केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन एक बड़ी ही विकट परिस्थिति में फंस गए हैं। पिछले छह सालों से मुख्यमंत्री विजयन राज्य में अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए तुष्टिकरण की राजनीति कर रहे थे। अब हाल ही में केरल उच्च न्यायालय ने उनकी इस राजनीति पर विराम लगा दिया है। जिससे उनकी मुसीबत और ज्यादा बढ़ गई है, केरल के मुस्लिम समाज के लोग केरल उच्च न्यायालय के फैसले से नाराजगी जताई है जबकि केरल के ईसाई समुदाय के लोग केरल उच्च न्यायालय के फैसले पर खुशी जाहिर किया है। कोर्ट के फैसले से एक बात और साफ हो गया है कि, केरल में विकास की राजनीति नहीं, बल्कि मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति होती थी।
दरअसल, बात यह है कि केरल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के 6 साल पुराने उस फैसले को पलट दिया, जिसमें मुसलमानों को अल्पसंख्यक होने के नाम पर 80% और बाकी के 20% स्कॉलरशिप ईसाइयों को दी जा रही थी।
बता दें कि इस मामले से दोनों समुदायों ( मुस्लिम और ईसाई) के बीच अनबन इतना ज्यादा बढ़ गया कि उसको शांत करने के लिए पिनराईं विजयन को खुद ही अल्पशंख्यक कार्य मंत्रालय को संभाला। यह अनबन इसलिए बढ़ गया क्योंकि विजयन की सरकार पिछले छह सालों से अल्पसंख्यक कल्याण स्कीम में से 80 प्रतिशत लाभ मुस्लिम को देती थी, जबकि केवल 20 प्रतिशत लाभ ईसाई समुदाय को। इससे ईसाई समुदाय के अंदर काफी ज्यादा रोष भर गया था।
यह मामला कोर्ट में जा पहुंचा, जिस पर केरल उच्च न्यायालय ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के 80:20 आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि कानूनी रूप से ये बंटवारा सही नहीं है। हाईकोर्ट ने यह आदेश जस्टिन पल्लीवतुक्कल नाम के व्यक्ति की जनहित याचिका पर दिया है। कोर्ट के इस फैसले ने विजयन सरकार का असली चेहरा सामने ला के रख दिया है। जो काम अभी देश की मुख्यधारा मीडिया नहीं कर पाई, वह काम केरल उच्च न्यायालय ने कर दिखाया।
हालांकि, केरल उच्च न्यायालय के फैसले से केरल में मुसलमानों के सबसे बड़े संगठन इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने इस फैसले पर राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। आईयूएमएल ने कहा कि सरकार अदालत के सामने तथ्य रखने में असफल रही है। स्कॉलरशिप का अनुपात खत्म कर पूरी स्कॉलरशिप मुसलमानों को दी जानी चाहिए। वहीं, दूसरी तरफ ईसाइयों ने इस फैसले का स्वागत किया है। कुल मिलाकर एलडीएफ मुस्लिम और ईसाई दोनों को खुश करने के चक्कर में अब बीच मझधार में फस गई है।
साथ ही में केरल उच्च न्यायालय का यह फैसला केरल सरकार का पर्दाफाश कर दिया है कि कैसे यह कम्युनिस्ट पार्टी भारत के दक्षिण में बैठकर कितनों सालों से बड़े आराम से मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति कर रही थी।