श्री राम जन्म भूमि का मसला हिंदूओं के पक्ष में जानें के बाद, अब हिंदूओं ने काशी विश्वनाथ और श्रीकृष्ण जन्मभूमि को भी मुगलों द्वारा किए गए अतिक्रमण से मुक्त कराने की कवायद शुरू कर दी है। इसी सिलसिले में श्री राम जन्म भूमि की ओर से एक हिंदू संगठन मथुरा कोर्ट में याचिका दायर किया है। याचिका में कहा है कि अगर, मुस्लिम समुदाय अपनी मर्जी से शाही मस्जिद को ध्वस्त करने में सहमती दिखाते हैं तो मथुरा में उन्हें वर्तमान शाही मस्जिद से बड़ा भूखंड दिया जायेगा। बता दें कि यह मस्जिद कटरा केशव देव मंदिर परिसर के अंदर स्थित है।
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन समिति ने मथुरा के वरिष्ठ दीवानी न्यायाधीश की अदालत में अपने आवेदन में कहा कि वह मंदिर कस्बे के चौरासी कोस परिक्रमा सर्किट के बाहर मस्जिद प्रबंधन समिति को जमीन का एक बड़ा टुकड़ा देगी।
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन समिति के अध्यक्ष अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि इंताजामिया कमेटी (प्रबंधन समिति) को मथुरा में उस जमीन से बड़ा टुकड़ा दिया जाएगा जिस पर शाही मस्जिद ईदगाह खड़ी है।
हिंदू पक्ष द्वारा रखा गया यह प्रस्ताव उचित नहीं है, क्योंकी मुगलों ने मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर स्थित मंदिर को नष्ट करके, उस पर अपना मस्जिद बनया था। ऐसे में बस एक ही मुद्दा होना चाहिए कि, उस मंदिर परिसर से मस्जिद को हटाया जाए, यह हिन्दुओं की हक की बात है। ऐसे में मुस्लिम समुदाय को वर्तमान मस्जिद से बड़ा भूमि देने का कोई तुक नहीं बनता है।
बात दें कि भगवान कृष्ण के जन्मस्थान को कई मौकों पर नष्ट किया गया था। सबसे नवीनतम मुगल सम्राट औरंगजेब ने सन् 1670 में मंदिर को नष्ट करके और उस स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण किया था।
आज मथुरा की अदालत में विवादित स्थल से मस्जिद को हटाने के लिए आवेदनों का अंबार लगा हुआ हैं। यह विवादित स्थल भगवान कृष्ण का जन्मस्थान है। सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक राम जन्मभूमि फैसले के बाद से बाकी मंदिरों को मुगल अतिक्रमण से छुड़ाने की मुहिम ने गति पकड़ ली है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (ABAP) सितंबर 2020 में वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को मुक्त करने के लिए एक अभियान शुरू करने का निर्णय लिया था।
आपको बता दें कि इन विवादित स्थलों को मुगल अतिक्रमण से छुड़ाने के रास्ते में एक कानूनी रोड़ा है। वह है उपासना स्थल अधिनियम, 1991, यह अधिनियम बाबरी मस्ज़िद (वर्ष 1992) के विध्वंस से एक वर्ष पहले सितंबर 1991 में पारित किया गया था। यह कानून 15 अगस्त 1947 को सार्वजनिक पूजा स्थलों के रहे धार्मिक चरित्र को बरकरार रखने और उनमें बदलाव के खिलाफ गारंटी देता है।
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हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में इस अधिनियम के खिलाफ़ याचिका दायर की गई है और सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले में आगे सुनवाई के लिए तैयार है। ऐसे में हम यह उम्मीद कर सकते है कि, उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के हटते ही इतिहास की गलतियों को सुधारा जाएगा और अतीत में इस्लामी शासकों द्वारा अन्य धर्मों के जिन-जिन पूजा स्थलों और तीर्थ स्थलों का विध्वंस करके उन पर इस्लामिक ढांचे बना दिए गए, उन्हें वापस उनके असली हकदार सौंपा जाएगा।