केरल की नवनिर्वाचित LDF की अगुवाई वाली सरकार ने स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा सहित नए चेहरों की तलाश के लिए पिछले मंत्रिमंडल से सभी मंत्रियों को हटा दिया। ये वही केके शैलजा है जिनकी कोविड -19 संकट से निपटने के लिए ‘विशेषज्ञों’ तथा लिबरल ब्रिगेड की मीडिया द्वारा सराहना की गई थी। पुराने मंत्रिमंडल से केवल मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को दूसरा कार्यकाल मिल रहा है। केरल कैबिनेट से केके शैलजा का निष्कासन दिखाता है कि विजयन का “कोविड मॉडल” कुछ और नहीं बल्कि एक PR नौटंकी थी।
बता दें कि पिछले साल सेवानिवृत्त शिक्षिका शैलजा टीचर के नेतृत्व में कोरोना महामारी की लड़ाई को ‘केरल मॉडल’ का नाम दिया गया था। राष्ट्रीय मीडिया से ले कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर केरल के स्वास्थ्य मंत्री के रूप में उन्होंने लोकप्रियता हासिल की। मीडिया में तो यह तक प्रचारित किया गया कि अन्य राज्यों को केरल मॉडल से सीखना चाहिए। यहाँ तक कि पिछले साल सितंबर में, यूके स्थित एक पत्रिका ने केके शैलजा को “वर्ष 2020 के शीर्ष विचारक” के रूप में चुना था, परन्तु अब उन्हें केरल की केबिनेट में स्थान ही नहीं मिला है। देखा जाये तो जिस स्तर से शैलजा और “केरल मॉडल” का PR हुआ था उससे यह स्पष्ट था कि कहीं न कही यह एक सुनियोजित चाल है। अब उनके केबिनेट से निष्कासन से PR नौटंकी स्पष्ट हो गयी है।
बता दें कि जब वुहान वायरस ने भारत में पैर पसारने शुरू किए थे और महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश जैसे राज्य इसकी गिरफ्त में आ रहे थे, तब केरल में इसका असर काफी कम था। इसी के आधार पर केरल द्वारा अपनाए जा रहे तौर तरीकों को केरल मॉडल की संज्ञा दी गई, जिसे वामपंथियों और मीडिया में उनके समर्थकों ने प्रचार किया था।
हालाँकि यह PR अधिक दिनों तक नहीं चला और वुहान वायरस से निपटने के केरल मॉडल की भी पोल खुलनी शुरू गयी थी। पिछले वर्ष मई माह से ही स्वास्थ्य विशेषज्ञ सवाल उठा रहे थे, क्योंकि उनके अनुसार केरल में पर्याप्त मात्रा में टेस्टिंग नहीं हो रही थी। केरल मॉडल के नाम पर मलप्पुरम जिले के वालनचेरी में स्थित एक निजी लैब ने काफी बड़े स्तर पर फर्जी COVID टेस्ट नेगेटिव के सर्टिफिकेट बांटे थे और इस घोटाले से करीब 45 लाख रुपये भी कमाए हुई थी। यह शैलजा टीचर की नाक के नीचे हुआ था।
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इसी वर्ष फरवरी में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने केरल और महाराष्ट्र में हाईलेवल मल्टी डिसीप्लिनरी टीमों को भेजने का फैसला लिया था जिन्होंने कोविड-19 प्रबंधन में राज्य की टीमों की मदद की। खास बात ये है उस दौरान देश में आने वाले कोरोना के आंकड़ों में 70 फीसदी आंकड़े महाराष्ट्र और केरल के ही थे। तब केरल के सीएम राज्य में खराब स्थितियों के बावजूद राजनीतिक बयानबाजियों में मस्त थे।
इसके बावजूद मेन स्ट्रीम मीडिया केरल मॉडल की तारीफ में ही जुटी हुई थी। कोरोना के दूसरे चरण में तो केरल मॉडल पूरी तरह से विफल रहा है। महामारी की दूसरी लहर के दौरान, राज्य में लगातार एक दिन में 25,000 से अधिक मामले सामने आ रहे हैं। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, केरल द्वारा एक दिन में दर्ज किए गए नए मामलों की अधिकतम संख्या 12 मई को थी जब राज्य ने एक ही दिन में 43,000 से अधिक मामले दर्ज किए। इससे स्पष्ट है कि जिसे केरल मॉडल कहा जा रहा था वह किस तरह झूठ और वामपंथी मीडिया द्वारा किये गए PR के सहारे खड़ा था। वास्तविकता यह है कि अब शैलजा टीचर को उनकी ही सरकार ने बहार का रास्ता दिखा दिया है।
पिनाराई विजयन के नेतृत्व वाली केरल सरकार 20 मई को शपथ ग्रहण करेगी। इस दिन कुल 21 मंत्री शपथ लेंगे। हाल के केरल चुनावों में, LDF ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ और भाजपा-एनडीए को हराकर 99 सीटें जीतीं। यूडीएफ को 41 सीटें मिलीं जबकि एनडीए केरल में एक भी सीट हासिल नहीं कर पाई।