जिससे उम्मीद न हो, जब वही उस काम को कर दिखाए तो अचंभित होना तो बनता है, अब वो काम अच्छा हो या बुरा। कुछ ऐसी ही हरकत केंद्र सरकार ने भी की है। हालांकि, इस बात में कितनी सच्चाई है, ये तो स्वयं वह सांसद और गृह मंत्री अमित शाह ही जानते है। लेकिन यदि ये बात सच है कि लक्षद्वीप में कुछ भी ‘जनता’ की इच्छा के बगैर नहीं होगा, तो अमित शाह ने अपने निर्णय से बहुत गलत संदेश भेजा है।
दरअसल, लक्षद्वीप से सांसद का दावा है कि अमित शाह ने विश्वास दिलाया है कि किसी भी स्थिति में जनता से विचार विमर्श किये बिना लक्षद्वीप के मामले में कोई निर्णय नहीं लिया जाएगा। दरअसल, लक्षद्वीप को एक पर्यटक डेस्टिनेशन के तौर पर विकसित करने हेतु वर्तमान प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा पटेल ने कुछ साहसिक निर्णय लिए, जिसमें से एक अहम निर्णय था शराब बंदी हटाना।
तो इसमें समस्या क्या है? दरअसल, लक्षद्वीप पर रहने वाले निवासियों में से 97 प्रतिशत से अधिक मुसलमान है, और वो भी कट्टरपंथी मुसलमान। उन्हें भारत भर में धड़ल्ले से गाय का कटना स्वीकार है, परंतु लक्षद्वीप में शराबबंदी पर रोक हटवाना फूटी आँख नहीं सुहाएगा। सो इसके पीछे तरह-तरह की भ्रांतियां फैलाकर ये सिद्ध करने का प्रयास किया गया कि वर्तमान नियम लक्षद्वीप को बर्बाद कर देगा।
तो इससे अमित शाह का क्या नाता है? दरअसल, लक्षद्वीप से सांसद ने दावा किया कि अमित शाह ने स्पष्ट किया है कि जनता की इच्छा के बगैर लक्षद्वीप में कोई भी कानून पास नहीं होगा। हाल ही में केरल हाईकोर्ट ने कांग्रेस के एक सांसद की अपील को रिजेक्ट करते हुए लक्षद्वीप में होने वाले सुधारों को हरी झंडी दी थी। यदि लक्षद्वीप के सांसद की बातें सत्य है तो इसका मतलब है कि केंद्र सरकार लक्षद्वीप वाले मुद्दे पर बैकफुट पर जा रही है।
ये न सिर्फ विरोधाभासी है, बल्कि भारत में मोदी विरोधियों को उम्मीद की एक नई किरण देगा। पिछले कुछ दिनों से केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया, विशेषकर बिग टेक की धज्जियां उड़ा कर रख दी है। इसके अलावा सेंट्रल विस्टा का विरोध करने वाले वामपंथियों को भी सरकार के कई मंत्री पटक-पटक के धो रहे हैं।
ऐसे में लक्षद्वीप वाले मुद्दे पर बैकफुट पर जाना न केवल मोदी विरोधियों को उपहास उड़ाने का मौका देगा, बल्कि केंद्र सरकार के लिए आगे की राह भी मुश्किल करेगा, जो CAA और कृषि सुधारों पर फैलाए गए भ्रमों के कारण पहले से ही मुश्किल में है।
हालांकि, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है।
केंद्र सरकार को अपने निर्णय पर पुनर्विचार और अपने रुख पर उतना ही आक्रामक और अडिग होना चाहिए, जितना कश्मीर में वे थी, लेकिन जिस प्रकार से स्थिति अभी दिखाई दे रहे हैं, उस अनुसार गृह मंत्री अमित शाह स्थिति को बदलने के लिए कुछ खास इच्छुक नहीं दिखाई दे रहे।