब यह भी तय नहीं था कि वैक्सीन काम करेगी या नहीं, ऐसे में AstraZenca उन्हें सस्ते में वैक्सीन उपलब्ध करवा रही है तो यह आश्चर्यजनक नहीं है। वैसे भी AstraZenca ब्रिटेन की कंपनी है, ऐसे में वहाँ यह वैक्सीन सस्ती मिलना स्वाभाविक है।
दूसरी तरफ भारत ने सीरम इंस्टिट्यूट के साथ प्री आर्डर जैसा कोई समझौता नहीं किया था। भारत ने प्री डिवेलपमेंट स्टेज पर ही कोई समझौता किया होता तो भारत को भी सस्ती वैक्सीन मिलती। गौरतलब है कि बिना किसी पूर्व समझौते के भी सीरम इंस्टिट्यूट ने शुरुआती 10 करोड़ वैक्सीन 150 रुपये में ही उपलब्ध करवाई थी। इस 150 रुपये में AstraZenca की रॉयल्टी का हिस्सा भी है, अर्थात सीरम इंस्टिट्यूट ने नगण्य लाभ पर शुरुआती 10 करोड़ वैक्सीन उपलब्ध करवाई है।
महत्वपूर्ण यह है कि जिस तेजी से सीरम इंस्टिट्यूट ने वैक्सीन उपलब्ध करवाई है, AstraZenca की वैक्सीन के किसी अन्य निर्माता ने उत्पादन में इतनी तीव्रता नहीं दिखाई है। AstraZenca ने यूरोप से 40 करोड़ वैक्सीन देने का कॉन्ट्रैक्ट किया था, किंतु इसके ब्रिटिश और यूरोपीय निर्माता समय पर EU को वैक्सीन नहीं दे पा रहे। इसलिए EU AstraZenca पर कानूनी कार्रवाई करने वाला है। AstraZenca की धीमी गति के कारण EU को मॉडर्ना, फाइजर आदि विकल्पों पर ध्यान देना पड़ रहा है।
वहीं, भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ने अपनी वैक्सीन निर्माण करने की गति को बढ़ा दिया है। इसके लिए भारत सरकार की मदद भी ली जा रही है। अभी आम भारतीय को एक वैक्सीन अधिक से अधिक 600 रुपये की पड़ेगी। अब इसकी तुलना यूरोप से करते हैं। यदि AstraZenca EU की मांग पूरी करने में असफल होता है और यूरोपीय देशों को फाइजर या अन्य विकल्पों की ओर जाना पड़ता है, जिसकी संभावना अधिक है, तो ऐसे में आम यूरोपीय नागरिकों को वैक्सीन डोज के लिए आम भारतीय की अपेक्षा दुगने दाम देने होंगे।
सीरम इंस्टिट्यूट और भारत बॉयोटेक जितनी सस्ती वैक्सीन बना रहे हैं, इतनी सस्ती वैक्सीन दुनिया में अन्य कहीं नहीं बन रही है। इसपर गर्व महसूस करने के बजाए वामपंथी उदारवादी जमात के लोग दुष्प्रचार अभियान चला रहे हैं।