भारत में Covid की दूसरी लहर धीरे-धीरे थम रही है। केंद्र सरकार ने विभिन्न राज्यों के साथ मिकलर ऑक्सीजन सिलेंडर, कन्स्ट्रेटर, दवाइयों की हो रही किल्लत को काफी हद तक सुलझा लिया है, लेकिन इस लहर के दौरान मरने वालों की मौत का किस प्रकार राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है यह उत्तर प्रदेश और केरल की तुलना करने पर साफ नजर आ जाएगा।
WHO, नीति आयोग और बॉम्बे हाईकोर्ट, एक के बाद एक तीनों प्रमुख संस्थाओं ने उत्तर प्रदेश सरकार के Covid की रोकथाम के मॉडल की तारीफ की है, लेकिन इसे राष्ट्रीय मीडिया की हैडलाइन में स्थान नहीं मिला। उल्टे उत्तर प्रदेश शासन की छवि धूमिल करने के प्रयास हो रहा है। जबकि केरल जो Covid से प्रभावित राज्यों में सबसे बुरा प्रदर्शन करने वाले राज्यों में एक है, उसपर बिल्कुल चर्चा नहीं हो रही। यही केरल राज्य पिछले वर्ष आदर्श मॉडल की तरह, लुटियन्स मीडिया द्वारा प्रस्तुत किया जा रहा था।
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उत्तर प्रदेश शासन ने मात्र 17 दिनों में ऑक्सीजन की किल्लत से छुटकारा पा लिया। इस समय उत्तर प्रदेश ऑक्सीजन सरप्लस वाले राज्यों की सूची में आ गया है। 23 अप्रैल को राज्य में प्रतिदिन सिर्फ 500 MT ऑक्सीजन उत्पादन क्षमता थी और 11 मई आते-आते प्रतिदिन यह क्षमता 1000 MT ऑक्सीजन तक पहुंच गयी।
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योगी सरकार ने सख्त निर्णय लेते हुए ऑक्सीजन की कालाबाजारी करने वाले अस्पतालों का लाइसेंस रद्द करने का निर्णय लिया और सरकार ने ऑक्सीजन ऑडिट करना भी शुरू कर दिया है।
अस्पतालों में कर्मचारियों की कमी को दूर करने के लिए पूर्व चिकित्साकर्मियों को पुनः काम पर बुलाया गया। आवश्यक दवाइयों की कालाबाजारी रोकने के लिए उन्हें CMO के आदेश के बाद ही मेडिकल स्टोर से खरीदने की व्यवस्था बनाई गई। इससे कालाबाजारी तो रुकी ही, साथ ही दवाओं की उपलब्धता उन्हें ही सुनिश्चित की गई जिन्हें वास्तव में आवश्यकता थी। सरकार ने कालाबाजारी करने वालों पर NSA भी लगाने की व्यवस्था की। जहाँ अन्य राज्य केंद्र के भरोसे बैठे हैं योगी सरकार सीधे दवा और वैक्सीन निर्माताओं से संपर्क कर रही है।
15 मई को सरकार ने निर्णय लिया है कि मेडिकल की दुकानों पर उन सभी लोगों का रिकॉर्ड रखा जाए, जो Covid से जुड़े किसी भी लक्षण से संबंधित दवा खरीदने आ रहे हैं। इस प्रकार सरकार अपनी पहुंच उन लोगों तक भी बना पाएगी, जिन्हें हल्के लक्षण हैं, लेकिन जो अनजाने में अन्य लोगों के लिए खतरा बन सकते हैं। इनकी जानकारी स्वास्थ विभाग की वेबसाइट पर देनी होगी।
वहीं दूसरी ओर केरल की बात करें तो यहाँ प्रतिदिन करीब 30 से 34 हजार और कभी उससे भी अधिक, नए मामले आ रहे हैं। इसमें भी ग्रामीण क्षेत्रों की तो पूरी रिपोर्ट मिल ही नहीं रही है। लॉकडाउन के बावजूद सख्ती से पालन नहीं हो रहा जिससे Covid को रोकना मुश्किल हो रहा है। हाल ही में खबर आई थी कि एक वार्षिक सम्मेलन में हिस्सा लेने से बड़ी संख्या में पादरियों की मृत्यु हुई थी। किंतु यह केरल का दुर्भाग्य है कि इन खबरों को मीडिया में जगह ही नहीं मिलती।
मेन स्ट्रीम मीडिया जितनी चर्चा उत्तर प्रदेश के एक जिले के बारे में करता है, उसका दसवा भाग भी केरल पर नहीं करता। एक भी राष्ट्रीय मीडिया संस्थान ने इसपर कोई भी ग्राउंड रिपोर्ट तैयार नहीं की कि क्यों केरल में हालात इतने बिगड़े। राज्य सरकार की नाकामियों की कोई पड़ताल नहीं कि जा रही क्योंकि वहाँ पर कम्युनिस्ट शासन है और भारतीय मीडिया का वामपंथी विचारधारा के प्रति विशेष लगाव जगजाहिर है।
केरल और उत्तर प्रदेश की तुलना भारत में व्याप्त वामपंथी-उदारवादी इको सिस्टम का बहुत ही शानदार नमूना है। भारत में कैसे मीडिया, राजनीतिक दल, NGO, मानवाधिकार कार्यकर्ता, वरिष्ठ वकील, बॉलीवुड अभिनेता आदि सेलेक्टिव होकर मुद्दों पर टिप्पणी करते हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश की हर छोटी घटना को भो राष्ट्रीय मुद्दा इसलिए बनाना रहता है क्योंकि वहाँ का मुख्यमंत्री एक हिन्दू सन्यासी है, जबकि केरल, पश्चिम बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र आदि पर नजर पड़ते ही ये लोग धृतराष्ट्र बन जाते हैं।