जब तेल निर्यातक देशों के संगठन और प्रमुख उत्पादक देशों ने अप्रैल में उत्पादन में कटौती की, तो अब भारत ने उल्टा पलटवार करते हुए अपने रिफाइनरों को इन देशों से आयात ही कम करने का आदेश दे दिया है। रिपोर्ट के अनुसार भारतीय रिफाइनर मई में लगभग एक चौथाई तक किंगडम से आयात में कटौती करने की योजना बना रहे हैं। सऊदी अरब से लगभग प्रति महीने 14.7-14.8 मिलियन बैरल आयात होता था जो कि अब 10.8 मिलियन बैरल तक आने की उम्मीद है।
अकसर यह देखा जाता है कि सऊदी अरब जैसे देश तेल खरीदने वाले देशों के साथ अपनी मनमानी दिखाते हैं और जब मन तब उत्पादन में कटौती कर तेल की कीमतों पर अपना नियंत्रण रखनेकी कोशिश करते हैं। परन्तु अब भारत ने उलटे अपने सबसे बड़े तेल खरीदारों में से एक होने का फायदा उठाया है और अब इन देशों की मनमानी को रोकने के लिए अपने तेल आयात हो कई देशों में विस्तृत करने की योजना पर काम कर रहा है। सऊदी अरब से भी तेल के आयात कम करना इसी योजना का एक हिस्सा है।
दरअसल, OPEC देशों ने जान बूझकर तेल का उत्पादन कम कर दिया, ताकि तेल की कीमत बढ़ाकर वे अपना एकाधिकार बनाए रखे। भारत और गैर OPEC देश इस रवैया से काफी परेशान थे, इसके बाद मार्च की शुरुआत में भारत के पैट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने उत्पादन बढ़ाने की मांग की, लेकिन सऊदी अरब ने बात नहीं मानी जिसका नतीजा यह हुआ।
तेल मंत्रालय में शीर्ष नौकरशाह सचिव तरुण कपूर ने रॉयटर्स को बताया कि भारत देश के रिफाइनरों से तेल उत्पादक देशों के साथ संयुक्त रूप से बातचीत कर बेहतर डील के लिए कह रहा है।
उन्होंने कहा, “भारत एक बड़ा बाजार है, इसलिए विक्रेताओं को हमारे देश की मांग के साथ-साथ दीर्घकालिक संबंध बनाए रखने के लिए भी सावधान रहना होगा।“ यानी भारत का स्पष्ट सन्देश है कि भारत के साथ संबंधों को बनाये रखना है तो भारत की बात भी मनानी पड़ेगी।कच्चे तेल की बढती कीमत के कारण भारत की उबरती अर्थव्यवस्था के लिए उत्पन्न हुए खतरे पर लेन्द्रिय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि वह ओपेक के निर्णय से दुखी थे।
उन्होंने वैश्विक तेल कीमतों में बढ़ोतरी में योगदान के लिए सऊदी अरब के स्वैच्छिक कटौती को जिम्मेदार ठहराया था। प्रधान के अनुरोध का जवाब देते हुए, सऊदी ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुल अजीज बिन सलमान ने भारत को पिछले साल खरीदे गए सस्ते तेल से भरे रणनीतिक भंडार में का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया था।
इसी के जवाब में तेल मंत्रालय ने अप्रत्यक्ष रूप से रिफाइनरों को कच्चे तेल के आयात में विविधीकरण लाने और पश्चिमी एशिया पर से निर्भरता कम करने का सलाह दिया था।
यही कारण है कि फरवरी में भारत के कुल आयात में पश्चिमी एशिया का हिस्सा 22 महीने के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। फरवरी में, सं अमेरिका, इराक के बाद भारत के लिए दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया, जबकि सऊदी अरब, जो लगातार भारत के शीर्ष दो में से एक आपूर्तिकर्ता रहा है, जनवरी 2006 के बाद पहली बार नंबर 4 पर फिसल गया था।
बता दें कि इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी ने भारत की तेल खपत को दोगुना होने का अनुमान लगाया है। इसने भारत के तेल आयात बिल को 2019 के स्तर से लगभग ट्रिपल, यानी 2040 तक $ 250 बिलियन से अधिक बताया है।
तेल मंत्रालय के एक अधिकारी, ने कहा कि ओपेक द्वारा उत्पादन में कटौती के कारण अनिश्चितता पैदा हो गयी है और रिफाइनरों के लिए खरीद की योजना बनाने में मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है।
अब भारत ने इसी मौके का फायदा उठा कर अपने तेल आयात अमेरिका, अफ्रीका, रूस और अन्य जगहों विस्तारित करने पर काम कर रहा है। यदि भारत सफल होता है, तो यह अन्य देशों के लिए एक उदाहरण स्थापित करेगा। यानी खरीदार जैसा अपने लिए अधिक किफायती विकल्प देखेगा तेल उसी की कीमत उसी के अनुसार तय होगी। इससे सऊदी अरब जैसे बड़े उत्पादकों का भू-राजनीति और व्यापार मार्गों पर प्रभाव समाप्त भी हो सकता है।