बंगाल के विधानसभा चुनाव ने न केवल बंगाल की जनता की पसंद उजागर की है, बल्कि तृणमूल कांग्रेस का असली स्वरूप भी उजागर किया है। पिछले दो दिनों में छह से ज्यादा भाजपा नेताओं की हत्या हो चुकी है, और साथ ही साथ विपक्ष के अधिकतम नेताओं पर हमले भी किए जा चुके हैं, लेकिन भाजपा का लाचार रवैया न तो लोगों के गले उतर रहा है और न ही गृह मंत्री अमित शाह के व्यक्तित्व को देखते हुए ये कोई शुभ संकेत है।
2 मई को विधानसभा चुनाव में सभी की उम्मीदों के विपरीत ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने 210 से अधिक सीटों पर कब्जा जमाते हुए लगातार तीसरी बार सत्ता पर कब्जा जमाया। इस बार न केवल वामपंथ और कांग्रेस का सूपड़ा साफ हुआ, बल्कि भाजपा को भी केवल 77 सीटों के साथ प्रमुख विपक्षी पार्टी के पद से संतोष करना पड़ा।
लेकिन इतना होने के बावजूद तृणमूल कांग्रेस खुश नहीं है। जहां नंदीग्राम में पूर्व TMC नेता शुभेन्दु अधिकारी के हाथों ममता बनर्जी की हार से बौखलाए तृणमूल के गुंडों ने त्राहिमाम मचा रखा है, तो वहीं अब तक 11 लोगों के 2 मई को चुनावी परिणाम घोषित होने के बाद से बंगाल में मारे जाने की खबर सामने आ चुकी है।
स्वयं भाजपा के अनुसार उनके 6 पार्टी कार्यकर्ता पिछले दो दिन में मारे जा चुके हैं। इनमें पार्टी कार्यकर्ता अभिजीत सरकार भी शामिल है, जिसने मारे जाने से पहले एक वीडियो अपलोड की कि कैसे तृणमूल के गुंडे उसके द्वारा पाले गए कुत्तों तक को नहीं छोड़ रहे हैं, और एक वृद्धा भी शामिल थी, जो अपने कार्यकर्ता बेटे को हिंसक भीड़ से बचाना चाह रही थी। इसके अलावा हावड़ा में भाजपा के कार्यालय को आग के हवाले कर दिया गया था।
लेकिन यह हिंसा केवल भाजपा तक सीमित नहीं है। कांग्रेस के विद्यार्थी यूनियन पर हमले से लेकर कम्युनिस्टों तक को तृणमूल कांग्रेस की गुंडई का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन इसके जवाब में भाजपा क्या कर रही है? गृह मंत्रालय द्वारा पूरी घटना को लेकर एक रिपोर्ट मांगने और 5 मई को राष्ट्रव्यापी धरना करने की घोषणा के अलावा भाजपा ने कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया है। हालांकि, खबर लिखे जाने तक गोबर्धन दास नामक वैज्ञानिक के हमले के जवाब में गृह मंत्रालय ने अर्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी अवश्य सहायता के लिए भेजी है।
यह न केवल एक राष्ट्रीय महत्व के पार्टी के लिहाज से बेहद असंतोषजनक है, बल्कि गृह मंत्री अमित शाह की कद को देखते हुए निराशाजनक भी। जिस व्यक्ति ने बिना किसी समस्या के कश्मीर घाटी में फिर से शांति के पुष्प खिलवाए, जिस व्यक्ति ने बतौर गृह मंत्री नागरिकता संशोधन कानून जैसे अहम कानून भी पारित करवाया, वह बंगाल में हो रही हिंसा के प्रति ऐसी नरमी कैसे बरत सकते हैं?
हम लोग समझ सकते हैं कि इस समय भारत पर अराजकता के साथ साथ वुहान वायरस का भी दोहरा प्रकोप है। लेकिन इसके कारण लोगों को बंगाल में अकारण तृणमूल की गुंडई के हाथों बलि तो नहीं चढ़ाया जा सकता। जिस प्रकार से भाजपा कोई स्पष्ट रुख नहीं पेश कर रही है, वह न सिर्फ चिंताजनक है, बल्कि यदि गृह मंत्रालय ने सही समय पर निर्णय नहीं लिए, तो ये आगे चलकर बहुत घातक सिद्ध हो सकता है। ऐसे में जेपी नड्डा के बंगाल दौरे से ही बात नहीं बनेगी, बल्कि अब गृह मंत्रालय को कुछ कड़े निर्णय लेने पड़ेंगे, अन्यथा वर्षों की मेहनत पर चुटकी में पानी फिर सकता है।