देश में कोरोनावायरस की दूसरी लहर ने तांडव मचा रखा है। प्रतिदिन तीन लाख से भी अधिक नए केस सामने आ रहे हैं। इस स्थिति को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित 10 राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ इसके निवारण के लिए बैठक कर चर्चा की, लेकिन एक बार फिर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस मीटिंग में शामिल नहीं हुईं।
ममता दीदी केंद्र पर ऑक्सीजन से लेकर वेंटिलेटर के मुद्दे पर हमला तो बोल रही है, लेकिन निवारण के लिए होने वाली चर्चाओ से भाग रही है और शायद चुनाव में व्यस्त हैं। उनके इस रवैये को देखकर कहा जा सकता है कि वो अब बंगाल में अपनी हार स्वीकार कर चुकी है और बस औपचारिकताएं ही कर रही है।
ममता दीदी का कोरोनावायरस को लेकर रवैया इतना ही ढुलमुल और लचर रहा है जिसकी जितनी आलोचना की जाए कम ही होगी। वहीं अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोविड बैठकों में शामिल न होना कुछ नए संदेश दे रहा है।
बीजेपी के तगड़े जनसमर्थन से शायद अब ममता डरने लगी है और इसीलिए उन्हें ये पूर्वानुमान हो गया है कि वो 2021 का ये एतिहासिक विधानसभा चुनाव बीजेपी से बड़े अंतर से हार सकती है। इसीलिए अब वो मुख्यमंत्री के बेहद जरूरी काम से भी पल्ला झाड़ रही है, जो कि भविष्य में बीजेपी के लिए मुसीबतें खड़ी कर सकता है।
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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव की बात करें तो अब चुनाव के नतीजे आने में 8-9 दिन ही बचे हैं। ममता दीदी का चुनाव प्रचार अब पूरी तरह ठंडा हो चुका है। उनकी बातों में बीजेपी के प्रति खीझ ज्यादा और जन समस्याओं को हल करने की अभिलाषा कम है।
उन्हें डर सताने लगा है कि वो अब ये चुनाव हार सकती है, लेकिन नतीजे घोषित होने तक तो वही बंगाल की मुख्यमंत्री हैं। इसके बावजूद अब उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों से भागना शुरू कर दिया है।
बात अगर पश्चिम बंगाल की करें तो वहां की ताजा स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं है। प्रतिदिन बढ़ते कोरोनावायरस के आंकड़ों के बीच एक झटका देने वाली खबर भी आई है कि पश्चिम बंगाल में कोरोनावायरस का तीसरा स्वदेशी म्यूटेंट मिला है जो कि एक सच में खौफनाक बात है, क्योंकि पश्चिम बंगाल की घनी आबादी में इस नए खतरे का जन्म लेना राज्य और देश दोनों के लिए ही खतरनाक है।
प्रतिदिन दस हजार से ज्यादा आ रहे कोरोना के आंकड़ों में इस नए म्यूटेंट की तादाद तेजी से बढ़ रही है, लेकिन प्रशासन आंख मूंदकर झपकी ले रहा है।
कोरोनावायरस की स्थिति के भयंकर होने से इतर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने राजनीतिक निर्वासन की तैयारी कर रही है और शायद अगले पांच साल आने वाली सरकार पर करने वाले हमलों की प्लानिंग कर रही है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री होने के बावजूद उन्होंने प्रधानमंत्री के साथ बैठक में अपने राज्य के मुख्य सचिव को भेज दिया।
उन्हें अब आभास हो गया है कि वो चुनाव हार सकती है। इसीलिए बनने वाली बीजेपी सरकार के लिए वो सत्ता का इस्तेमाल कर मुसीबतों नया रायता फैला रही है, जिसे समेटने में ही बीजेपी के नए मुख्यमंत्री को लंबा वक्त लग जाए और फिर उस पर राजनीतिक हमले किए जा सकें।
ममता बनर्जी का ये रवैया बीजेपी के लिए खतरनाक हो सकता है, क्योंकि अगर 2 मई क़ो चुनाव नतीजों के बाद नई सरकार बनती है और वो सत्ता में आती है तो उसके सामने ममता द्वारा अस्त-व्यस्त किया गया माहौल सुधारने की मुश्किल चुनौती होगी।