आपको क्या लगता है, बॉलीवुड को सबसे अधिक किसने बर्बाद किया है? उर्दू प्रेमियों ने? हाजी मस्तान, दाऊद इब्राहिम जैसे अंडरवर्ल्ड डॉन ने? यूं तो हिन्दी फिल्म उद्योग का उर्दूकरण करने में इनके ‘अतुलनीय योगदान’ को अनदेखा नहीं किया जा सकता, परंतु बॉलीवुड को बर्बाद करने का सर्वाधिक श्रेय उसी व्यक्ति को जाता है, जिसके कारण आज बॉलीवुड विश्व भर में भारत के लिए हंसी का पर्याय बन चुका है। इनका नाम है करण जौहर, और आज इन्हीं का जन्मदिन है। विडंबना देखिए, आज ही के दिन भारत के एक वीर सपूत रासबिहारी बसु भी जन्मे थे।
बॉलीवुड निर्माता यश जौहर के घर पैदा हुए राहुल कुमार जौहर उर्फ करण जौहर का बचपन से ही स्ट्रगल से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रहा है। भाई भतीजावाद या वंशवाद बॉलीवुड के लिए कोई नई बात नहीं है, ये तो बॉलीवुड के प्रारंभ से हम देखते आ रहे हैं। लेकिन इसे बॉलीवुड के लिए एक हानिकारक विष में परिवर्तित करने का काम किया है करण जौहर ने। आज इन्हीं के कारण योग्यता और रचनात्मकता ने बॉलीवुड में बैक सीट ले ली है, चाहे वो कहानी के क्षेत्र में हो, या फिर संगीत के क्षेत्र में।
प्रसिद्ध हॉलीवुड मूवी ‘शिन्डलर्स लिस्ट’ में एक बहुत ही गहरा संवाद कहा गया था, “जब मैं कोई काम करता हूँ, तो मैं चाहता हूँ कि उसकी एक पहचान हो, एक चमक हो। इसमें मैं योग्य हूँ – काम करने में नहीं, बल्कि उसे सजाकर पेश करने में”। करण जौहर इस संवाद का जीता जागता स्वरूप हैं। वे ऐसे व्यक्ति हैं, जो कूड़े अथवा मल को भी सोने की तश्तरी में ऐसे सजाकर पेश करेंगे, कि आप उसे चखने को विवश हो जाएंगे।
सोचकर असहनीय लग रहा है न? लेकिन पिछले 23 वर्षों से करण जौहर ऐसा ही कर रहे हैं। जब बतौर निर्देशक उन्होंने ‘कुछ कुछ होता है’ से डेब्यू किया था, तो उसके संगीत को छोड़कर फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं था, जो उसे देखने योग्य बनाए। उसी वर्ष ‘सत्या’, ‘जख्म’ जैसी फिल्में भी आई थीं, जो कम से कम कहानी के लिहाज से देखने योग्य तो थीं। लेकिन करण जौहर ने सजावट और चकाचौंध का ऐसा जाल रचा कि अगले वर्ष 8 फिल्मफेयर अवार्ड्स झटकने के साथ साथ 2 राष्ट्रीय फिल्म अवॉर्ड भी अर्जित किए। हाँ हाँ, कभी कभी नेशनल अवार्ड्स से भी गलतियाँ हो जाती है।
बॉलीवुड में अगर आज कुछ भी गलत हो रहा है, उसकी आधारशिला करण जौहर ने ही रखी है। सुशांत सिंह राजपूत की आकस्मिक मृत्यु के पीछे वे किस हद तक शामिल थे, ये तो ईश्वर ही जाने, लेकिन बॉलीवुड को आज हास्य का पर्याय बनाने वाले औसत गीत, रिमिक्स कल्चर इत्यादि की नींव भी इसी व्यक्ति ने रखी थी।
2012 में करण जौहर ने अपने दोयम दर्जे की फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ में ‘डिस्को दीवाने’ का एक घटिया रीमेक बनाया था, और तब से आज में कभी अपने कर्णप्रिय गीतों से लोगों को थिरकने पर विवश करने के साथ ही बॉलीवुड आज ‘कॉपी पेस्ट’ की दुकान बन चुका है। जिसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ करण जौहर को ही जाता है। लेकिन ये सिलसिला यहीं पर नहीं रुका, बल्कि ‘हम्पटी शर्मा की दुल्हनिया’, ‘कपूर एंड संस’, ‘बार बार देखो’, ‘ओके जानु’, ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ इत्यादि से इन्होंने बॉलीवुड के संगीत में रचनात्मकता को खत्म करने की नींव डाली थी।
इसके अलावा करण जौहर ने ही बॉलीवुड में वामपंथी प्रोपेगैंडा को एक नई धार दी। चाहे आतंकवाद को ‘कुर्बान’ के जरिए अप्रत्यक्ष रूप से उचित ठहराना हो, ‘माई नेम इज़ खान’ के जरिए ‘Islamophobia’ के झूठ को बढ़ावा देना हो और अल्पसंख्यक तुष्टीकरण को प्रोमोट करना हो, करण जौहर ने वामपंथियों के प्रोपेगैंडा को अपने फिल्मों के जरिए काफी बढ़ावा दिया। ‘राज़ी’ में न सिर्फ उन्होंने मूल लेखक की पुस्तक के विचारों के साथ समझौता किया, बल्कि ‘कलंक’ में तो विभाजन का दुख झेलने वाले हिंदुओं और सिखों का उपहास तक उड़ाया। ‘ए दिल है मुश्किल’ के रिलीज के दौरान उरी हमले के बावजूद पाकिस्तानियों का जिस तरह से इन्होंने पक्ष लिया, वो किसी से नहीं छुपा है।
संगीत तो संगीत, आजकल हास्य कला में भी फूहड़ता का जो तूफान आया हुआ है, उसे भी करण जौहर ने ही बढ़ावा दिया। AIB जैसे दोयम दर्जे के एलीट अंग्रेज़ी कॉमेडी क्लब के ‘रोस्ट’ ‘AIB Knockout’ को करण ने न सिर्फ बढ़ावा दिया, बल्कि रेप जोक्स, समलैंगिकों के विरुद्ध फब्तियाँ कसने को भी खुलेआम प्रोमोट किया। हालांकि, ईसाइयों के आडंबरों पर जोक मारने का खामियाजा पूरी टीम को भुगतना पड़ा और सभी को ईसाई समुदाय से माफी माँगनी पड़ी।
लेकिन सुशांत सिंह राजपूत के साथ जो हुआ, उसके कारण करण जौहर की छवि को बहुत तगड़ी चोट पहुंची। हालांकि, अभी तक करण ने इसके लिए कोई खेद नहीं जताया और न ही स्पष्ट तौर पर क्षमा याचना की है, लेकिन 2020 से करण जौहर की लोकप्रियता में काफी गिरावट आई है। गुंजन सक्सेना के कलेक्शन वास्तव में क्या रहा है, ये हमेशा संदेह के घेरे में रहेगा, परंतु करण जौहर की छवि अब पहले जैसे नहीं रही है। हालांकि, करण जौहर का सबसे बड़ी USP है उनकी बेशर्मी, और ये भारतीय फिल्म उद्योग के लिए शुभ संकेत नहीं है।