CM Himanta बातचीत की “अपील” के दो दिन बाद ही ULFA घुटनों पर आ गया
जब सरकार का मुखिया सख्त होता है तो अच्छे-अच्छों के पसीने छूट जाते हैं। कुछ ऐसा ही असम के आतंकी संगठन उल्फा (ULFA) यानी यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (United Liberation Front of Asom) के साथ भी हुआ है। आए दिन ये प्रतिबंधित संगठन आतंक के लिए चर्चा का विषय रहता है। इस मुद्दे को लेकर सरकार पर सवाल खड़े होते रहे हैं, लेकिन असम में राजनीतिक बदलाव होते ही ULFA के सुर बदल गए हैं। पिछले लंबे वक्त से आतंक के साए में रह रहे असम के लोगों के लिए सुखद खबर ये है कि प्रतिबंधित संगठन ULFA अब संघर्ष विराम को तैयार है। संगठन के प्रमुख परेश बरुआ ने कहा कि ये कोरोना संक्रमण के कारण तत्काल रूप से प्रभावी होगा। परेश बरुआ इस संघर्ष विराम की वजह कोरोना को बता रहे हैं लेकिन असल में ये डर राज्य के नए मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा का है, जिन्होंने कुछ दिन पहले ही शांति कायम करने की अपील की थी, और अब उनके खौफ का असर ULFA पर भी देखने को मिल रहा है।
हमने अगले तीन महीने तक सभी अभियानों को स्थगित करने का फैसला किया है : ULFA प्रमुख परेश बरुआ
असम की एनडीए सरकार के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को लेकर कहा जाता है कि वो एक सख्त प्रशासक है। यही कारण है कि असम जैसे अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़े राज्य का मुख्यमंत्री उन्हें बनाया गया है। ऐसे में वो आतंक के खिलाफ भी काफी सख्त नीति अपना रहे हैं। इसी बीच आतंकी संगठन ULFA ने संघर्ष विराम का ऐलान कर दिया है। इसको लेकर संगठन के प्रमुख परेश बरुआ ने कहा, “हमने अगले तीन महीने तक सभी अभियानों को स्थगित करने का फैसला किया है क्योंकि महामारी की वजह से लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।”
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दरअसल, हाल ही में असम के तिंगराई में एक ग्रेनेड से हमला हुआ जिसकी ज़िम्मेदारी लेने से परेश बरुआ ने इनकार किया है। हालांकि, इस मौक़े पर भी वो सुरक्षाबलों पर सवाल उठाने से बाज़ नहीं आए हैं। उन्होंने कहा, “’यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब असम के लोग मुश्किल वक्त का सामना कर रहे हैं, सुरक्षा बलों का एक वर्ग संगठन की छवि धूमिल करने का प्रयास कर रहा है।” वहीं तिनसुकिया इलाके में इस बड़ी खबर पर सीएम हिमंता का कहना है कि “शांति के लिए अनुकूल माहौल बनाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार और विद्रोही समूह, दोनों की ही है। सरकार इस दिशा में सक्रिय कदम उठाएगी। जब राज्य कोविड-19 के खिलाफ युद्ध में व्यस्त है, तो वह राज्य में शांति व स्थिरता बनाए रखने के लिए हर वर्ग से सहयोग की उम्मीद कर रहे हैं।”
प्रतिबंधित संगठन ULFA के प्रमुख परेश बरुआ का कहना है कि उनके संगठन द्वारा संघर्ष विराम का ये कदम कोरोनावायरस की वैश्विक महामारी के कारण उठाया गया है। इसके इतर अगर पिछले कुछ दिनों के घटना क्रम को देखें तो चार-पांच दिन पहले नवनिर्वाचित सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने उल्फा को संबोधित करते हुए अपील की थी कि संगठन को शांति की पहल करनी चाहिए। सरकार और प्रतिबंधित संगठन के प्रमुख इस मुद्दे पर बात करने को तैयार हैं। हिमंता की बात करें तो Bodoland Territorial Region और Karbi Anglong की शांति और केन्द्र सरकार से बातचीत में उनकी अहम भूमिका रही है।
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गौरतलब है कि उल्फा का गठन 1979 में असम को संप्रभु राष्ट्र बनाने के उद्देश्य से हुआ था। तब से लेकर आज तक ये लोग विरोध के नाम पर हिंसात्मक और आतंकी घटनाओं को अंजाम देते रहे हैं। इसीलिए इन पर वर्ष 1990 में प्रतिबंध लगा दिया गया था। सीएम हिमंता बिस्वा सरमा के लिए इनसे निपटना एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन अपनी पहली प्रेस ब्रीफिंग में ही उन्होंने उल्फा का उल्लेख कर अपने इरादे साफ कर दिए थे। उनके इसी खौफ के चलते अब परेश बरुआ ने कोरोना का बहाना बनाकर 3 महीने का संघर्ष विराम घोषित किया है। हालांकि, हिमंता के रुख को देखकर कहा जा सकता है कि अब जल्द ही इस संगठन का अस्तित्व पूर्णतः मिट जाएगा।