2005, उत्तर प्रदेश के मऊ में सांप्रदायिक दंगों के कारण लोग त्राहिमाम कर रहे थे। लेकिन कार्रवाई तो छोड़िए, उलटे दंगाइयों को खुला संरक्षण दिया जा रहा था। इसी बीच संत से राजनेता बने एक व्यक्ति स्थिति का जायज़ा लेने और पीड़ितों की मदद करने मऊ की ओर रवाना हुए। लेकिन उनका स्वागत पत्थरों और बमों से हुआ। पुलिस हाथ पर हाथ रखकर मूकदर्शक बनी रही। कुशासन के इस बेहूदा प्रदर्शन से क्रोधित उस युवा नेता ने शपथ ली कि जब तक इन दंगों के मुख्य आरोपी ( मुख्तार अंसारी) को वह सलाखों के पीछे नहीं पहुंचा देता, और जब तक पूर्वांचल को वह उस उग्रवादी के आतंक से मुक्त नहीं कर देता, वह चैन से नहीं बैठेगा।
16 वर्ष बाद, आज उस युवा नेता ने न केवल अपनी शपथ पूरी की है, बल्कि पूर्वांचल को उसके भय से भी मुक्त कराया है। ये उग्रवादी कोई और नहीं, एक समय पर पूर्वांचल पर एकछत्र राज्य करने वाला उग्रवादी मुख्तार अंसारी है, और वह युवा नेता कोई और नहीं, उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं। 16 वर्ष पहले शुरू हुई दुश्मनी आज अंजाम तक पहुँच चुकी है, और कई वर्षों की कड़ी मेहनत के पश्चात मुख्तार अंसारी को एक बार फिर उत्तर प्रदेश की जेल में स्थानांतरित करने में प्रशासन ने कामयाबी पाई है।
योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व का खौफ ऐसा है कि जो मुख्तार अंसारी पंजाब के रोपड़ जेल से व्हीलचेयर पर निकला था, वह बांदा जेल पहुंचते ही अपने पैरों पर चलकर अपने बैरक पहुंचा। लेकिन इसके पीछे कारण क्या है? इसके पीछे हमें पूर्वांचल की राजनीति पर प्रकाश डालना होगा, जिसमें दोनों ही पात्रों की बड़ी अहम भूमिका रही है।
पूर्वांचल में एक समय मुख्तार अंसारी का एकछत्र राज था, जिसके समर्थन के बिना उत्तर प्रदेश में सरकारें तक नहीं टिक पाती थी। मुख्तार अंसारी के साथ-साथ उसके विश्वासपात्र मुन्ना बजरंगी के नाम से भी पूर्वांचल क्या, पूरा यूपी खौफ खाता था। लेकिन दो घटनाओं ने कहीं न कहीं मुख्तार अंसारी के विनाश की नींव रख दी थी, और दोनों ही 2005 में घटित हुई थीं।
सर्वप्रथम तो मऊ में जो दंगे मुख्तार अंसारी और उसके गुर्गों ने भड़काए थे, उसके कारण उसे जो स्पष्ट और मुखर समर्थन राजनीतिज्ञों द्वारा मिला करता था, वो हटने लगा। मऊ दंगों के कारण ही मुख्तार अंसारी के संरक्षकों में से एक रहे समाजवादी पार्टी को 2007 में सत्ता से हाथ धोना पड़ा था। लेकिन इससे मुख्तार अंसारी की दबंगई पर कोई असर नहीं पड़ा। वह जेल में जरूर था, लेकिन जेल ही उसका मुख्यालय बन गया। लेकिन योगी आदित्यनाथ से उसने मऊ के दंगों के दौरान पंगा मोल लिया, वही आज मुख्तार अंसारी के गले की फांस बन रहा है।
एक घटना 2008 से भी जुड़ी है जब योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी के नेतृत्व में आजमगढ़ में आतंकवाद के खिलाफ रैली निकाली तो सुनियोज तरीके से उनपर हमला करवाया गया था तब भी उन्हें संदेह था कि इसमें मुख़्तार अंसारी का ही हाथ है. त्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ ने कहा था वो इस हमले का जवाब जरुर देंगे
इसके अलावा मुख्तार अंसारी को इस बात का भय है कि कहीं उसका भी हाल मुन्ना बजरंगी जैसा न हो। जिस वर्ष मुख्तार का आतंक अपने चरम पर था, उसी वर्ष उसे चुनौती देने में सबसे आगे रहे भाजपा विधायक कृष्णानन्द राय को नवंबर 2005 में गोलियों से भून दिया गया था। इसमें मुख्तार के दाहिने हाथ कहे जाने वाले मुन्ना बजरंगी का बहुत अहम रोल था, जिसे 2009 में आखिरकार हिरासत में लिया गया। लेकिन मुख्तार की भांति मुन्ना बजरंगी के लिए भी जेल उसके आधिकारिक मुख्यालय से कम नहीं था। परंतु योगी आदित्यनाथ के आते ही मुन्ना बजरंगी की सुविधाओं पर लगाम लग गई, और जुलाई 2018 में एक हिंसक झड़प में मुन्ना बजरंगी को गोलियों से बागपत जेल में भून दिया गया।
इसीलिए मुख्तार अंसारी उत्तर प्रदेश वापिस आने से काफी भयभीत हैं, क्योंकि उसे भय है कि कहीं उनका भी मुन्ना बजरंगी या विकास दुबे जैसा हश्र न हो। लेकिन ये योगी आदित्यनाथ की सरकार है, जहां सिर्फ भय से ही अपराधियों का हलक सूख जाए, वहाँ गोलियों की क्या जरूरत?