वामपंथियों किस प्रकार से अपने विरोधियों को कुचलने के लिए ‘कैन्सल कल्चर’ का उपयोग करते हैं, ये किसी से छुपा नहीं है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो वामपंथियों की इस गुंडई पर हाथ पर हाथ नहीं धरे रखना चाहते। इन्ही में से एक हैं ज़ोहो मेल के संस्थापक एवं प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य श्रीधर वेम्बु।
श्रीधर वेम्बु ने हाल ही में स्पष्ट किया है कि उनके कंपनी में किसी भी कर्मचारी के विरुद्ध किसी प्रकार का आंदोलन नहीं चलाया जाएगा, सिर्फ इसलिए क्योंकि उसके राजनीतिक विचार दूसरों से भिन्न है। श्रीधर वेम्बु के ट्वीट के अनुसार,
“हमारे ज़ोहो में एक नियम है। यदि आपको किसी के राजनीतिक विचारों से असहमति है, तो आप जो भी करिए, लेकिन हमारे कंपनी में उसकी नौकरी रद्द करने के लिए आंदोलन करना स्वीकार्य नहीं है। कैन्सल कल्चर के समय में ऐसे निर्णय बेहद जरूरी हैं, ताकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई आंच या कलंक न लगे”
We have a rule in Zoho: no employee is allowed to agitate for the termination of another employee because they dislike their political views.
This is an important rule in times of cancel culture and we will not relent on this important freedom of conscience principle.
— Sridhar Vembu (@svembu) May 13, 2021
ये भारतीय टेक कंपनियों के साथ साथ अमेरिका की बिग टेक को भी एक स्पष्ट संदेश है – वैचारिक वैमनस्य के चलते किसी के जीवन को बर्बाद करने का अधिकार किसी ने नहीं दिया है। समाज में अपने को प्रगतिशील सिद्ध करने के लिए लोग कुछ ज्यादा ही वामपंथी बनने लगे हैं, और जिन्हे वामपंथ से वास्ता नहीं, उन्हे या तो खुलेआम अपमानित किया जाता है, या फिर उनका बॉयकॉट करने की धमकी दी जाति है।
कुछ जगह तो ऐसे लोगों को नौकरी से निकालने के लिए भी कंपनियों को विवश किया जाता है, जिसे आम भाषा में कैन्सल कल्चर कहते हैं। कैन्सल कल्चर का एक उदाहरण आप ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में देख सकते हैं, जहां की स्टूडेंट यूनियन अध्यक्ष रश्मि सामंत को इसलिए इस्तीफा देना पड़ा, क्योंकि वह हिन्दू धर्म का अपमान करने में विश्वास नहीं रखती थी।
लेकिन श्रीधर वेम्बु अभी से ही कैन्सल कल्चर के विरोधी नहीं है। कुछ वर्षों पहले जब वे आरएसएस द्वारा आयोजित एक समारोह में गए थे, तो उन्होंने इस बात को सोशल मीडिया पर साझा किया था, और वामपंथियों ने उनकी आलोचना करने का प्रयास किया था। परंतु श्रीधर वेम्बु अलग ही मिट्टी के बने थे, और उन्होंने उलटे उन वामपंथियों को लताड़ते हुए कहा कि कोई दूसरा नहीं तय कर सकता कि वे किस कार्यक्रम में भाग ले सकते हैं, और किसमें नहीं।
श्रीधर वेम्बु धुर वामपंथी विरोधी रहे हैं, और समय समय पर उन्होंने भारतीय संस्कृति के रक्षा के लिए भी अपनी आवाज उठाई है। आधुनिकता के साथ संस्कृति को समाहित करने की उनकी पहल को लेकर श्रीधर की काफी प्रशंसा भी की गया है, और हाल ही में उन्हे प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के तकनीकी सेल में शामिल भी किया गया है।
स्पष्ट शब्दों में श्रीधर वेम्बु ने अपने वर्तमान ट्वीट से संदेश दिया है – कायदे में रहोगे तो फायदे में रहोगे।
ऐसे में श्रीधर वेम्बु ने जब स्पष्ट किया है कि उनकी कंपनी में कैन्सल कल्चर नहीं फैलाया जाएगा, तो उनका संदेश स्पष्ट है – अब भारत में वामपंथी विष को किसी भी क्षेत्र में बढ़ावा नहीं देने दिया जाएगा।