कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण पाने के जगह, हर वो बेफिजूल काम कर रहा है, जिससे राज्य को फायदा तो नहीं उल्टा नुकसान जरूर पहुंच सकता है। दरअसल हाल ही में अशोक गहलोत की सरकार ने अब महामारी के दौरान हुई सभी मौतों का ऑडिट करवाने का फैसला किया है। इस ऑडिट का मुख्य मकसद यह होगा कि राज्य में हुई मौतों का सरकार आकलन करेगी कि कितने मौत कोरोना संक्रमण से हुई है और कितनों की मौत किसी अन्य बीमारी की वजह से।
Rajasthan is reporting less.
Dead body being carried out in Trolley.
Patients are given empty cylinder.
In words of @ravishndtv, @ashokgehlot51 has made it लाश-स्थान. pic.twitter.com/xSxIDdPUeu— Facts (@BefittingFacts) May 25, 2021
आपको बता दें कि राजस्थान सरकार की यह पहल किसी भी पैमाने पर खरी नहीं उतर रही है। क्योंकि किसी व्यक्ति की मौत के पीछे का कारण जानने के लिए पोस्टमार्टम करना पड़ेगा। अब सवाल यह उठता है कि जो लोग महीनों पहले या कुछ दिन पहले मर चुके है और उनका दाह संस्कार भी हो चुका होगा, ऐसे में राज्य सरकार उनका पोस्टमार्टम कैसे करेगी।
अच्छा चलिए मान लेते है कि डेटा एंट्री का ऑडिट होगा, लेकिन उसके लिए तो राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने खुद बोला है कि मौत के आंकड़े छिपाने का कोई सवाल ही नहीं उठता है। तो फिर राजस्थान सरकार किस बात का और आखिर क्यों ऑडिट कर रही है, यह तो समझ के बाहर है।
अशोक गहलोत सरकार का एक और तर्क है घर पर इलाज कराते हुए जिन कोरोना संक्रमितों की मौत हो गई उनका आंकड़ा भी सरकारी रिकॉर्ड में नहीं है, इस वजह से आंकड़ों में अंतर है। अगर हम यह बात माने तो उनका तर्क राज्य सरकार की स्वास्थ्य प्रणाली के ऊपर सवाल खड़ा करता है। क्योंकि केंद्र सरकार ने कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए कुछ नियम तय किए थे।
जैसे कि अगर कोई कोविड मरीज को हल्के लक्षण है तभी वो घर पर इलाज कर सकता है, अन्यथा उसको अस्पताल आकार डॉक्टर के देखरेख में इलाज कराना होगा। लेकिन राजस्थान सरकार के दावे के मुताबिक, राज्य के लोग जिनको कोविड हुआ और वो बीमारी की वजह से गंभीर परिस्थिति में चले गए इसके बावजूद वो अस्पताल में इलाज कराने नहीं आए और उनकी मौत घर पर ही हो जाती है।
इसका मतलब यह है कि राज्य की जनता का भरोसा राज्य की स्वास्थ्य प्रणाली के ऊपर नहीं है, तभी वो गंभीर हालात में भी घर को अस्पताल से ज्यादा महफूज समझे है।
अगर हम अशोक गहलोत सरकार की ऑडिट के लॉजिक से हटकर बात करे तो गहलोत सरकार इस महामारी में भी अपनी छवि चमकाने में लगी हुई है। कोरोना के दौर में हुई मौतों को लेकर विपक्ष सरकार पर हमलावर है।
दरअसल, कोविड से होने वाली मौतों के सरकारी और अन्य कुछ आंकड़ों में काफी अंतर है। हाल ही में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 25 जिलों में 50 दिन में करीब 3500 मौतें दिखाई गई थी। जबकि राज्य के केवल 512 गांव और ब्लॉक में 15,000 के करीब मौत, 50 दिनों में हुई है।
अशोक गहलोत ने राजस्थान को बर्बादी में धकेल दिया है। अभी राजस्थान में सिर्फ 50,000 कोरोना टेस्ट होते है और 3,800 के ऊपर संक्रमण के नए मामले पाए जाते है। वहीं उत्तर प्रदेश में एक दिन में 3 लाख के ऊपर कोरोना टेस्ट किए जाते है और संक्रमण के मामले राजस्थान से कहीं गुना कम आते है। इसका मतलब साफ है कि गहलोत सरकार कोरोना की वजह से हुई मौत ही नहीं बल्कि कोरोना संक्रमण के मामले पर भी पर्दा डालने की कोशिश कर रही है।
आपको बता दें कि यह हाल केवल एक कांग्रेस शासित प्रदेश का नहीं है बल्कि सभी राज्यों का है जहां कांग्रेस की परछाई भी है वहां कोरोना नियंत्रण को लेकर ढुल मूल नीति अपनाई जा रही हैं। चाहे बघेल सरकार हो या कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार सभी को राज्य की जनता के स्वास्थ्य से ज्यादा छवि की पड़ी है।