कोरोनावायरस की दूसरी लहर से पूरा देश त्रस्त है। सुविधाओं की कमी से दिक्कतों का पैदा होना सामान्य बात हो गयी है। लेकिन दिक्कत तब ज़्यादा होती है, जब अन्य राज्यों की अपेक्षा किसी एक राज्य का ग्राफ अचानक ऊपर जाने लगे, और तमिलनाडु के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है। पिछले काफी वक्त से तमिलनाडु में कोरोना के नए संक्रमित केसों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है, जो कि राज्य के लिए एक नई चुनौती बन गया है। दूसरी ओर यहां वैक्सिनेशन अभियान की रफ्तार भी कम हो रही है। इतना ही नहीं, दवाओं की किल्लत के करण यहां लोगों द्वारा लॉकडाउन की धज्जियां भी उड़ाई जा रही हैं। ऐसे में सवाल एक अनुभवहीन मुख्यमंत्री एम के स्टालिन पर खड़े होते हैं, क्योंकि उनके दिशा-निर्देशों का राज्य में कोई खास असर नहीं दिखाई दे रहा है।
अभी कुछ दिन पहले ही TFI ने रिपोर्ट किया था कि किस तरह से चेन्नई के मरीना बीच पर रेमडेसिवीर इंजेक्शन की कमी के कारण लोगों की भीड़ जमा हो गई थी, जिसे कंट्रोल करने में प्रशासन नाकाम रहा था। इस भीड़ को आने वाले वक्त के लिए कोरोना संक्रमण के लिहाज से ख़तरनाक माना जा रहा था। वहीं, अब सामने आ रहा है कि तमिलनाडु कोरोना के नए केसों को लेकर पहले स्थान पर आ गया है। पिछले काफी दिनों से यहां कोरोना के मामले 30,000 से अधिक संख्या में आ रहे हैं, और अब तो ये महाराष्ट्र को भी पीछे छोड़ने की होड़ में है जो कि राज्य के लिए घातक होने वाला है।
तमिलनाडु में मंगलवार को कोरोना के 33,059 केस दर्ज किए गए। ऐसे में उम्मीद थी कि शायद अब बाकी देश की तरह यहां भी मामलों में कमी आएगी, लेकिन वो हुआ नहीं। अगले दिन यह आंकड़ा बढ़कर 34,875 तक पहुंच गया, और कोरोना केसों के मामले में राज्यों की सूची में पहले स्थान पर तमिलनाडु ही था। कोरोना के लगातार बढ़ते मामलों ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि कहीं तमिलनाडु, महाराष्ट्र के बाद कोरोना का नया एपिसेंटर तो नहीं बन रहा है? क्योंकि यहां परिस्थिति काफी वक्त से लगातार बिगड़ रही है।
इसके अलावा राज्य में वैक्सिनेशन का काम भी सुस्त होता जा रहा है। सोमवार को यहां 63 हज़ार लोगों को वैक्सीन लगी लेकिन मंगलवार को ये आंकड़ा घटकर सिर्फ 50 हज़ार पर आ गया। इतना ही नहीं, बुधवार को यही आंकड़ा मात्र 45 हज़ार रह गया जो कि सरकार समेत आम जनता के लिए ही ख़तरनाक बात है।
पिछले दो तीन हफ्तों के रिकॉर्ड को देखें तो कहा जा सकता है कि तमिलनाडु का प्रशासन कोविड महामारी को मैनेज करने के लिए लगाए गए लॉकडाउन का ठीक से पालन नहीं करा पा रहा है। संक्रमितों का आंकड़ा बढ़ने के साथ ही राज्य में वैक्सिनेशन ड्राइव में सुस्ती और दवाओं की किल्लत से लोगों के सब्र का बांध टूट रहा है, जो कि नए नवेले मुख्यमंत्री एम के स्टालिन की प्रशासनिक क्षमताओं पर सवाल खड़े करता है।
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स्टालिन को राजनीति विरासत में मिली है, उनके पास प्रशासनिक पद संभालने का कोई खास अनुभव नहीं है। ऐसे में तमिलनाडु में कोरोना संक्रमण का बढ़ना महाराष्ट्र की तर्ज पर भयभीत करने वाला है क्योंकि महाराष्ट्र की जनता एक अनुभवहीन मुख्यमंत्री के कार्यों को देख चुकी हैं, जिसके चलते राज्य में मौतों का विकराल तांडव हुआ। ऐसे में अगर यही स्थिति तमिलनाडु के साथ होती है, तो इसके जिम्मेदार केवल और केवल एम के स्टालिन ही होंगे, जिनके शासनकाल में राज्य एक भयंकर त्रासदी के मुहाने पर आन खड़ा हुआ है।