यूक्रेन और ताइवान के बीच की दूरी 8 हजार किलोमीटर से भी ज्यादा है। हालांकि दोनों देशों की स्थिति आज एक जैसी दिखाई दे रही है। अपने उकसावे भरे कदमों के कारण यूक्रेन पर जहां रूस के हमले का खतरा बढ़ा हुआ है तो वहीं ताइवान लगातार चीनी आक्रामकता के निशाने पर आया हुआ है। हालांकि, दोनों जगह एक जैसी स्थिति होने के बावजूद अमेरिका यहाँ दोहरे मापदंड अपनाता दिखाई दे रहा है।
बाइडन के सत्ता संभालते ही चीन ने ताइवान के खिलाफ भीषण आक्रामकता का प्रदर्शन करते हुए लगातार दो दिनों तक इस Island देश के एयरस्पेस में अपने बॉम्बर विमान और फाइटर जेट्स भेजे थे। तब बाइडन प्रशासन ने ताइवान की पीठ में छुरा घोंपते हुए कहा था कि अमेरिका ने “One China पॉलिसी में कोई बदलाब नहीं किया है। अमेरिका के नये प्रशासन ने आते ही चीन को बड़ी राहत देने का काम किया था, जो ट्रम्प की ताइवान नीति से भयभीत होकर लाल पीला पड़ चुका था।
बाइडन प्रशासन के आने से पहले ट्रम्प प्रशासन ने अपनी ताइवान नीति से चीन के लिए मुश्किलें खड़ी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। फरवरी 2018 के बाद ही अमेरिकी कांग्रेस में 5 ताइवान-समर्थक बिल पेश किए जा चुके हैं, जो दर्शाता है कि रिपब्लिकन्स के लिए ताइवान मुद्दा कितना अहम रहा है। वर्ष 2018 में अमेरिकी कांग्रेस ने Taiwan Travel Act को भी पारित किया था, जिसके बाद दोनों देशों के बीच उच्च-स्तरीय वार्ता हेतु द्विपक्षीय यात्राएं हो सकती हैं।
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इसी वर्ष फरवरी में रिपब्लिकन सांसद टेड क्रूज संसद में एक बिल लेकर आए थे, जिसके तहत उन्होंने ताइवान के अधिकारियों द्वारा अमेरिका में ताइवान के झंडे का आधिकारिक इस्तेमाल करने की छूट देने की अपील की थी। इसके बाद मई में रिपब्लिकन सांसद Mike Gallagher कांग्रेस में Taiwan Defense Act का प्रस्ताव लेकर आए थे, ताकि किसी भी चीनी हमले के समय में अमेरिकी सेना ताइवान की सहायता के लिए आगे आ सके।
अगर बाइडन ट्रम्प की इसी विरासत को आगे बढ़ाते हुए ताइवान के समर्थन में अधिक सक्रियता दिखाते तो यह ना सिर्फ अमेरिका के साथी देशों में अमेरिका के प्रति आत्मविश्वास बनाए रखता बल्कि चीन को भी अपनी सीमाओं में रहने पर मजबूर करता। हालांकि बाइडन ने आते ही जिस मुद्दे को सबसे ज़्यादा तूल दिया, वो था रूस में पुतिन के विपक्षी नेता Alexei Navalny को ज़हर देना का मामला और यूक्रेन के खिलाफ तथाकथित रूसी आक्रामकता का मुद्दा। रूसी आक्रामकता के खिलाफ अमेरिका का रुख देखकर यह कहा जा सकता है कि यूक्रेन मामले में जहां बाइडन से जरूरत से ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं, तो वहीं ताइवान को उन्होंने ठंडे बस्ते में डाल दिया है।
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बाइडन प्रशासन पहले ही रूस के खिलाफ Alexei Navalny को ज़हर देने के मुद्दे पर प्रतिबंध लगा चुका है। वे पुतिन को “Killer” बोल चुके हैं और इसके साथ ही पुतिन को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दे चुके हैं। इतना ही नहीं, पिछले कुछ दिनों में बाइडन के करीबी माने जाने वाले यूक्रेनी प्रशासन ने रूस के खिलाफ कई उकसावे भरे कदम उठाए हैं, जिसके बाद यूक्रेन और रूस के बीच का सालों पुराना ठंडा पड़ा तनाव फिर गर्म हो उठा है।
पिछले शुक्रवार को रूस समर्थक अलगाववादी संगठनों के मोर्टार हमले में यूक्रेन के 4 सैनिक मारे गए थे, जिसके साथ ही पिछले वर्ष जून में घोषित सीज़फायर का सबसे बड़ा उल्लंघन रिपोर्ट किया गया। मीडिया रिपोर्ट्स इस ओर भी इशारा कर रही हैं कि रूस अब यूक्रेन से सटे बॉर्डर पर बड़ी संख्या में युद्ध सामाग्री इकट्ठा करने में लगा है।
इस विवाद से सबसे ज़्यादा फायदा बाइडन प्रशासन को होगा, क्योंकि इसकी आड़ में वे NATO को पुनर्जीवित करने के सपने को साकार कर सकेंगे। इसके साथ ही वे Cold War के समय के हालातों को दोबारा पैदा कर सकते हैं। स्पष्ट है कि इस चल रहे विवाद के पीछे रूस का नहीं, अमेरिकी deep state का हाथ हो सकता है।
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ट्रम्प के समय दुनिया रूस और यूक्रेन के बीच के विवाद को भूल चुकी थी, लेकिन बाइडन ने इसे आने के बाद से ही भड़काने का काम किया है। बाइडन ने आते ही यूक्रेन को 125 मिलियन डॉलर के सुरक्षा उपकरण प्रदान करने का ऐलान किया है। इस सहायता के तहत यूक्रेन को 2 पेट्रोलिंग बोट्स और एंटि-आर्टिलरी रेडार प्रदान करने का किया था। स्टेट डिपार्टमेन्ट के बयान के मुताबिक “हम रूस द्वारा यूक्रेन को धमकाए जाने की घटना की निंदा करते हैं।”
यूक्रेन में तथाकथित रूसी आक्रामकता का “मुंहतोड़” जवाब देने वाला बाइडन प्रशासन ताइवान के मामले पर चीन के खिलाफ अचानक ठंडा पड़ जाता है। बाइडन के ये ही दोहरे मापदंड हैं, जो अमेरिका को उसके साथी देशों में अलोकप्रिय बना रहे हैं। शायद यही कारण है कि अब ताइवान अपनी सुरक्षा को अपने हाथों में लेने के लिए खुद घातक मिसाइलों का उत्पादन कर रहा है। बाइडन के अंतर्गत अमेरिका विश्वास के अयोग्य सिद्ध होता जा रहा है।