म्हाडा के 100 फ्लैट अस्पताल को हस्तांतरित नहीं होंगे
इन दिनों शरद पवार के अंदर देश के प्रधानमंत्री बनने के अरमान फिर से हिलोरें मारने लगे हैं। शायद इसीलिए वे फिर से एक अलग मोर्चा स्थापित करने में जुटे हुए हैं। इसी चक्कर में वे प्रशांत किशोर से लेकर कई राजनीतिक पार्टियों से मिल भी चुके हैं। हालांकि इसी बीच शिवसेना ने एक ऐसा कदम उठाया है, जिससे स्पष्ट संदेश गया है – हमको साथ लिए बिना कुछ भी ऐसा कदम उठाने की सोचना भी मत। हाल ही में महा विकास अघाड़ी की सरकार ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में टाटा मेमोरियल अस्पताल में इलाज करा रहे कैंसर रोगियों को अस्थायी आवास मुहैया कराने के लिए म्हाडा के 100 फ्लैट को अस्पताल को हस्तांतरित किए जाने पर रोक लगा दी है। राज्य के आवासीय मंत्री जितेंद्र आव्हाड ने बुधवार को इस फैसले की पुष्टि की।
नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, “शिवसेना विधायक अजय चौधरी ने संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने म्हाडा फ्लैट हस्तांतरित करने के फैसले पर स्थानीय निवासियों की आपत्ति के बारे में मुख्यमंत्री से शिकायत की थी, जिसके बाद हस्तांतरण आदेश पर रोक लगाने का फैसला लिया गया”।
तो इसका शरद पवार से क्या नाता है? बता दें कि जितेंद्र आव्हाड ने महाराष्ट्र आवास एवं क्षेत्र विकास प्राधिकरण (म्हाडा) की इमारतों के 100 फ्लैट अस्पताल को आवंटित करने का फैसला किया था, जिसपे स्वयं मुहर लगाते हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) अध्यक्ष शरद पवार ने मई में अस्पताल प्राधिकारियों को फ्लैट की चाबियां सौंपी थीं।
लोगों की शिकायत के बाद लिया गया निर्णय
अब शिवसेना विधायक अजय चौधरी ने कहा है कि म्हाडा फ्लैट के आस-पास रह रहे 1,000 से अधिक परिवारों ने अस्थायी आधार पर वहां आ रहे बाहरी लोगों के कारण हो रही दिक्कतों को लेकर आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने आवासीय मंत्री से स्थानीय लोगों की समस्याओं के बारे में कई बार शिकायत की थी, लेकिन उस पर ध्यान नहीं दिया गया। इसलिए, मुझे मुख्यमंत्री से अनुरोध करना पड़ा।’’
इससे शिवसेना का एनसीपी को संदेश स्पष्ट है – तुम जो कुछ भी करोगे, हमारे बिना बिल्कुल नहीं कर पाओगे। कांग्रेस पहले ही 2022 के नगरपालिका चुनाव अलग लड़ने का निर्णय कर चुकी है। ऐसे में यदि एनसीपी भी समय से पहले अलग-थलग हो जाती है, तो शिवसेना के लिए यह कोढ़ में खाज समान हो जाएगा।
लेकिन इस कदम से शिवसेना ने ये भी स्पष्ट कर दिया है कि यदि एनसीपी वाकई में अलग मोर्चा खोलने पर उतारू है, तो शिवसेना भी उसकी गीदड़ भभकियों से डरने वालों में से नहीं है। वह उसके बिना भी ‘सक्षम’ थी और उसके बिना भी महाराष्ट्र में अपनी ‘पहचान’ कायम रख सकती है। अब शिवसेना अपने इस रुख पर वास्तव में कितना कायम रहती है, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।