पांच राज्यों में पांच चरणों के मतदान खत्म हो चुके हैं और विभिन्न चैंनलों पर एग्जिट पोल आने लगे हैं। जहाँ देशभर में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और असम के चुनावों पर अधिक चर्चा हो रही है वहीं एक छोटे दक्षिण भारतीय राज्य पुडुचेरी में एक बड़ा परिवर्तन होने वाला है। पहली बार पुडुचेरी में NDA की गठबंधन सरकार बनने वाली है। महत्वपूर्ण यह है कि भाजपा इस बार सीट शेयर करके सम्मिलित होगी, जो बताता है कि राज्य में बड़े परिवर्तन होने वाले हैं।
पुडुचेरी में लंबे समय तक कांग्रेस की सरकार रही है, लेकिन कांग्रेस ने इस राज्य को कभी इसकी अलग पहचान से न देखकर, इसे तमिलनाडु के हिस्से की तरह देखा है। कांग्रेस की नीतियां राज्य केंद्रीत न होकर तमिलनाडु से प्रभवित रही हैं, लेकिन भाजपा के शासन में आने के बाद इस परिस्थिति में बदलाव होगा।
ऐसा इसलिए क्योंकि एग्जिट पोल बताते हैं कि तमिलनाडु में DMK गठबंधन और पुडुचेरी में NDA सरकार बना रही है, ऐसे में स्पष्ट है कि पुडुचेरी तमिलनाडु के प्रभाव से मुक्त हो जाएगा। यदि तमिलनाडु में AIADMK और भाजपा सरकार बनाती हैं तो भी भाजपा नहीं चाहेगी कि AIADMK का राज्य में कैसा भी विस्तार हो, जिससे राजनीतिक प्रतिद्वंदिता बढ़े। दोनों ही परिस्थितियों में पुडुचेरी का तमिलनाडु से राजनीतिक अलगाव तय है।
कांग्रेस ने पुडुचेरी की अलग पहचान का प्रयोग किया होता तो पुडुचेरी एक बड़े टूरिस्ट हब के रूप में विकसित हो सकता था।पुडुचेरी का अपना रोचक इतिहास है। यहाँ फ्रांसीसीयों का लंबे समय तक कब्जा रहा था। ऐसे में फ्रांसीसी स्थापत्य से लेकर, भोजन तक, पुडुचेरी की पूरी जीवन शैली फ्रांसीसी तर्ज पर बनी है। इसके अतिरिक्त इस छोटे से राज्य में महर्षि अरबिंदो का आश्रम भी है। महर्षि अरबिंदो भारतीय राष्ट्रवाद के महान विचारक थे। ऐसी ऐतिहासिक धरोहर कांग्रेस शासन में प्रशासनिक अक्षमता के कारण अब तक उपेक्षित रही है।
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पुडुचेरी के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण स्वामी ने राज्य में कांग्रेस को बर्बाद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके शासन में कांग्रेस टूटकर बिखर गई। कांग्रेस की भीतरी कलह का नतीजा यह हुआ कि राज्य की जिम्मेदारियों के प्रति रूलिंग पार्टी ने मुँह मोड़ लिया था। स्वामी का अधिकांश समय पूर्व गवर्नर किरण बेदी से लड़ने में ही बीतता था। कांग्रेस आलाकमान आंतरिक कलह सुलझाने में नाकामयाब रही जिसके कारण स्वामी सरकार के कामों पर ठीक से ध्यान नहीं दे सके।
ऐसे में पुडुचेरी को एक ऐसे सशक्त नेतृत्व की आवश्यकता है, जिसकी सरकार और दल दोनों पर पकड़ हो। ऐसा नेतृत्व पुडुचेरी को भाजपा शासन में मिलेगा। साथ ही केंद्र से आने वाली आर्थिक मदद राज्य के विकास के लिए महत्वपूर्ण होने वाली है।
भाजपा ने अपने मेनिफेस्टो में वादा किया है कि वह पुडुचेरी का राजस्व में हिस्सा 25% से बढ़ाकर 40% कर देंगे। साथ ही योजनाओं को फंड करने में भी केंद्र राज्य के अनुपात को 70:30 कर देगी, जो पहले 30:70 था।
राज्य में शिक्षा का स्तर उठाने के लिए ऐसे लोगों की उच्च शिक्षा मुफ्त कर दी जाएगी, जो अपने परिवार में पहले ग्रेजुएट होंगे। विद्यालयों का शुल्क कम करने के लिए स्वतंत्र निकाय बनाया जाएगा। राज्य में स्थित मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज में राज्य का कोटा 50% कर दिया जाएगा। पुडुचेरी विश्वविद्यालय को तीन भागों में बांटकर आर्ट्स, मेडिकल और टेक्नोलॉजल कॉलेज में कर दिया जाएगा।
आर्थिक विकास पर ध्यान देते हुए राज्य को बिजनेस हब बनाने के लिए रोडमैप तैयार है। नए उद्योगों की स्थापना से 2.5 लाख नई नौकरियां पैदा होंगी। कुल मिलाकर भाजपा केंद्रीय आर्थिक मदद से पूरे राज्य का कायाकल्प कर सकती है।
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है कि अब पुडुचेरी भारत की मुख्यधारा का हिस्सा होगा। पुडुचेरी की लड़ाई भाजपा के लिए राजनीतिक कम और सैद्धांतिक अधिक है। पुडुचेरी कोई ऐसा राज्य नहीं जहाँ से बड़ी संख्या में सांसद चुने जाते हैं, लेकिन पुडुचेरी जीतने का महत्व यह है कि भाजपा दक्षिण बनाम उत्तर की राजनीति को करारा जवाब देगी। यह लड़ाई सैद्धांतिक है, इसका प्रदर्शन उसी समय हुआ था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैक्सीन लगवाने गए थे, जहाँ उन्होंने असमी गमछ पहनकर, केरला और पुडुचेरी की नर्स से वैक्सीन लगवाई। यह संदेश था कि भारत उत्तर से दक्षिण तक एक है।
लंबे समय तक दक्षिण भारत को उत्तर से अलग करने के लिए दक्षिण भारत के राज्यों में अलगाव का जहर घोला गया है। पुडुचेरी में सत्ता परिवर्तन, इस जहर को खत्म करेगा।